"स्त्री: संवेदना की अदृश्य अर्थव्यवस्था / पूनम चौधरी" के अवतरणों में अंतर
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+ | वह अर्थशास्त्र का कोई ग्रंथ नहीं पढ़ती, | ||
+ | फिर भी जानती है— | ||
+ | कैसे एक फटी साड़ी | ||
+ | दीवार की दरार ढँक सकती है, | ||
+ | कभी गुड़िया का वस्त्र बन जाती है, | ||
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+ | आँचल में बाँध कर | ||
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+ | कल की संभावनाएँ, | ||
+ | और रिश्तों का मुनाफ़ा— | ||
+ | वह एक छोटे कोने में | ||
+ | मिट्टी की गुल्लक में | ||
+ | अनकहे प्रेम के सिक्के सहेज कर रखती है। | ||
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+ | वह सपनों की खेती करती है, | ||
+ | सूखे मौसम में भी | ||
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+ | उसकी आँखों के नीचे | ||
+ | नींद की दरारों में भी | ||
+ | संवेदनाओं का अर्थशास्त्र पलता है। | ||
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+ | वह जानती है— | ||
+ | रोटी की गोलाई में | ||
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+ | और नमक की चुटकी से | ||
+ | स्वाद का संतुलन कैसे साधा जाता है। | ||
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+ | स्त्री प्रेम में अधिक देती है। | ||
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+ | पूँजी की तरह, | ||
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+ | कभी शब्दों में, | ||
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+ | सभ्यता का अर्थशास्त्र रचती है। | ||
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+ | वह जानती है— | ||
+ | आँचल की एक गाँठ | ||
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+ | संवेदना, संघर्ष और अर्थ का संगम। | ||
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+ | स्त्री को मत आँको | ||
+ | किसी बीमा की किस्त में, | ||
+ | वह उस ऋण की तरह है | ||
+ | जिसका ब्याज कभी नहीं चुकाया जा सकता। | ||
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+ | वह हर टूटे बर्तन में | ||
+ | सम्मान का सितारा छिपा देती है, | ||
+ | हर फटे वस्त्र में | ||
+ | अपनी गरिमा की रफ़ू करती है। | ||
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+ | वह जानती है— | ||
+ | छोटा-सा त्याग | ||
+ | कभी-कभी | ||
+ | बड़ी व्यवस्था बचा लेता है। | ||
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+ | वह जानती है— | ||
+ | अश्रुओं की मात्रा | ||
+ | कभी आँकड़ों में दर्ज नहीं होती, | ||
+ | फिर भी वे | ||
+ | सबसे मूल्यवान मुद्रा हैं | ||
+ | रिश्तों की अर्थव्यवस्था में। | ||
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+ | वह कोई अध्याय नहीं | ||
+ | जिसे पाठ्यक्रम में पढ़ाया जाए। | ||
+ | वह एक अर्थव्यवस्था है— | ||
+ | जहाँ गणित, संवेदना और संघर्ष | ||
+ | एक ही सूत्र में चलते हैं। | ||
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+ | स्त्री की अंजुलि में केवल प्रेम नहीं, | ||
+ | उसकी हथेलियों में है | ||
+ | ब्रह्मांड की नमी, | ||
+ | उसकी रीढ़ में तर्क, | ||
+ | आँखों में भविष्य की रोशनी, | ||
+ | और आँचल में | ||
+ | एक अदृश्य अर्थव्यवस्था का | ||
+ | सबसे सुगठित तंत्र। | ||
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12:52, 16 जून 2025 के समय का अवतरण
सुनते हैं
स्त्रियों का गणित कमजोर होता है,
संभवतः इसलिए
वे आँसुओं के अंकों में
मनुष्यता का समीकरण हल कर लेती हैं।
मन की दरों का मान
वे ब्याज दरों से बेहतर जानती हैं—
जहाँ प्रेम में एक दिया रुपया
हज़ार गुना होकर लौटता है,
अदृश्य सूद के साथ,
आँखों की भाषा में।
उसकी हथेली में
गणना मशीन नहीं,
पर रेखाओं में दर्ज हैं
घर के व्यय और देनदारियाँ,
राशन की बचत,
और सम्बन्धों की कड़ियाँ।
वह जोड़ती है
अनगिन रिश्ते,
घटाती है दुःख,
और सँजो लेती है
भविष्य के लिए उम्मीदों का अधिशेष।
वह अर्थशास्त्र का कोई ग्रंथ नहीं पढ़ती,
फिर भी जानती है—
कैसे एक फटी साड़ी
दीवार की दरार ढँक सकती है,
कभी गुड़िया का वस्त्र बन जाती है,
कभी वितान,
जिससे छुपा लेती है अपनी चुप्पियाँ।
आँचल में बाँध कर
घर का बजट,
कल की संभावनाएँ,
और रिश्तों का मुनाफ़ा—
वह एक छोटे कोने में
मिट्टी की गुल्लक में
अनकहे प्रेम के सिक्के सहेज कर रखती है।
वह सपनों की खेती करती है,
सूखे मौसम में भी
हरियाली बोती है।
उसकी आँखों के नीचे
नींद की दरारों में भी
संवेदनाओं का अर्थशास्त्र पलता है।
वह जानती है—
रोटी की गोलाई में
कितना गहरा गणित है,
और नमक की चुटकी से
स्वाद का संतुलन कैसे साधा जाता है।
कहते हैं—
स्त्री प्रेम में अधिक देती है।
सच है—
वह रिश्तों में निवेश करती है
पूँजी की तरह,
जहाँ उसका मूलधन है प्रेम,
लाभांश है सम्मान।
अपमान—एक ऐसा ऋण
जिसकी किश्तें वह जीवन भर चुकाती है,
कभी शब्दों में,
कभी आँसुओं में।
वह बहती है नदियों की तरह—
कभी उग्र, कभी शान्त,
कभी सूखी, कभी उफनती,
पर भीतर ही भीतर
सभ्यता का अर्थशास्त्र रचती है।
वह जानती है—
आँचल की एक गाँठ
महज़ सुई-धागे की नहीं होती,
बल्कि उसमें बँधा होता है
पूरे घर का संतुलन—
संवेदना, संघर्ष और अर्थ का संगम।
स्त्री को मत आँको
किसी बीमा की किस्त में,
वह उस ऋण की तरह है
जिसका ब्याज कभी नहीं चुकाया जा सकता।
वह हर टूटे बर्तन में
सम्मान का सितारा छिपा देती है,
हर फटे वस्त्र में
अपनी गरिमा की रफ़ू करती है।
वह जानती है—
छोटा-सा त्याग
कभी-कभी
बड़ी व्यवस्था बचा लेता है।
वह जानती है—
अश्रुओं की मात्रा
कभी आँकड़ों में दर्ज नहीं होती,
फिर भी वे
सबसे मूल्यवान मुद्रा हैं
रिश्तों की अर्थव्यवस्था में।
वह कोई अध्याय नहीं
जिसे पाठ्यक्रम में पढ़ाया जाए।
वह एक अर्थव्यवस्था है—
जहाँ गणित, संवेदना और संघर्ष
एक ही सूत्र में चलते हैं।
स्त्री की अंजुलि में केवल प्रेम नहीं,
उसकी हथेलियों में है
ब्रह्मांड की नमी,
उसकी रीढ़ में तर्क,
आँखों में भविष्य की रोशनी,
और आँचल में
एक अदृश्य अर्थव्यवस्था का
सबसे सुगठित तंत्र।
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