"देना भी एक प्रकार की प्रार्थना है / पूनम चौधरी" के अवतरणों में अंतर
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+ | कोई अदृश्य आशीष नहीं किया अनुभूत? | ||
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+ | हाँ, तुम्हारे भी दुख हैं, सीमाएँ हैं, | ||
+ | तुम भी थकते हो, गिरते हो, | ||
+ | पर जब तुम दूसरों की पीड़ा में | ||
+ | थोड़ी सी राहत बनते हो, | ||
+ | तो स्वयं भी भीतर से | ||
+ | राहत पाते हो। | ||
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+ | कभी-कभी दूसरों की ज़रूरत | ||
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+ | कभी किसी भूखे को खाना देकर | ||
+ | तुमने अपने भीतर की भूख को शांत किया है, | ||
+ | कभी किसी के अकेलेपन में | ||
+ | अपना हाथ रखकर | ||
+ | तुमने अपने अकेलेपन से संवाद किया है। | ||
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+ | यह कोई त्याग नहीं, | ||
+ | यह जीवन का वह स्पंदन है | ||
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+ | पर हाँ, यह भी मत भूलो— | ||
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+ | खुद को मत खो देना। | ||
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+ | तुम तब तक दे सकते हो | ||
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+ | तुम्हारा आत्मसम्मान | ||
+ | तुम्हारी सबसे बड़ी थाती है। | ||
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+ | इसलिए जीवन को इस तरह जियो | ||
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+ | तो उसमें शामिल हो तुम्हारी मुस्कान। | ||
+ | जब तुम किसी के दर्द को समझो | ||
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+ | जब तुम किसी की राह में दीप जलाओ | ||
+ | तो उसकी रौशनी तुम्हें भी रोशन करे। | ||
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+ | यही तो है जीवन की सबसे बड़ी कला— | ||
+ | देना इस तरह कि तुम भी समृद्ध हो जाओ, | ||
+ | और लेना इस तरह कि किसी का मन आहत न हो। | ||
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+ | कुछ पल, बस कुछ पल | ||
+ | अगर हम औरों के लिए जिएँ | ||
+ | तो शायद | ||
+ | हम अपनी ज़िंदगी को भी | ||
+ | थोड़ा बेहतर, थोड़ा सच्चा, | ||
+ | अधिक खूबसूरत बना सकें। | ||
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22:34, 19 जून 2025 के समय का अवतरण
सोचना कभी,
किसी के चेहरे की मुस्कान में
तुम्हारा भी कोई हिस्सा हो सकता है?
जब कभी तुमने थामा किसी का काँपता हाथ,
जो दुनिया से लड़ते-लड़ते थक चुका था,
क्या उस क्षण तुमने
अपने भीतर की उजास को नहीं देखा?
जीवन की यह दौड़
जहाँ सब अपने लिए दौड़ रहे है,
कभी थमकर देखो,
किसी और की राह कितनी कठिन है।
तुम्हारा एक शब्द
किसी के टूटते साहस को फिर जोड़ सकता है,
तुम्हारा एक थोड़ा -सा समय
किसी की पूरी दुनिया सँवार सकता है।
जब तुमने बिना माँगे
किसी की आंखों के आँसू पोंछे,
क्या तुम्हारी आत्मा ने
कोई अदृश्य आशीष नहीं किया अनुभूत?
हाँ, तुम्हारे भी दुख हैं, सीमाएँ हैं,
तुम भी थकते हो, गिरते हो,
पर जब तुम दूसरों की पीड़ा में
थोड़ी सी राहत बनते हो,
तो स्वयं भी भीतर से
राहत पाते हो।
कभी-कभी दूसरों की ज़रूरत
तुम्हारी भी ज़रूरत बन जाती है,
क्योंकि इंसान होना
केवल स्वयं के लिए जीना नहीं होता।
कभी किसी भूखे को खाना देकर
तुमने अपने भीतर की भूख को शांत किया है,
कभी किसी के अकेलेपन में
अपना हाथ रखकर
तुमने अपने अकेलेपन से संवाद किया है।
यह कोई त्याग नहीं,
यह जीवन का वह स्पंदन है
जिसमें देने वाला
पहले स्वयं पूर्णता पाता है।
पर हाँ, यह भी मत भूलो—
तुम्हारा समय, तुम्हारी ऊर्जा,
तुम्हारी आकांक्षाएँ भी मूल्यवान् हैं।
दूसरों की मदद करते करते
खुद को मत खो देना।
तुम तब तक दे सकते हो
जब तक तुम्हारे पास बचा हो।
तुम्हारा आत्मसम्मान
तुम्हारी सबसे बड़ी थाती है।
दूसरों के लिए जीना सुंदर है,
पर खुद के लिए जीना आवश्यक।
इसलिए जीवन को इस तरह जियो
कि जब तुम किसी के सुख का कारण बनो
तो उसमें शामिल हो तुम्हारी मुस्कान।
जब तुम किसी के दर्द को समझो
तो उसमें अपने अनुभवों की गरमाहट हो।
जब तुम किसी की राह में दीप जलाओ
तो उसकी रौशनी तुम्हें भी रोशन करे।
यही तो है जीवन की सबसे बड़ी कला—
देना इस तरह कि तुम भी समृद्ध हो जाओ,
और लेना इस तरह कि किसी का मन आहत न हो।
कुछ पल, बस कुछ पल
अगर हम औरों के लिए जिएँ
तो शायद
हम अपनी ज़िंदगी को भी
थोड़ा बेहतर, थोड़ा सच्चा,
अधिक खूबसूरत बना सकें।
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