"सिस्सू का जल-प्रपात / कुमार कृष्ण" के अवतरणों में अंतर
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मैं हूँ लाहौल के संघर्ष की लम्बी छलांग
बर्फ का शोक-गीत
बादलों का पसीना
पानी की पतित पुकार
मैं हूँ चन्द्रा के नाम चाँद की चिट्ठी
ल्हामो धार की पीठ पर धरती की शरारत
मैं चट्टान पर चहकती चिड़िया की आवाज़ हूँ
चन्द्रा की चुनरी में सुन्दरता का राज हूँ
मुझे आता है दूसरों की आंखों में घर बनाना
मैं बरसात- बर्फ में आता हूँ चन्द्रा के पास
मैं जल- प्रपात से कब नदी हो गया
इसे नहीं जान पाया आज तक
मैं सिस्सू का झरना-
लाहुली फीनिक्स हूँ
मुझे आता है जीना बार-बार मर कर भी
आता है लड़ना थोड़ा-थोड़ा डर कर भी
सदियों पुराना है मेरा और चन्द्रा का रिश्ता
मैं जब भी आता हूँ-
हम तांदी तक ही बांट पाते हैं-
अपने-अपने सुख-दुःख
तांदी में अपनी बहन भागा से मिल कर
चन्द्रा भूल जाती है सभी कुछ
वह भूल जाती है अनगिनत जल- प्रपातों का प्यार
भूल जाती है-
कितने झरनों ने ख़ुद को ख़त्म करके बनाया-
उसे नदी
मैं लौट आता हूँ सिस्सू के पास
हर बार नंगे पांव
भूल आता हूँ तांदी के संगम पर
अपनी लाहुली पूलें बार-बार।