"बादल की नसीहत / कुमार कृष्ण" के अवतरणों में अंतर
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तुम अपने बस्ते में
आग और पानी
दोनों एक साथ छुपाना सीख लो
मुझे देखो-
मैं दोनों को ले कर उड़ता हूँ
बिना किसी भय के
सूरज में नहीं इतना साहस
वह जला सके मेरे इन्द्रधनुषी पाँव
चाँद में हिम्मत नहीं
वह अपने हंसुये से काट डाले
मेरे आग के पंख
मैं जब चाहूँ दोनों को कर सकता हूँ नजरबंद
मैं आग का उड़ता हुआ पहाड़ हूँ
मरणासन्न नदियों की दहाड़ हूँ
सही कहा तुमने-
सुना था मैंने भी बचपन में दादी से -
नरेश और प्रेत दोनों डरते हैं आग से
बड़ा होने पर भूल गया मैं दादी की बात
सुनो थोड़ा ध्यान से सुनो-
तुम्हें बचा कर रखनी होगी थोड़ी-सी आग
जब तक रहेगी आग
तब तक बची रहेगी हिम्मत इस धरती पर
आग डरावने मौसम में
उड़ती हुई गोरैया है
आग घर और डर दोनों एक साथ है
आग डरे हुए मनुष्य के सपनों के हाथ हैं।