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गीत होते हैं पावन तो बस, तीन ही,
जिनसे खुलते हैं लोगों के दुख-सुख यहाँ ।
सबसे पाकीज़ा उनमें से वह गीत है,
पालने पर जिसे गाया करती है माँ ।
दूसरा गीत भी गीत माँ ही का है,
बर्फ़ से गाल पर फेरकर हाथ जो,
अपने बेटे की मय्यत पे गाती है जो
तीसरा गीत चाहे कोई गीत हो ।
रूसी भाषा से अनुवाद : साबिर सिद्दीक़ी