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लैम्पों में | लैम्पों में |
05:55, 8 जुलाई 2025 के समय का अवतरण
एक
लाल आग सा चमककर
सूरज गायब हो गया
चौकी के पीछे
और अचानक बन्द हो गईं
दिन के सप्त सुरों की
प्रभावशाली आवाज़ें ।
छतों के कंगूरों पर
अब भी झलक रही है रोशनी
छिप-छिपकर चमक रही है
हीरों की तरह
धुएँ का गुबार
बनता जा रहा है
आकाश ।
दो
उस आख़िरी घर के पीछे
लाल सूरज डूब गया है
चला गया सोने के लिए
आख़िरी बार बजती हैं
दिन की तन्त्रिकाएँ
रोशनियाँ झिलमिला रही हैं
छतों से लटके
लैम्पों में
हीरे जगमगा रहे हैं अन्धेरे में
नींद में डूबे
नदी के नील जल में
डुबकी लगा रहे हैं।
रूसी से अनुवाद : अनिल जनविजय