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"आओ खेलें गाली- गाली / शिवजी श्रीवास्तव" के अवतरणों में अंतर

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लोकतन्त्र का नया खेल है
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आओ खेलें गाली -गाली।
  
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शब्द -वाण जहरीले छोड़ें,
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माँ -बहिनों की पावनता के
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चुन-चुनकर गुब्बारे फोड़ें।
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उनकी सात पुश्त गरियाएँ
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अपनी जय-जयकार कराएँ
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चतुर मदारी- सा अभिनय कर
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गला फाड़ सबको बतलाएँ,
  
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हम हैं सदाचार के पुतले,
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प्रतिपक्षी सब बड़े बवाली।
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चलो ज़हर की फसल उगाएँ
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जाति- धर्म की कसमें खाएँ,
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कल- परसो चुनाव होने है,
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कैसे भी सत्ता हथियाएँ ,
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जनता को फिर से भरमाएँ,
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कठपुतली की तरह नचाएँ ,
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नंगों के हमाम में चलकर,
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ढोल बजाकर ये चिल्लाएँ-
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मेरे कपड़े उजले- उजले
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उनकी ही चादर है काली।
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खेल पसन्द आए तो भइया,
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सभी बजाना मिलकर ताली।
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08:38, 16 जुलाई 2025 के समय का अवतरण

लोकतन्त्र का नया खेल है
आओ खेलें गाली -गाली।

भाषा की मर्यादा तोड़ें,
शब्द -वाण जहरीले छोड़ें,
माँ -बहिनों की पावनता के
चुन-चुनकर गुब्बारे फोड़ें।
उनकी सात पुश्त गरियाएँ
अपनी जय-जयकार कराएँ
चतुर मदारी- सा अभिनय कर
गला फाड़ सबको बतलाएँ,

हम हैं सदाचार के पुतले,
प्रतिपक्षी सब बड़े बवाली।

चलो ज़हर की फसल उगाएँ
जाति- धर्म की कसमें खाएँ,
कल- परसो चुनाव होने है,
कैसे भी सत्ता हथियाएँ ,

जनता को फिर से भरमाएँ,
कठपुतली की तरह नचाएँ ,

नंगों के हमाम में चलकर,
ढोल बजाकर ये चिल्लाएँ-
मेरे कपड़े उजले- उजले
उनकी ही चादर है काली।

खेल पसन्द आए तो भइया,
सभी बजाना मिलकर ताली।
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