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"अलख निरंजन, हे दुख-भंजन / निहालचंद" के अवतरणों में अंतर

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अलख निरंजन, हे दुख-भंजन, खल-दल गंजन, मुख-मंजन रघुबीर ॥टेक॥
फल इच्छा भगती करी, हुया भष्मासुर बलवान ।
महादेव प्रसन्न हुए, कही माँग भगत वरदान ।
वरसुधा पिया, एक कड़ा दिया, संग भाग लिया, किया खल का भष्म शरीर ।1।
लात भ्रात कै मार दी, था रावण कै अभिमान ।
राज विभिषण को दिया, प्रभु पूरी करी ज़बान।
सब दुष्ट दले, रण बीच मले, नभ पृथ्वी हिले, चले राम लखन के तीर।2।
कर्ण दुर्योधन शकुनि पापी, दुशासन महानीच ।
थी रजोधर्म से केश पकड़, मुझे ल्याए सभा मैं खींच ।
नहीं शरमाए, बल अजमाए, पार ना पाए, प्रभु अनन्त बढ़ाए चीर।3।
कैरों को नीचा दिखलाया, राखी मेरी लाज ।
निहालचन्द कहै एक दुष्ट से, पाळा पड़र्या आज ।
विपत हटाओ, बन्ध छुटाओ, कष्ट मिटाओ, मेरी आण बन्धाओ धीर।4।