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"अँधेरा दूर कर दो (मुक्तक) / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर

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माँगते वरदान इतना, सब अँधेरा दूर कर दो।
 
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आँगन, गली  हर द्वार पर, ज्ञान के तुम दीप धर दो।
 
आँगन, गली  हर द्वार पर, ज्ञान के तुम दीप धर दो।
 
जग-मरुथल में हे प्रभुवर! नीर करुणा का बहा दो
 
जग-मरुथल में हे प्रभुवर! नीर करुणा का बहा दो
 
सन्ताप जग में हैं बहुत, प्रेम का उजियार भर दो ।
 
सन्ताप जग में हैं बहुत, प्रेम का उजियार भर दो ।
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तुम क्या हो
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अवसादों के जब घन घिरते, तब तुम चपला बन जाती हो।
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गहन निराशा जब-जब घेरे,चंदा बन तुम मुस्काती हो।
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मेरा- तेरा क्या है नाता, कब समझेंगे दुनिया वाले।
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मैं माटी का दीपक ठहरा नेह भरी तुम तो बाती हो.
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18:02, 31 जुलाई 2025 के समय का अवतरण

1
माँगते वरदान इतना, सब अँधेरा दूर कर दो।
आँगन, गली हर द्वार पर, ज्ञान के तुम दीप धर दो।
जग-मरुथल में हे प्रभुवर! नीर करुणा का बहा दो
सन्ताप जग में हैं बहुत, प्रेम का उजियार भर दो ।
(11-11-23)
2
तुम क्या हो
अवसादों के जब घन घिरते, तब तुम चपला बन जाती हो।
गहन निराशा जब-जब घेरे,चंदा बन तुम मुस्काती हो।
मेरा- तेरा क्या है नाता, कब समझेंगे दुनिया वाले।
मैं माटी का दीपक ठहरा नेह भरी तुम तो बाती हो.
(26/8/2023)