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"आरजू / रसूल हमज़ातफ़ / फ़ैज़ अहमद फ़ैज़" के अवतरणों में अंतर
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− | मुझे मोजज़ों | + | मुझे मोजज़ों पे यक़ीं नहीं |
− | मुझे बज़्मे- | + | मगर आरज़ू है कि जब कज़ा |
− | तो फिर एक बार ये अज़न | + | मुझे बज़्मे-दहरसे ले चले |
− | कि लहद | + | तो फिर एक बार ये अज़न दे |
+ | कि लहद से लौट के आ सकूँ | ||
तिरे दर पे आ के सदा करूँ | तिरे दर पे आ के सदा करूँ | ||
तुझे ग़म-गुसार की हो तलब तो तिरे हुज़ूर में जा रहूँ | तुझे ग़म-गुसार की हो तलब तो तिरे हुज़ूर में जा रहूँ | ||
− | ये न हो तो सूए-रहे-अदम | + | ये न हो तो सूए-रहे-अदम में फिर एक बार रवाना हूँ |
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+ | शब्दार्थ : | ||
+ | मोजज़ों = करामातों, चमत्कारों | ||
+ | कज़ा = मृत्यु, मौत | ||
+ | बज़्मे-दहर = दुनिया की महफिल | ||
+ | अज़न = इजाज़त | ||
+ | लहद = क़ब्र | ||
+ | सूए-रहे-अदम में = परलोक के रास्ते पर | ||
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21:40, 4 अगस्त 2025 का अवतरण
मुझे मोजज़ों पे यक़ीं नहीं
मगर आरज़ू है कि जब कज़ा
मुझे बज़्मे-दहरसे ले चले
तो फिर एक बार ये अज़न दे
कि लहद से लौट के आ सकूँ
तिरे दर पे आ के सदा करूँ
तुझे ग़म-गुसार की हो तलब तो तिरे हुज़ूर में जा रहूँ
ये न हो तो सूए-रहे-अदम में फिर एक बार रवाना हूँ
——
शब्दार्थ :
मोजज़ों = करामातों, चमत्कारों
कज़ा = मृत्यु, मौत
बज़्मे-दहर = दुनिया की महफिल
अज़न = इजाज़त
लहद = क़ब्र
सूए-रहे-अदम में = परलोक के रास्ते पर