भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"बेवजह मुस्कान टुकड़ों में बंटी मोनालिजा / चन्द्र त्रिखा" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=चन्द्र त्रिखा |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
22:46, 18 अगस्त 2025 के समय का अवतरण
बेवजह मुस्कान टुकड़ों में बंटी मोनालिजा
क्या बताएँ ज़िन्दगी कैसे कटी मोनालिजा
रंग थे, शोखी थी, उड़ने की वजह मौजूद थी
जिन्दगी यूं थी कि तितली, परकटी, मोनालिजा
सिर्फ इक मुस्कान पर सदियों बहस चलती रही
शख्सियत सब दानिशों की सरकटी मोनालिजा
थी बड़ी रुतबों की बातें, तालियाँ बजतीं रहीं
गुरबतें थीं, सिर्फ़ कोनों में सटी मोनालिजा