भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"अब सुनहरे ख़्वाब से / विनीत पाण्डेय" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विनीत पाण्डेय |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

22:33, 21 अगस्त 2025 के समय का अवतरण

अब सुनहरे ख़्वाब से आँखों की दूरी है बहुत
चार रोटी काम के बदले मजूरी है बहुत
जान कर भी झूठ का सिक्का है चलता अब यहाँ
बोलती सच ये जुबाँ भी बे-शऊरी है बहुत
पा रहा हर शय वह क्योंकि एक खूबी उसमें है
उसके लहजे में शुरू से जी हुज़ूरी है बहुत
शेर का मजमून होता ग़ौर के क़ाबिल मगर
शेर कहने का सलीक़ा भी ज़रूरी है बहुत
लिख चुका हूँ जो हुआ है ज़िन्दगी में अब तलक
पर अभी मेरी कहानी तो अधूरी है बहुत