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Kavita Kosh से
संविधान की धाराओं को
स्वार्थ के गटर में
हर प्रयास ज़ारी है
ख़ुशबू के तस्करों पर
हर काली तस्वीर
सुनहरे फ्रेम में जड़ी है।
सारे काम अपने -आप हो रहे हैं
जिसकी अंटी मे गवाह है
उसके सारे खून
माफ़ हो रहे हैं
इंसानियत मर रही है
और रजनीतिराजनीतिसभ्यता के सफेद सफ़ेद कैनवास पर
आदमी के ख़ून से
हस्ताक्षर कर रही है।