भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"आओ लिखें दीप / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' }} {{KKCatKavita...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
11:03, 27 अक्टूबर 2025 के समय का अवतरण
साथ सारे छोड़ देंगे मोड़ पर
एक तुम हो साथ यह विश्वास है।
हम अँधेरों से लड़ें, आगे बढ़ें
होगा उजेरा आज भी आस है।
आओ लिखें दीप नभ के भाल पर
अधर हँसे कि झरें पारिजात भी।
सुरभि में नहाकर हो पुलकित धरा
ओस भीगे सभी पुलकित पात भी।
बुहारता उदासियों की धूल को
थिरकता गली -गली में उजास है।
हम अँधेरों से लड़ें, आगे बढ़ें
होगा उजेरा आज भी आस है ।
