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"बच्ची और एक बूढ़ा पेड़ / आर. चेतनक्रांति" के अवतरणों में अंतर

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'''एक पानी की पुडि़या मिली है / माथे पर बांधे फिरता हूँ / बूंद-बूंद टपकती है / कभी आँख से / कभी रूह पर।'''
 
'''एक पानी की पुडि़या मिली है / माथे पर बांधे फिरता हूँ / बूंद-बूंद टपकती है / कभी आँख से / कभी रूह पर।'''
  
'''(शुभ्रा के लिए)'''
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(शोभा के लिए
  
  
  
 
बच्‍ची एक खूबसूरत चिडि़या का नाम था
 
बच्‍ची एक खूबसूरत चिडि़या का नाम था
 
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जिसने एक बूढ़े और खोखले पेड़ के दिल  
जिसने एक बूढ़े और खोखले पेड़ के दिल में
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घोंसला बना रखा था
 
घोंसला बना रखा था
  
 
पेड़ बहुत पुराना था
 
पेड़ बहुत पुराना था
 
 
और उसने अपनी पुख़्तगी को तार-तार होते देखा था
 
और उसने अपनी पुख़्तगी को तार-तार होते देखा था
 
 
ज़र्रा-ज़र्रा उसे याद था जो उसके वजूद से फिसलकर
 
ज़र्रा-ज़र्रा उसे याद था जो उसके वजूद से फिसलकर
 
 
वक़्त की नदी में चला गया था
 
वक़्त की नदी में चला गया था
  
  
 
बच्‍ची अभी-अभी दुनिया में आई थी
 
बच्‍ची अभी-अभी दुनिया में आई थी
 
 
और उसे मालूम भी नहीं था
 
और उसे मालूम भी नहीं था
 
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कि जहाँ उसने डेरा डाला है उस खोखल में कितने प्रेत रहते हैं
कि जहाँ उसने डेरा डाला है उस खोखले में कितने प्रेत रहते हैं
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उसे ज्ञान-पिपासा नहीं थी
 
उसे ज्ञान-पिपासा नहीं थी
 
 
वह इस दुनिया को उसी रूप में देखना चाहती थी
 
वह इस दुनिया को उसी रूप में देखना चाहती थी
 
 
जिस रूप में वह दिखती थी
 
जिस रूप में वह दिखती थी
  
 
वह यह भी नहीं चाहती थी कि उसे विश्‍वास हो
 
वह यह भी नहीं चाहती थी कि उसे विश्‍वास हो
 
 
विश्‍वास और आस्‍था उसके लिए
 
विश्‍वास और आस्‍था उसके लिए
 
 
पेड़ की पत्तियों जैसे थे जो होते हैं
 
पेड़ की पत्तियों जैसे थे जो होते हैं
 
 
अगर पेड़ होता है
 
अगर पेड़ होता है
  
  
 
इसलिए पेड़ भयभीत रहता था
 
इसलिए पेड़ भयभीत रहता था
 
 
हवा उसे हिलाती
 
हवा उसे हिलाती
 
 
तो वह झुंझलाता
 
तो वह झुंझलाता
 
 
जंगल उसे पुकारता  
 
जंगल उसे पुकारता  
 
 
तो वह एक गमगीन 'हूँ' करता
 
तो वह एक गमगीन 'हूँ' करता
 
 
जो कहती थी
 
जो कहती थी
 
 
कि मुझे मत पुकारो मैं नहीं बोल सकूंगा बच्‍ची डर जाएगी
 
कि मुझे मत पुकारो मैं नहीं बोल सकूंगा बच्‍ची डर जाएगी
 
 
कि मेरी आवाज़ में डरावने मुर्दे चीखते हैं
 
कि मेरी आवाज़ में डरावने मुर्दे चीखते हैं
 
 
गालियाँ बकते हैं असंतुष्‍ट बूढ़े और अतृप्‍त बुढि़याएँ
 
गालियाँ बकते हैं असंतुष्‍ट बूढ़े और अतृप्‍त बुढि़याएँ
 
 
 
गुस्‍सा झींकता है अपनी बेबसी को
 
गुस्‍सा झींकता है अपनी बेबसी को
 
 
और इच्‍छा रोती है अपने वैधव्‍य को
 
और इच्‍छा रोती है अपने वैधव्‍य को
  
 
और बच्‍ची यह भी नहीं जानना चाहती थी
 
और बच्‍ची यह भी नहीं जानना चाहती थी
 
 
कि इस पेड़ का नाम क्‍या है
 
कि इस पेड़ का नाम क्‍या है
 
 
यह कहाँ से आया है
 
यह कहाँ से आया है
 
 
और यहाँ से कहाँ जाएगा
 
और यहाँ से कहाँ जाएगा
 
 
उसका उस पाप से कोई वास्‍ता नहीं था
 
उसका उस पाप से कोई वास्‍ता नहीं था
 
 
जो उसे घेरे हुए था
 
जो उसे घेरे हुए था
 
  
 
 
 
  
 
फिर एक दिन यूँ गुजरा
 
फिर एक दिन यूँ गुजरा
 
 
कि जंगल में एक नियम आया
 
कि जंगल में एक नियम आया
 
 
उसने कहा कि प्रेम की बात हम नहीं करते
 
उसने कहा कि प्रेम की बात हम नहीं करते
 
 
हम सिर्फ़ इतना जानते हैं
 
हम सिर्फ़ इतना जानते हैं
 
 
कि पुकारा जाए तो आप हाजिर हों
 
कि पुकारा जाए तो आप हाजिर हों
 
 
जवाब दें जब सवाल सामने हो
 
जवाब दें जब सवाल सामने हो
 
 
उठकर सलाम बजाएँ जब सवारी गुजरे
 
उठकर सलाम बजाएँ जब सवारी गुजरे
 
 
हरकत में दिखें जब तैयारियाँ चल रही हों युद्ध की
 
हरकत में दिखें जब तैयारियाँ चल रही हों युद्ध की
  
  
 
और प्रेम मर गया
 
और प्रेम मर गया
 
 
पेड़ ने अपनी तमाम हिंसा और तमाम क्रोध को गूँथा
 
पेड़ ने अपनी तमाम हिंसा और तमाम क्रोध को गूँथा
 
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और तीर चलाये ज़हरीले  
और तीर चले ज़हरीले  
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लेकिन चिडि़या जो मरी वह तीर से नहीं
 
लेकिन चिडि़या जो मरी वह तीर से नहीं
 
 
तीर की मौजूदगी से मरी
 
तीर की मौजूदगी से मरी
 
  
 
पेड़ जंगल से उठा
 
पेड़ जंगल से उठा
 
 
सब तरफ शांति थी  
 
सब तरफ शांति थी  
 
 
एक भी मुर्दा साँस नहीं ले रहा था
 
एक भी मुर्दा साँस नहीं ले रहा था
 
 
 
 
 
 
न पेड़ के भीतर न पेड़ के बाहर
 
न पेड़ के भीतर न पेड़ के बाहर
  
 
पल गुजरे जैसे शापित ग्रह गुजरते होंगे
 
पल गुजरे जैसे शापित ग्रह गुजरते होंगे
 
 
अंतरिक्ष में चुपचाप
 
अंतरिक्ष में चुपचाप
 
 
और फिर एक आर्त्‍तनाद सुना गया
 
और फिर एक आर्त्‍तनाद सुना गया
 
 
 
 
 
 
पूरे जंगल में जैसा कभी किसी ने  
 
पूरे जंगल में जैसा कभी किसी ने  
 
 
किसी जिंदा या मुर्दा काठ के भीतर से नहीं सुना था।
 
किसी जिंदा या मुर्दा काठ के भीतर से नहीं सुना था।
  
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बच्‍ची लेकिन मरी नहीं थी
 
बच्‍ची लेकिन मरी नहीं थी
 
 
उसकी पारदर्शी त्‍वचा के भीतर
 
उसकी पारदर्शी त्‍वचा के भीतर
 
 
एक पूरी दुनिया आबाद थी
 
एक पूरी दुनिया आबाद थी
 
 
जीवन की जो बाहर से नहीं दिखती थी
 
जीवन की जो बाहर से नहीं दिखती थी
  
  
 
पेड़ ने आँसू नहीं पोंछे थे
 
पेड़ ने आँसू नहीं पोंछे थे
 
 
जब वह शहर में आया शहर उसे पानी की
 
जब वह शहर में आया शहर उसे पानी की
 
 
एक झिलमिल चादर में उतराता दिखाई दिया
 
एक झिलमिल चादर में उतराता दिखाई दिया
 
  
 
 
 
  
 
लोग तलवारें भाँजते इधर-उधर बह रहे थे
 
लोग तलवारें भाँजते इधर-उधर बह रहे थे
 
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पानी में पालथी मार वे रेत के किले बनाते
पानी में पाल थी मार वे रेत के किले बनाते
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और एक-दूसरे पर टूट पड़ते और इस तरह
 
और एक-दूसरे पर टूट पड़ते और इस तरह
 
 
सभ्‍यता को जारी रखते
 
सभ्‍यता को जारी रखते
  
  
 
बच्‍ची के पंखों से धुली नई आँखों से
 
बच्‍ची के पंखों से धुली नई आँखों से
 
 
पेड़ ने फिर शहर को देखा
 
पेड़ ने फिर शहर को देखा
 
 
और काँपता हाथ बढ़ाकर एक बनिये से
 
और काँपता हाथ बढ़ाकर एक बनिये से
 
 
एक पुडि़या मांगी अंतिम निराशा की
 
एक पुडि़या मांगी अंतिम निराशा की
 
 
 
ताकि लौटकर न आना पड़े
 
ताकि लौटकर न आना पड़े
 
 
 
 
  
 
ताकि वह चला जाए
 
ताकि वह चला जाए
 
 
नदी में बैठकर नाव की तरह
 
नदी में बैठकर नाव की तरह
 
 
अज्ञात के समुद्र में
 
अज्ञात के समुद्र में
  
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पेड़ को नहीं पता था
 
पेड़ को नहीं पता था
 
 
कि बच्‍ची मरी नहीं थी
 
कि बच्‍ची मरी नहीं थी
 
 
कि उसके भीतर अपने ही निष्‍पाप जिजीविषा की  
 
कि उसके भीतर अपने ही निष्‍पाप जिजीविषा की  
 
 
एक पूरी दुनिया आबाद थी
 
एक पूरी दुनिया आबाद थी
 
 
 
 
 
 
जिसे कोई नहीं मार सकता था
 
जिसे कोई नहीं मार सकता था
  
 
क्‍योंकि वह जीने के कारणों पर निर्भर नहीं थी।
 
क्‍योंकि वह जीने के कारणों पर निर्भर नहीं थी।
 
  
 
 
 
  
 
पर पेड़ एक पुराना स्‍वभाव था
 
पर पेड़ एक पुराना स्‍वभाव था
 
 
उसने पीड़ा को नहीं रोका
 
उसने पीड़ा को नहीं रोका
 
 
गोंद की तरह भरने दिया उसे
 
गोंद की तरह भरने दिया उसे
 
 
अपनी पपडि़यों,खोखलों और रंध्रों के भीतर
 
अपनी पपडि़यों,खोखलों और रंध्रों के भीतर
 
 
ताकि उसका अन्‍दर और बाहर एक हो जाए
 
ताकि उसका अन्‍दर और बाहर एक हो जाए
 
 
 
 
  
 
कि जब वह चले उसके पैरों के दोनों निशान
 
कि जब वह चले उसके पैरों के दोनों निशान
 
 
एक जैसे हों
 
एक जैसे हों
 
 
कि लड़खड़ाहट का कोई तीसरा क़दम
 
कि लड़खड़ाहट का कोई तीसरा क़दम
 
 
पीछे आनेवालों को बेभरोसा ना करे
 
पीछे आनेवालों को बेभरोसा ना करे
 
 
 
 
  
 
कि पेड़ एक अरसे से सच्‍चे दुख की खोज में था
 
कि पेड़ एक अरसे से सच्‍चे दुख की खोज में था
 
 
जो उसके कलुष और द्वैत को धो दे
 
जो उसके कलुष और द्वैत को धो दे
 
 
 
और बच्‍ची के जाने पर वह उसके सामने था
 
और बच्‍ची के जाने पर वह उसके सामने था
  
  
 
 
 
  
 
दुख वह जिसमें न कोई फाँक थी न झिर्री
 
दुख वह जिसमें न कोई फाँक थी न झिर्री
 
 
न जिससे हवा आती थी न आवाज़
 
न जिससे हवा आती थी न आवाज़
 
 
वह एक सपाट मैदान था जहां बैठकर पेड़
 
वह एक सपाट मैदान था जहां बैठकर पेड़
 
 
बच्‍ची से वो सारी बातें करता
 
बच्‍ची से वो सारी बातें करता
 
 
जो उसने नहीं की थीं
 
जो उसने नहीं की थीं
 
 
जब बच्‍ची होती थी
 
जब बच्‍ची होती थी
 
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उसे मालूम नहीं था, क्‍योंकि वह मालूमियत की हदों मे क़ैद था
उसे मालूम नहीं था क्‍योंकि वह मालूमियत की हदों का क़ैदी था
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कि बच्‍ची मरी नहीं है
 
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कि बच्‍ची मरी नहीं है वह भी सिर्फ़ इसलिए कि वह मर ही नहीं सकती थी
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क्‍योंकि बच्‍ची के रेशों में जीने की हिंस्र प्रतिज्ञा नहीं छिपी थी  
 
क्‍योंकि बच्‍ची के रेशों में जीने की हिंस्र प्रतिज्ञा नहीं छिपी थी  
 
 
वह रूई की तरह थी जितनी धुनी जाती
 
वह रूई की तरह थी जितनी धुनी जाती
 
 
उतनी ही निखरती जितनी मरती
 
उतनी ही निखरती जितनी मरती
 
 
उससे ज्‍यादा जी उठती
 
उससे ज्‍यादा जी उठती
 
  
 
 
 
  
 
पेड़ उसकी तस्‍वीर से बातें करता
 
पेड़ उसकी तस्‍वीर से बातें करता
 
 
जो तस्‍वीर नहीं थी
 
जो तस्‍वीर नहीं थी
 
 
तस्‍वीर की तस्‍वीर की तस्‍वीर थी
 
तस्‍वीर की तस्‍वीर की तस्‍वीर थी
 
 
जो मरने और जीने के पर्दों से छनकर
 
जो मरने और जीने के पर्दों से छनकर
 
 
पानी की फुहार की तरह उसके बूढ़े चेहरे पर गिरती थी
 
पानी की फुहार की तरह उसके बूढ़े चेहरे पर गिरती थी
 
  
 
वह चलता और चलते-चलते बैठ जाता
 
वह चलता और चलते-चलते बैठ जाता
 
 
सोचने लगता और सोचते-सोचते
 
सोचने लगता और सोचते-सोचते
 
 
आँसुओं की झील पर जा निकलता
 
आँसुओं की झील पर जा निकलता
 
 
मुँह धोता नहाता और साफ-सुथरा होकर
 
मुँह धोता नहाता और साफ-सुथरा होकर
 
 
वापस बातों की पगडंडी पर आ जाता
 
वापस बातों की पगडंडी पर आ जाता
 
  
 
 
 
  
 
राह के ठूँठ, पत्‍थर और घायल परिंदे
 
राह के ठूँठ, पत्‍थर और घायल परिंदे
 
 
उसके हाल-चाल पूछते और हर बार नई हर बार  
 
उसके हाल-चाल पूछते और हर बार नई हर बार  
 
 
निखरी उसकी आवाज़ से चकित रह जाते
 
निखरी उसकी आवाज़ से चकित रह जाते
 
  
 
वे देखते कि वह बदल रहा है
 
वे देखते कि वह बदल रहा है
 
 
जैसे पृथ्‍वी बदलती रहती है अपनी आंच से
 
जैसे पृथ्‍वी बदलती रहती है अपनी आंच से
 
 
भीतर-भीतर वह दुख से बदल रहा था
 
भीतर-भीतर वह दुख से बदल रहा था
  
  
 
वह किसी से मिलता बातें करता और ऐसा होता
 
वह किसी से मिलता बातें करता और ऐसा होता
 
+
कि सहसा भीतर की घू घू में सब-कुछ डूब जाता
 
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कि सहसा भीतर की धूँ-धूँ में सब-कुछ डूब जाता
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वह पूछता-- मैं क्‍या कह रहा था और आप
 
वह पूछता-- मैं क्‍या कह रहा था और आप
 
 
चलिए शुरू से शुरू करिए
 
चलिए शुरू से शुरू करिए
  
 
क्‍योंकि आप तो कर सकते हैं
 
क्‍योंकि आप तो कर सकते हैं
 
  
 
तब एक दिन उसे संदेश मिला झील में तैरता हुआ दो पत्‍ते पर
 
तब एक दिन उसे संदेश मिला झील में तैरता हुआ दो पत्‍ते पर
 
 
कि बच्‍ची कमजोरी नहीं ताकत बनना चाहती है
 
कि बच्‍ची कमजोरी नहीं ताकत बनना चाहती है
 
 
 
यह एक उद्घाटन था पेड़ को लगा
 
यह एक उद्घाटन था पेड़ को लगा
 
 
कि बच्‍ची उतनी इकहरी नहीं जितनी दिखती थी
 
कि बच्‍ची उतनी इकहरी नहीं जितनी दिखती थी
 
 
और उसे निर्भरता महसूस हुई जो उसके तने के नीचे  
 
और उसे निर्भरता महसूस हुई जो उसके तने के नीचे  
 
 
राख की तरह पड़ी रहती थी
 
राख की तरह पड़ी रहती थी
  
 
और तलब
 
और तलब
 
 
वह जला
 
वह जला
 
 
और कई दिन झील में पाँव डाले बैठा रहा
 
और कई दिन झील में पाँव डाले बैठा रहा
 
 
 
यह शक उसे बाद में हुआ कि बच्‍ची ज़िंदा है
 
यह शक उसे बाद में हुआ कि बच्‍ची ज़िंदा है
 
  
 
 
 
  
 
फिर उस दिन उसने बच्‍ची को देखा
 
फिर उस दिन उसने बच्‍ची को देखा
 
 
आँसुओं की उस दुनिया जितनी बड़ी झील के उस तरफ
 
आँसुओं की उस दुनिया जितनी बड़ी झील के उस तरफ
 
 
वह एक सफ़ेद पत्‍थर पर बैठी थी
 
वह एक सफ़ेद पत्‍थर पर बैठी थी
  
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वह डरी
 
वह डरी
 
 
और चली
 
और चली
  
अपने द्वीप पर दो क़दम अंदर से दो क़दम बाहर
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अपने द्वीप पर दो क़दम अंदर दो क़दम बाहर
 
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और उड़ने से पहले
 
और उड़ने से पहले
 
 
पेड़ की तरफ पीठ करके एक बार हिचकी में हिली
 
पेड़ की तरफ पीठ करके एक बार हिचकी में हिली
 
  
 
पेड़ को लगा जैसे झील हिली
 
पेड़ को लगा जैसे झील हिली
 
 
जैसे जंगल हिला
 
जैसे जंगल हिला
 
 
जैसे पृथ्‍वी हिली
 
जैसे पृथ्‍वी हिली
 
 
जैसे कोई पाप-जर्जर शरीर हिलता है
 
जैसे कोई पाप-जर्जर शरीर हिलता है
 
 
अवसान के पहले की आखिरी खाँसी में
 
अवसान के पहले की आखिरी खाँसी में
  
 
ऐसे हिली दुनिया
 
ऐसे हिली दुनिया
 
  
 
 
 
 
और अंत में
 
 
 
एक घर होता है रेत का बच्‍चे जिसे
 
एक घर होता है रेत का बच्‍चे जिसे
 
 
खेल-खेल में बनाकर घर चले जाते हैं
 
खेल-खेल में बनाकर घर चले जाते हैं
 
 
फिर वह ढह जाता है
 
फिर वह ढह जाता है
  
 
पेड़ ऐसे ढ़हा जब चिडि़या उड़ी
 
पेड़ ऐसे ढ़हा जब चिडि़या उड़ी
 
 
उसने शून्‍य को देखा
 
उसने शून्‍य को देखा
 
 
जो दुनिया के चमचमाते कंगूरों के बीच
 
जो दुनिया के चमचमाते कंगूरों के बीच
 
 
हमेशा फैला रहता है
 
हमेशा फैला रहता है
 
 
पर जिसे हम छू नहीं पाते
 
पर जिसे हम छू नहीं पाते
  
 
पेड़ ने उसे छुआ
 
पेड़ ने उसे छुआ
 
 
  
 
 
  
 
फिर शक्ति को छूने के लिए हाथ बढ़ाया
 
फिर शक्ति को छूने के लिए हाथ बढ़ाया
 
 
एक अस्थिर , निराकार और बेचेहरा लपट
 
एक अस्थिर , निराकार और बेचेहरा लपट
 
 
जो झील की छाती से उठ रही थी
 
जो झील की छाती से उठ रही थी
  
  
नातवानी का ये आलम था कि उठते न बने
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'''नातवानी का ये आलम था कि उठते न बने
 
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और यूँ ख़ूब था बारे जहाँ, कि जाए क्‍यों।'''
और यूँ ख़ूब था बारे जहाँ, कि जाए क्‍यों।
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09:35, 30 नवम्बर 2008 का अवतरण



एक पानी की पुडि़या मिली है / माथे पर बांधे फिरता हूँ / बूंद-बूंद टपकती है / कभी आँख से / कभी रूह पर।

(शोभा के लिए


बच्‍ची एक खूबसूरत चिडि़या का नाम था जिसने एक बूढ़े और खोखले पेड़ के दिल घोंसला बना रखा था

पेड़ बहुत पुराना था और उसने अपनी पुख़्तगी को तार-तार होते देखा था ज़र्रा-ज़र्रा उसे याद था जो उसके वजूद से फिसलकर वक़्त की नदी में चला गया था


बच्‍ची अभी-अभी दुनिया में आई थी और उसे मालूम भी नहीं था कि जहाँ उसने डेरा डाला है उस खोखल में कितने प्रेत रहते हैं उसे ज्ञान-पिपासा नहीं थी वह इस दुनिया को उसी रूप में देखना चाहती थी जिस रूप में वह दिखती थी

वह यह भी नहीं चाहती थी कि उसे विश्‍वास हो विश्‍वास और आस्‍था उसके लिए पेड़ की पत्तियों जैसे थे जो होते हैं अगर पेड़ होता है


इसलिए पेड़ भयभीत रहता था हवा उसे हिलाती तो वह झुंझलाता जंगल उसे पुकारता तो वह एक गमगीन 'हूँ' करता जो कहती थी कि मुझे मत पुकारो मैं नहीं बोल सकूंगा बच्‍ची डर जाएगी कि मेरी आवाज़ में डरावने मुर्दे चीखते हैं गालियाँ बकते हैं असंतुष्‍ट बूढ़े और अतृप्‍त बुढि़याएँ गुस्‍सा झींकता है अपनी बेबसी को और इच्‍छा रोती है अपने वैधव्‍य को

और बच्‍ची यह भी नहीं जानना चाहती थी कि इस पेड़ का नाम क्‍या है यह कहाँ से आया है और यहाँ से कहाँ जाएगा उसका उस पाप से कोई वास्‍ता नहीं था जो उसे घेरे हुए था

फिर एक दिन यूँ गुजरा कि जंगल में एक नियम आया उसने कहा कि प्रेम की बात हम नहीं करते हम सिर्फ़ इतना जानते हैं कि पुकारा जाए तो आप हाजिर हों जवाब दें जब सवाल सामने हो उठकर सलाम बजाएँ जब सवारी गुजरे हरकत में दिखें जब तैयारियाँ चल रही हों युद्ध की


और प्रेम मर गया पेड़ ने अपनी तमाम हिंसा और तमाम क्रोध को गूँथा और तीर चलाये ज़हरीले


लेकिन चिडि़या जो मरी वह तीर से नहीं तीर की मौजूदगी से मरी

पेड़ जंगल से उठा सब तरफ शांति थी एक भी मुर्दा साँस नहीं ले रहा था न पेड़ के भीतर न पेड़ के बाहर

पल गुजरे जैसे शापित ग्रह गुजरते होंगे अंतरिक्ष में चुपचाप और फिर एक आर्त्‍तनाद सुना गया पूरे जंगल में जैसा कभी किसी ने किसी जिंदा या मुर्दा काठ के भीतर से नहीं सुना था।



बच्‍ची लेकिन मरी नहीं थी उसकी पारदर्शी त्‍वचा के भीतर एक पूरी दुनिया आबाद थी जीवन की जो बाहर से नहीं दिखती थी


पेड़ ने आँसू नहीं पोंछे थे जब वह शहर में आया शहर उसे पानी की एक झिलमिल चादर में उतराता दिखाई दिया

लोग तलवारें भाँजते इधर-उधर बह रहे थे पानी में पालथी मार वे रेत के किले बनाते और एक-दूसरे पर टूट पड़ते और इस तरह सभ्‍यता को जारी रखते


बच्‍ची के पंखों से धुली नई आँखों से पेड़ ने फिर शहर को देखा और काँपता हाथ बढ़ाकर एक बनिये से एक पुडि़या मांगी अंतिम निराशा की ताकि लौटकर न आना पड़े

ताकि वह चला जाए नदी में बैठकर नाव की तरह अज्ञात के समुद्र में

जहाँ बच्‍ची और प्रेम चले गए थे


पेड़ को नहीं पता था कि बच्‍ची मरी नहीं थी कि उसके भीतर अपने ही निष्‍पाप जिजीविषा की एक पूरी दुनिया आबाद थी जिसे कोई नहीं मार सकता था

क्‍योंकि वह जीने के कारणों पर निर्भर नहीं थी।

पर पेड़ एक पुराना स्‍वभाव था उसने पीड़ा को नहीं रोका गोंद की तरह भरने दिया उसे अपनी पपडि़यों,खोखलों और रंध्रों के भीतर ताकि उसका अन्‍दर और बाहर एक हो जाए

कि जब वह चले उसके पैरों के दोनों निशान एक जैसे हों कि लड़खड़ाहट का कोई तीसरा क़दम पीछे आनेवालों को बेभरोसा ना करे

कि पेड़ एक अरसे से सच्‍चे दुख की खोज में था जो उसके कलुष और द्वैत को धो दे और बच्‍ची के जाने पर वह उसके सामने था


दुख वह जिसमें न कोई फाँक थी न झिर्री न जिससे हवा आती थी न आवाज़ वह एक सपाट मैदान था जहां बैठकर पेड़ बच्‍ची से वो सारी बातें करता जो उसने नहीं की थीं जब बच्‍ची होती थी उसे मालूम नहीं था, क्‍योंकि वह मालूमियत की हदों मे क़ैद था कि बच्‍ची मरी नहीं है क्‍योंकि बच्‍ची के रेशों में जीने की हिंस्र प्रतिज्ञा नहीं छिपी थी वह रूई की तरह थी जितनी धुनी जाती उतनी ही निखरती जितनी मरती उससे ज्‍यादा जी उठती

पेड़ उसकी तस्‍वीर से बातें करता जो तस्‍वीर नहीं थी तस्‍वीर की तस्‍वीर की तस्‍वीर थी जो मरने और जीने के पर्दों से छनकर पानी की फुहार की तरह उसके बूढ़े चेहरे पर गिरती थी

वह चलता और चलते-चलते बैठ जाता सोचने लगता और सोचते-सोचते आँसुओं की झील पर जा निकलता मुँह धोता नहाता और साफ-सुथरा होकर वापस बातों की पगडंडी पर आ जाता

राह के ठूँठ, पत्‍थर और घायल परिंदे उसके हाल-चाल पूछते और हर बार नई हर बार निखरी उसकी आवाज़ से चकित रह जाते

वे देखते कि वह बदल रहा है जैसे पृथ्‍वी बदलती रहती है अपनी आंच से भीतर-भीतर वह दुख से बदल रहा था


वह किसी से मिलता बातें करता और ऐसा होता कि सहसा भीतर की घू घू में सब-कुछ डूब जाता वह पूछता-- मैं क्‍या कह रहा था और आप चलिए शुरू से शुरू करिए

क्‍योंकि आप तो कर सकते हैं

तब एक दिन उसे संदेश मिला झील में तैरता हुआ दो पत्‍ते पर कि बच्‍ची कमजोरी नहीं ताकत बनना चाहती है यह एक उद्घाटन था पेड़ को लगा कि बच्‍ची उतनी इकहरी नहीं जितनी दिखती थी और उसे निर्भरता महसूस हुई जो उसके तने के नीचे राख की तरह पड़ी रहती थी

और तलब वह जला और कई दिन झील में पाँव डाले बैठा रहा यह शक उसे बाद में हुआ कि बच्‍ची ज़िंदा है

फिर उस दिन उसने बच्‍ची को देखा आँसुओं की उस दुनिया जितनी बड़ी झील के उस तरफ वह एक सफ़ेद पत्‍थर पर बैठी थी

आधी डूबी हुई ख़ुशी में आधी उबरी हुई दुख में

वह डरी और चली

अपने द्वीप पर दो क़दम अंदर दो क़दम बाहर और उड़ने से पहले पेड़ की तरफ पीठ करके एक बार हिचकी में हिली

पेड़ को लगा जैसे झील हिली जैसे जंगल हिला जैसे पृथ्‍वी हिली जैसे कोई पाप-जर्जर शरीर हिलता है अवसान के पहले की आखिरी खाँसी में

ऐसे हिली दुनिया

० एक घर होता है रेत का बच्‍चे जिसे खेल-खेल में बनाकर घर चले जाते हैं फिर वह ढह जाता है

पेड़ ऐसे ढ़हा जब चिडि़या उड़ी उसने शून्‍य को देखा जो दुनिया के चमचमाते कंगूरों के बीच हमेशा फैला रहता है पर जिसे हम छू नहीं पाते

पेड़ ने उसे छुआ

फिर शक्ति को छूने के लिए हाथ बढ़ाया एक अस्थिर , निराकार और बेचेहरा लपट जो झील की छाती से उठ रही थी


नातवानी का ये आलम था कि उठते न बने और यूँ ख़ूब था बारे जहाँ, कि जाए क्‍यों।