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"शायरी का इंक़लाब / शैल चतुर्वेदी" के अवतरणों में अंतर

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एक दिन अकस्मात
 
एक दिन अकस्मात
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कहने लगे-"जो लोग
 
कहने लगे-"जो लोग
 
कविता को कैश कर रहे है
 
कविता को कैश कर रहे है
 
वे ऐश कर रहे हैं
 
वे ऐश कर रहे हैं
लिखने वाल मौन है
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श्रोता तो यह देखता है
 
श्रोता तो यह देखता है
 
कि पढ़ने वाला कौन है
 
कि पढ़ने वाला कौन है
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उर्दू का रिजेक्टेड माल  
 
उर्दू का रिजेक्टेड माल  
 
हिन्दी में चल रहा है
 
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चोरें के भरोसे  
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ग़ज़ल किसी की
 
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अखिल भारतीय बना दिया
 
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सारे देश में घुमा दिया
 
सारे देश में घुमा दिया
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15:48, 1 दिसम्बर 2008 के समय का अवतरण

एक दिन अकस्मात
एक पुराने मित्र से
हो गई मुलाकात
कहने लगे-"जो लोग
कविता को कैश कर रहे है
वे ऐश कर रहे हैं
लिखने वाले मौन है
श्रोता तो यह देखता है
कि पढ़ने वाला कौन है
लोग-बाग
चार-ग़ज़लें
और दो लोक गीत चुराकर
अपने नाम से सुना रहे हैं
भगवान ने उन्हे ख़ूबसूरत बनाया है
वे ज़माने को
बेवकूफ़ बना रहे हैं
सूरत और सुर ठीक हो
तो कविता लाजवाब है
यही शायरी का इंक़लाब है
उर्दू का रिजेक्टेड माल
हिन्दी में चल रहा है
चोरों के भरोसे
ख़ानदान पल रहा है
ग़ज़ल किसी की
फ़सल किसी की
भला किसी का

एक लोकल कवि की लाइन
अखिल भारतीय ने मार दी
लोकल चिल्लाया
"अबे, चिल्लाता क्यों है
तेरी लोकल लाइन को
अखिल भारतीय बना दिया
सारे देश में घुमा दिया