भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"मौसम मेरे शहर का चालाक हो गया था / ज्ञान प्रकाश विवेक" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ज्ञान प्रकाश विवेक |संग्रह=गुफ़्तगू अवाम से है /...)
 
(कोई अंतर नहीं)

16:06, 1 दिसम्बर 2008 के समय का अवतरण

मौसम मेरे शहर का चालाक हो गया था
बादल ख़रीदकर वो बरसात बेचता था

जलते रहे जो शब भर फ़ानूस थे तुम्हारे
जो बुझ गया था मेरी दहलीज़ का दिया था

वो डायरी भी अब तो गुम हो गई है मुझसे
ऐ दोस्त,जिसमे तेरे घर का पता लिखा था

आकाश की थी हसरत उस गेंद को वो छू ले
नन्हा-सा एक बालक जिसको उछालता था

बारिश के वक़्त सारी बस्ती के लोग ख़ुश थे
काग़ज़ का शामियाना सहमा हुआ खड़ा था

जब लौट कर मैं आया तो हो चुका था गूँगा
पत्थर के देवता से हासिल भी क्या हुआ था.