भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"उनका जो ख़ुश्बुओं का डेरा है/ नवनीत शर्मा" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नवनीत शर्मा }} Category:ग़ज़ल <poem> उनका जो ख़ुश्बुओं क...)
 
(कोई अंतर नहीं)

20:14, 1 दिसम्बर 2008 के समय का अवतरण

उनका जो ख़ुश्बुओं का डेरा है
हाँ, वही ज़ह्र का बसेरा है

सच के क़स्बे का जो अँधेरा है
झूठ के शहर का सवेरा है

मैं सिकंदर हूँ एक वक़्फ़े का
तू मुक़द्दर है वक्त तेरा है

दूर होकर भी पास है कितना
जिसकी पलकों में अश्क मेरा है

जो तुझे तुझ से छीनने आया
यार मेरा रक़ीब तेरा है

मैं चमकता हूँ उसके चेहरे पर
चाँद पर दाग़ का बसेरा है.