भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"श्वेताश्वतरोपनिषद / मृदुल कीर्ति" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मृदुल कीर्ति }} Category:लम्बी रचना Category:उपनिषद [[Category:...) |
|||
(एक अन्य सदस्य द्वारा किये गये बीच के 2 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति 24: | पंक्ति 24: | ||
</span> | </span> | ||
− | + | * [[प्रथम अध्याय / श्वेताश्वतरोपनिषद / मृदुल कीर्ति]] | |
− | + | * [[द्वितीय अध्याय / श्वेताश्वतरोपनिषद / मृदुल कीर्ति]] | |
− | + | * [[तृतीय अध्याय / श्वेताश्वतरोपनिषद / मृदुल कीर्ति]] | |
− | + | * [[चतुर्थ अध्याय / श्वेताश्वतरोपनिषद / मृदुल कीर्ति]] | |
− | + | * [[पंचम अध्याय / श्वेताश्वतरोपनिषद / मृदुल कीर्ति]] | |
− | + | * [[षष्ठ अध्याय / श्वेताश्वतरोपनिषद / मृदुल कीर्ति]] | |
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + |
22:21, 4 दिसम्बर 2008 के समय का अवतरण
ॐ
शान्ति मंत्र
ॐ सहनाववतु । सह नौ भुनक्तु । सह वीर्यं करवावहै ।
तेजस्वि नावधीतमस्तु । मा विद्विषावहै ॥
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥
रक्षा करो, पोषण करो, गुरु शिष्य की प्रभु आप ही,
ज्ञातव्य ज्ञान हो तेजमय, शक्ति मिले अतिशय मही।
न हों पराजित हम किसी से ज्ञान विद्या क्षेत्र में,
हो त्रिविध तापों की निवृति, अशेष प्रेम हो नेत्र में।