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"श्वेताश्वतरोपनिषद / मृदुल कीर्ति" के अवतरणों में अंतर

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* [[चतुर्थ अध्याय / श्वेताश्वतरोपनिषद / मृदुल कीर्ति]]
* [[प्रथम अध्याय / श्वेताश्वतरोपनिषद / मृदुल कीर्ति]]
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* [[पंचम अध्याय / श्वेताश्वतरोपनिषद / मृदुल कीर्ति]]
* [[प्रथम अध्याय / श्वेताश्वतरोपनिषद / मृदुल कीर्ति]]
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* [[षष्ठ अध्याय / श्वेताश्वतरोपनिषद / मृदुल कीर्ति]]

22:21, 4 दिसम्बर 2008 के समय का अवतरण




शान्ति मंत्र

ॐ सहनाववतु । सह नौ भुनक्तु । सह वीर्यं करवावहै ।
तेजस्वि नावधीतमस्तु । मा विद्विषावहै ॥
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥

रक्षा करो, पोषण करो, गुरु शिष्य की प्रभु आप ही,
ज्ञातव्य ज्ञान हो तेजमय, शक्ति मिले अतिशय मही।
न हों पराजित हम किसी से ज्ञान विद्या क्षेत्र में,
हो त्रिविध तापों की निवृति, अशेष प्रेम हो नेत्र में।