भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"श्वेताश्वतरोपनिषद / मृदुल कीर्ति" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 29: पंक्ति 29:
 
* [[चतुर्थ अध्याय / श्वेताश्वतरोपनिषद / मृदुल कीर्ति]]
 
* [[चतुर्थ अध्याय / श्वेताश्वतरोपनिषद / मृदुल कीर्ति]]
 
* [[पंचम अध्याय / श्वेताश्वतरोपनिषद / मृदुल कीर्ति]]
 
* [[पंचम अध्याय / श्वेताश्वतरोपनिषद / मृदुल कीर्ति]]
 +
* [[षष्ठ अध्याय / श्वेताश्वतरोपनिषद / मृदुल कीर्ति]]

22:21, 4 दिसम्बर 2008 के समय का अवतरण




शान्ति मंत्र

ॐ सहनाववतु । सह नौ भुनक्तु । सह वीर्यं करवावहै ।
तेजस्वि नावधीतमस्तु । मा विद्विषावहै ॥
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥

रक्षा करो, पोषण करो, गुरु शिष्य की प्रभु आप ही,
ज्ञातव्य ज्ञान हो तेजमय, शक्ति मिले अतिशय मही।
न हों पराजित हम किसी से ज्ञान विद्या क्षेत्र में,
हो त्रिविध तापों की निवृति, अशेष प्रेम हो नेत्र में।