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::याज्ञादी और शुभ कर्म हम निष्काम भाव से सर्वदा,<br>::प्रभुवर करें सामर्थ्य वह, देना हमें हे वसुविदा।<br>::भाव सिंधु करने को पार इच्छुक को, जो पद भय रहित है,<br>::मिले ब्रह्म जब कि प्रार्थना की भावना सन्निहित है॥ [ २ ]<br><br>
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::सब इंद्रियों को ज्ञानियों ने, रूप अश्वों का कहा,<br>::विषयों में जग के विचरने का, मार्ग अति मोहक महा।<br>::मनचंचला और देह इन्द्रियों से युक्त है जीवात्मा,<br>::बहु भोग विषयों में लीन हो, भूला है वह परमात्मा॥ [ ४ ]<br><br>
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::वश में हैं जिसकी इन्द्रियाँ, मन से वही संपन्न है,<br>::मन से ही लौकिक और भौतिक, लक्ष्य सब निष्पन्न हैं।<br>::अति कुशल सारथि की तरह से, इन्द्रियाँ जिसकी सदा,<br>::हो वश में जिसके वह विवेकी, दिव्य पाये संपदा॥ [ ६ ]<br><br>
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::पर जो सदा संयम विवेकी, शुद्ध भाव से युक्त हैं,<br>::पद परम अधिकारी वही और मरण जन्म से मुक्त हैं।::निष्काम भाव से कर्म,कर्मा की जन्म मृत्यु भी शेष है,<br>::निःशेष शेष हों कर्म जिसके भक्त प्रभु का विशेष है॥ [ ८ ]<br><br>
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::इन्द्रियों से अति अधिक तो शब्द विषयों में वेग है,<br>::विषयों से भी बलवान मन का, प्रबल अति संवेग है|::इस मन से भी बुद्धि परम और बुद्धि से है आत्मा,<br>::अतः मानव आत्म बल संयम से हो परमात्मा॥ [ १० ]<br>
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