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रक्षक रचयिता जगत का अति आदि ब्रह्मा अति महे,<br>ब्रह्मा स्वयं भू देवताओं में प्रथम अति दिव्य हे !<br>स्व ज्येष्ठ पुत्र अथर्वा को, ब्रह्मा ने उपदिष्ट की,<br>
शुचिमूल भूता ब्रह्म विद्या, ब्रह्मा ने निर्दिष्ट की॥ [ १ ]<br><br>
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श्री ब्रह्मा ने जिस ब्रह्म विद्या को अथर्वा से कहा,<br>उसे अंगी ऋषि से अथर्वा ने पूर्व उससे भी कहा।<br>उन अंगी ऋषि ने भारद्वाजी सत्य वह ऋषि को कहा,<br>
पूर्ववत अथ पूर्ववत अथ पूर्ववत का क्रम रहा॥ [ २ ]<br><br>
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विख्यात कि शौनक मुनि, ऋषि कुल अधिष्ठाता जो थे,<br>ऋषि अंगीरा के पास आए , प्राण कुछ मन को मथे।<br>अति विनत हो पूछा कि भगवन , तत्व कौन सा है महे?<br>
जिसे जान कर हो विज्ञ सब कुछ, तत्व वह कृपया कहें॥ [ ३ ]<br><br>
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अथ ब्रह्म ज्ञाता दृढ़ता से, निश्चय से कहते सार हैं,<br>ये परा अपरा दो ही विद्याएँ हैं ज्ञान अपार है।<br>मानव को ये ही ज्ञान दो, जो श्रेय और ज्ञातव्य हैं,<br>
,शौनक मुनि से अंगिरा ऋषि ने कहा श्रोतव्य हैं॥ [ ४ ]<br><br>
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उन दोनों में से साम यजुः ऋग अथर्व अपरा वेद हैं,<br>छंद , ज्योतिष, व्याकरण, व् निरुक्त वेद के भेद हैं।<br>वह परा विद्या वेद की, जिससे कि ब्रह्म का ज्ञान हो,<br>
वेदांगों वेदों के ज्ञान से , मानव महिम हो महान हो॥ [ ५ ]<br><br>
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ज्ञान इन्द्रिय, कर्म इन्द्रिय, आकृति विहीन जो नित्य है,<br>अनुपम अग्रहायम विभु अगोत्रम है अदृश्य अचिन्त्य है।<br>प्रभु सर्वव्यापी सूक्ष्म अतिशय ब्रह्म अविनाशी महे,<br>
सब प्राणियों के परम कारण, पूर्ण प्रभु ज्ञानी कहे॥ [ ६ ] <br><br>
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ज्यों मकडी जले को बनाती और स्वयं ही निगलती ,<br>ज्यों विविध औषधियों धरा से , पुष्टि पाकर निकलतीं।<br>ज्यों प्राणियों के देह से रोयें व् कच उत्पन्न हो,<br>
त्यों ब्रह्म निष्कामी से सृष्टि में ही सब निष्पन्न हो॥ [ ७ ]<br><br>
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संकल्प तप से सृष्टि काले, ब्रह्म सृष्टि को रचे,<br>फ़िर सूक्ष्म से स्थूल अथ सृष्टि की सरंचना रुचे।<br>अथ अन्न से उत्पन्न प्राण हो, प्राण से मन सत्य भी,<br>
फ़िर लोक कर्म व् कर्म फल सुख दुःख रूप के कृत्य भी॥ [ ८ ]<br><br>
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इस सकल सृष्टि के आदि कारण, ब्रह्म तो सर्वज्ञ हैं,<br>सर्व ज्ञाता विश्व पोषक, ब्रह्म को सब विज्ञ है।<br>पर ब्रह्म का तप ज्ञान मय , जिससे वह रचता सृष्टि है,<br>
सब नाम रूप व् अन्न जग के, विराट की एक दृष्टि है॥ [ ९ ]<br><br>
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