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21:44, 5 दिसम्बर 2008 का अवतरण
सच ईंधन की तरह
जलता है,
खदबदाता है अदहन की तरह
कोई कीमियागर उसका धिकना
कम नहीं कर पाता,
उसे जलना पड़ता है हर हाल में
हर कहीं वह होता है मौजूद
वह सोता है
रसोई में, रास्ते में
नमक में घुलता
नदी में डूबता-उतराता
बचने के लिए छटपटाता
जबकि
झूठ
ऊँचे सुरों में चीखता-चिल्लाता चलाता है
अपनी हुकूमत
सच को झूठ करता
ख़ुश रहता है
सदा-सर्वदा