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"ख़ून ऐसा मुँह लगा है, जंगलों को पार कर / पवनेन्द्र पवन" के अवतरणों में अंतर
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‘आपका स्वागत है’ पढ़कर शहर की दीवार पर | ‘आपका स्वागत है’ पढ़कर शहर की दीवार पर | ||
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हम मगर बैठे ग़ज़ल लिखते रहे मल्हार पर. | हम मगर बैठे ग़ज़ल लिखते रहे मल्हार पर. | ||
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10:12, 9 दिसम्बर 2008 के समय का अवतरण
ख़ून ऐसा मुँह लगा है जंगलों को पार कर
गाँव तक आने लगे हैं भेड़िये अब मार पर
ख गईं चूज़ों को घर की बिल्लियाँ, परिवारजन-
झाड़ते फिरते रहे आक्रोश सब बटमार पर
हाथ काटा था मेरे दादा का जिस तलवार ने
मेरा पोता मारता है हाथ उस तलवार पर
कोई 'अभिमन्यु' निहत्था जाए न इस व्य़ूह में
‘आपका स्वागत है’ पढ़कर शहर की दीवार पर
खेत,घर,खलिहान अपने तो जला डाले गए
हम मगर बैठे ग़ज़ल लिखते रहे मल्हार पर.