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==अमरकांत समेत 24 लेखकों को अकादमी पुरस्कार==   
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नई दिल्ली। हिंदी के वयोवृद्ध लेखक एवं स्वंतत्रता सेनानी अमरकांत, उर्दू के आलोचक वहाब अशरफी और मैथिली के लेखक प्रदीप बिहारी समेत 24 भारतीय भाषाओं के साहित्यकारों को बुधवार को साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाजा गया।
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दरअसल अमरकांत को उनकी अनुपस्थिति में यह पुरस्कार प्रदान किया गया। वह अस्वस्थ होने के कारण समारोह में भाग लेने के लिए नहीं आ सके। बांग्ला के मशहूर लेखक सुनील गंगोपाध्याय ने एक गरिमामय समारोह में इन लेखकों को वर्ष 2007 के अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया।
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पुरस्कार में प्रत्येक लेखक को 50-50 हजार रुपये, एक प्रशस्ति पत्र, एक प्रतीक चिह्न और शॉल भेंट किया गया। उत्तर प्रदेश के बलिया जिले में जन्में अमरकांत को उनके चर्चित उपन्यास इन्हीं हथियारों से के लिए यह पुरस्कार दिया गया जो 1942 के भारत छोडो आंदोलन की पृष्ठभूमि पर आधारित है।
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इस बार बिहार के दो लेखकों सर्वश्री वहाब अशरफी और प्रदीप बिहारी को अकादमी पुरस्कार प्रदान किया गया। उडिया लेखक दीपक मिश्र और तेलुगु लेखक गाडियाराम रामकृष्ण शर्मा को मरणोपरांत यह पुरस्कार प्रदान किया गया।
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शेष पुरस्कृत लेखक इस प्रकार है: हरिदत्त शर्मा संस्कृत, कुंदनमाली राजस्थानी, रतनलाल शांत कश्मीरी, राजेन्द्र शुक्ल गुजराती, मालती राव अंग्रेजी, वासुदेव निर्मल सिंधी, लक्ष्मण श्रीमल नेपाली, गो मा पवार मराठी, ज्ञान सिंह मगोच डोगरी, अनिल कुमार ब्रह्म बोडो, समरेन्द्र सेनगुप्त बांग्ला, पुरवी बरमुदै असमिया, कु. वीर भ्रदप्पा कन्नड, देवीदास रा. कदम कोंकणी, जसवंत दीद पंजाबी, खेरवाल सोरेन संथाली, नील पट्टयनाभन तमिल, ए. सेतुमाधवन सेतु मलयालम और बी एम माइस्नाम्बा मणिपुरी। समारोह की मुख्य अतिथि राज्यसभा की मनोनीत सदस्य एवं प्रख्यात संस्कृति कर्मी कपिला वात्स्यायन थी। समारोह की अध्यक्षता नारंग ने की।
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==डा. जोशी को देवी शंकर अवस्थी स्मृति सम्मान==     
 
==डा. जोशी को देवी शंकर अवस्थी स्मृति सम्मान==     

19:39, 23 फ़रवरी 2008 का अवतरण

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विषय सूची

अमरकांत समेत 24 लेखकों को अकादमी पुरस्कार

नई दिल्ली। हिंदी के वयोवृद्ध लेखक एवं स्वंतत्रता सेनानी अमरकांत, उर्दू के आलोचक वहाब अशरफी और मैथिली के लेखक प्रदीप बिहारी समेत 24 भारतीय भाषाओं के साहित्यकारों को बुधवार को साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाजा गया।

दरअसल अमरकांत को उनकी अनुपस्थिति में यह पुरस्कार प्रदान किया गया। वह अस्वस्थ होने के कारण समारोह में भाग लेने के लिए नहीं आ सके। बांग्ला के मशहूर लेखक सुनील गंगोपाध्याय ने एक गरिमामय समारोह में इन लेखकों को वर्ष 2007 के अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया।

पुरस्कार में प्रत्येक लेखक को 50-50 हजार रुपये, एक प्रशस्ति पत्र, एक प्रतीक चिह्न और शॉल भेंट किया गया। उत्तर प्रदेश के बलिया जिले में जन्में अमरकांत को उनके चर्चित उपन्यास इन्हीं हथियारों से के लिए यह पुरस्कार दिया गया जो 1942 के भारत छोडो आंदोलन की पृष्ठभूमि पर आधारित है।

इस बार बिहार के दो लेखकों सर्वश्री वहाब अशरफी और प्रदीप बिहारी को अकादमी पुरस्कार प्रदान किया गया। उडिया लेखक दीपक मिश्र और तेलुगु लेखक गाडियाराम रामकृष्ण शर्मा को मरणोपरांत यह पुरस्कार प्रदान किया गया।

शेष पुरस्कृत लेखक इस प्रकार है: हरिदत्त शर्मा संस्कृत, कुंदनमाली राजस्थानी, रतनलाल शांत कश्मीरी, राजेन्द्र शुक्ल गुजराती, मालती राव अंग्रेजी, वासुदेव निर्मल सिंधी, लक्ष्मण श्रीमल नेपाली, गो मा पवार मराठी, ज्ञान सिंह मगोच डोगरी, अनिल कुमार ब्रह्म बोडो, समरेन्द्र सेनगुप्त बांग्ला, पुरवी बरमुदै असमिया, कु. वीर भ्रदप्पा कन्नड, देवीदास रा. कदम कोंकणी, जसवंत दीद पंजाबी, खेरवाल सोरेन संथाली, नील पट्टयनाभन तमिल, ए. सेतुमाधवन सेतु मलयालम और बी एम माइस्नाम्बा मणिपुरी। समारोह की मुख्य अतिथि राज्यसभा की मनोनीत सदस्य एवं प्रख्यात संस्कृति कर्मी कपिला वात्स्यायन थी। समारोह की अध्यक्षता नारंग ने की।


डा. जोशी को देवी शंकर अवस्थी स्मृति सम्मान

नई दिल्ली। ललितकला अकादमी की पत्रिका समकालीन भारतीय कला के संपादक एवं युवा आलोचक डा. ज्योतिष जोशी को देवीशंकर अवस्थी स्मृति सम्मान दिए जाने की घोषणा की गई है।

बिहार में जन्मे डा. जोशी को यह पुरस्कार उनकी आलोचनात्मक पुस्तक, उपन्यास की समकालीनता पर दिया गया है। वह इस पुरस्कार को प्राप्त करने वाले हिंदी के 12वें लेखक हैं। गौरतलब है कि सर्वश्री नामवर सिंह, डा. केदारनाथ सिंह, विजय मोहन सिंह, विष्णु खरे और उदय प्रकाश की निर्णायक समिति ने इस पुरस्कार के लिए डा. जोशी का चयन किया है।

उधर समिति की संयोजक कमलेश अवस्थी द्वारा शुक्रवार को जारी एक विज्ञप्ति के अनुसार जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय से पीएचडी की उपाधि प्राप्त करने वाले डा. जोशी ने जैनेंद्र और नैतिकता, आलोचना की छवियां, पुरखों का पक्ष, जैसी चर्चित आलोचनात्मक पुस्तकें लिखी हैं। यह सम्मान अब तक सर्वश्री मदन सोनी, पुरुषोत्तम अग्रवाल, विजय कुमार, डा. शंभुनाथ, अजय तिवारी, सुरेश शर्मा आदि को मिल चुका है।



गंगोपाध्याय चुने गए साहित्य अकादमी अध्यक्ष

नई दिल्ली। बांग्ला के प्रख्यात साहित्यकार सुनील गंगोपाध्याय को साहित्य अकादमी का अध्यक्ष चुन लिया गया, जबकि पंजाबी के साहित्यकार प्रो. सुतिंदर सिंह नूर निर्विरोध उपाध्यक्ष चुने गए। साहित्य अकादमी के नए अध्यक्ष के लिए हुए चुनाव में गंगोपाध्याय को 45 मत मिले, जबकि उनके निकटतम प्रतिद्वंद्वी मलयालम भाषा के साहित्यकार एम टी वासुदेवन नायर को 40 मत मिले। एक अन्य प्रत्याशी सत्यदेव शास्त्री को मात्र सात वोट मिले।

 जनरल कौंसिल की एक घंटे से अधिक समय तक चली बैठक में नए अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का चुनाव किया गया। अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का कार्यकाल अगले पांच साल के लिए होगा यानि ये दोनों 2012 तक अपने पद पर रहेंगे। सुनील गंगोपाध्याय वर्तमान अध्यक्ष गोपीचंद नारंग का स्थान लेंगे और अभी तक उपाध्यक्ष रहे सुनील गंगोपाध्याय का स्थान एस एस नूर लेंगे। 
  दरअसल पंजाबी के साहित्यकार एस एस नूर के विरोध में बांग्ला साहित्यकार इंद्रनाथ चौधरी का नाम था, लेकिन अंतिम समय में उनके नाम वापस ले लेने के कारण नूर को निर्विरोध उपाध्यक्ष चुन लिया गया। गौरतलब है कि साहित्य अकादमी के पहले अध्यक्ष पद को पं. जवाहर लाल नेहरू और उपाध्यक्ष पद को डा. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने सुशोभित किया था। 

क्रांतिकारी कवि अरुण काले नहीं रहे

नासिक। जाने माने क्रांतिकारी दलित कवि अरुण काले का मंगलवार को दिल का दौरा पडने से निधन हो गया। वह 55 वर्ष के थे।

काले के चर्चित काव्य संग्रहों में रॉक गार्डन और सैरांचे शहर काफी प्रसिद्ध हैं और सैरांचे शहर का हिंदी, मलयालम, गुजराती और बंगाली भाषाओं में अनुवाद किया गया है। उन्हें बतकरी थोंबरे पुरस्कार, महाराष्ट्र फाऊंडेशन पुरस्कारऔर सहकार महर्षि पुरस्कार समेत कई सम्मान मिल चुके हैं। नासिक के राणे नगर निवासी काले के परिवार में पत्नी, दो बेटियां और एक बेटा है।


राष्ट्रीय कवि संगम-प्रेस विज्ञप्ति

नई दिल्ली। बीती 15-16 दिसम्बर 2007 को स्वाधीनता संग़्राम की 150 वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में एक अनूठे कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया। नई दिल्ली के छतरपुर, महरौली स्थित अध्यात्म साधना केन्द्र में आयोजित इस कवि सम्मेलन में देश के साढ़े तीन सौ जाने-माने कवियों ने हिस्सा लिया। देश के सभी प्रान्तों से आये इन कवियों ने दो दर्जन से भी ज्यादा भाषाओं और बोलियों में काव्य-पाठ करके लोगों का मन मोह लिया। विशेष रूप से जम्मू कश्मीर, सिक्किम, आसाम, कर्नाटक और आन्ध्र प्रदेश जैसे सीमावर्ती प्रदेशों से आये कवियों को लोगों ने खूब पसन्द किया। इस दो दिवसीय कवि सम्मेलन का आयोजन राष्ट्रीय कवि संगम के बैनर तले ‘राष्ट्र जागरण-धर्म हमारा’ शीर्षक के तहत किया गया। कार्यक्रम में स्वाधीनता संग्राम में कवियों और कविताओं के योगदान पर भी सारगर्भित चर्चा की गई। कार्यक्रम का शुभारम्भ अध्यात्म साधना केन्द्र के निदेशक स्वामी धर्मानन्द, आयोजन के मार्गदर्शक श्री इन्द्रेश कुमार, कार्यक्रम के संयोजक श्री जगदीश मित्तल, सहसंयोजक श्री मनमोहन गुप्ता, श्री अशोक गोयल, श्री गजेन्द्र सोलंकी, मोहम्मद अफजाल और राजेश चेतन ने दीप प्रज्जवलित कर किया। इस मौके पर कवि चिराग जैन द्वारा सम्पादित स्मारिका "जागो फिर एक बार" का लोकार्पण भी किया गया। कार्यक्रम में आचार्य देवेन्द्र देव ने अपने सुमधुर कण्ठ से माँ सरस्वती की वन्दना प्रस्तुत की तथा कवि श्री नरेश नाज ने अपना गीत 'आजादी के उन्ही पुराने गानों की पहले से भी आज जरुरत ज्यादा हैं' प्रस्तुत कर उदघाटन समारोह को गरिमा प्रदान की। जबकि प्रसिद्ध फिल्मी गीतकार व संगीतकार रवीन्द्र जैन ने कई फिल्मों के चुने हुए देशभक्ति के गीत गाये। जिनमें शहीद पण्डित राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ का गीत ‘सरफरोशी की तमन्ना’ प्रमुख रहा। कवि संगम के मार्गदर्शक इन्द्रेश कुमार ने अपने उदबोधन में कहा कुछ लोग और आन्दोलन वक्त के सांचे में ढल जाते हैं, पर राष्ट्रीय कवि संगम के कवि राष्ट्र जागरण की कविताओं के द्वारा वक्त के सांचे बदलने में सफल होंगे। उन्होंने कवित्व को प्रभु का वरदान और कविता को उस वरदान से निकली हुई गंगा बताया। 16 दिसम्बर बंगलादेश विजय दिवस की याद दिलाते हुए कहा कि कवियों के गीत सीमा पर बैठे जवानों को देश पर मर मिटने की भावना जगाने का काम करती हैं। राष्ट्रीय स्तर पर साढ़े तीन सौ कवियों का काव्य-पाठ अपने आप में ऐतिहासिक और राजधानी में अब तक का सबसे बड़ा साहित्यिक आयोजन था। देश-विदेश से आये कवियों ने आजादी के नायकों को कविताओं से याद किया। 1857 के बाद आजादी के परवानों को याद करने की यह अनुपम और अनूठी पहल थी। कार्यक्रम के संयोजक जगदीश मित्तल ने कहा कि स्वतंत्रता संग्राम में कवियों और कविताओं का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। 1857 से अब तक के डेढ़ सौ वर्षों का इतिहास साक्षी है कि क्रान्तिकारियों के साथ-साथ कवियों ने अपनी लेखनी एवं ओजस्वी स्वर के माध्यम से न केवल देश भर में आजादी की अलख जगाई अपितु जन-जन में क्रान्ति का संचार किया। यह कविताओं की ही शक्ति थी कि बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय द्वारा रचित “वन्दे मातरम्” गीत आजादी के दीवानों का मंत्र बन गया। कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान की पंक्तियाँ “खूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी”, क्रान्तिकारी रामप्रसाद बिस्मिल का गीत “सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है” आदि गीत इस आहुति के बेमिसाल उदाहरण है। वर्तमान परिवेश में भी युवा पीढ़ी को राष्ट्र एवं समाज के प्रति अपने कर्तव्य और दायित्व का बोध कराने के लिये कवियों की कलम, राष्ट्र जागरण एवं निर्माण में आज भी महत्वपूर्ण योगदान कर सकती हैं। सांसद और कवि श्री सत्यनारायण जटिया और कविवर श्री छैल बिहारी वाजपेयी 'बाण' तथा कवि कमलेश मौर्य मृदु ने भी श्रोताओं की तालियाँ बटोरी। राष्ट्रीय कवि संगम की भावनाओं को उल्लेखित करने वाली कमलेश मौर्य ‘मृदु’ की पंक्तियों को लोगों ने खूब सराहा – जीवन मूल्यों को जो अपनी रचना का आधार बनायेगा भारत के जीवन दर्शन को लेखन में अपनायेगा मानवतावादी चिन्तन दे राष्ट्रीय भाव पनपायेगा वह कलाकार कवि लेखक आराधक ही पूजा जायेगा आयोजन में डा॰ राजवीर सिंह क्रान्तिकारी, देवेन्द्र देव, अब्दुल अय्यूब गौरी, गजेन्द्र सोलंकी, शहनाज हिन्दुस्तानी, मदन गोपाल विरधरे ‘मार्तण्ड’, राजेश चेतन, मदन मोहन ‘समर’, डा॰ प्रियंका सोनी, सुधा अरोड़ा, श्रीमती डा॰ अजीत गुप्ता, अर्जुन सिसौदिया, श्रीमती अमिया क्षेत्री, अमर बानिया ‘लोहोरो’, थम्मन नवबाग, श्याम तालिब, दिवाकर हेगड़े, लाड़ सिंह गुर्जर, मनोज कुमार ‘मनोज’, श्रीकांत श्री, कुमार पंकज, बृजेश द्विवेदी, पंकज फनकार, तौफीक सलाम आदि कवियों ने वर्तमान चुनौतियों और ज्वलन्त प्रश्नों का समाधान अपनी कविताओं के माध्यम से प्रस्तुत किया। समारोह में विश्वविख्यात कवि और कलाकार बाबा सत्यनारायण मौर्य ने भारत माता की आरती का अपना चिर परिचित कार्यक्रम प्रस्तुत किया। अपने कार्यक्रम के दौरान कवि धर्म के प्रति सचेत करते हुए बाबा ने कहा कि "फिर मत कहना कवियों ने ना अपना धर्म निभाया हैं, हम बोलेंगे गीत ये हमने बार-बार दोहराया हैं" अन्तर्राष्ट्रीय कलाकार बाबा ने भारत माँ का रंगीन आशु चित्र बनाकर आरती का गायन किया। इस अवसर पर सैकड़ों लोगों ने 108 दीपकों से माँ भारती की आरती उतारी। कार्यक्रम का सफल बनाने में सहसंयोजक अशोक गोयल तथा राष्ट्रवादी मुस्लिम आन्दोलन के राष्ट्रीय सम्पर्क प्रमुख गिरीश जुयाल, मुहम्मद अफजाल, चिराग जैन, पंकज गोयल, राजेश पथिक, सुनील मल्होत्रा तथा अनिल गर्ग का विशेष योगदान रहा। विशेष रूप से इस अवसर पर पधारे देश के सुप्रसिद्ध कथावाचक श्रद्धेय संजीव कृष्ण ठाकुर ने भी कवि संगम के कार्य को शुभकामनायें दी। वरिष्ठ कवि कृष्ण मित्र, प्रान्त संघचालक रमेश प्रकाश, बांके लाल गौड़ आदि ने भी अपने विचार व्यक्त किये। जिन संस्थाओं के सहयोग से यह कार्यक्रम आयोजित किया गया, उनमें संस्कार भारती, भारत तिब्बत सहयोग मंच, राष्ट्रवादी मुस्लिम आन्दोलन, अक्षरम्, अखिल भारतीय अणुव्रत न्यास, दिशा फाउण्डेशन, हिन्दी यू॰ एस॰ ए॰, हिमालय परिवार, अखिल भारतीय साहित्य परिषद शामिल हैं। राष्ट्रीय कवि संगम राष्ट्र संतों और वरिष्ठ कवियों के मार्गदर्शन में भविष्य में भी कार्य करता रहेगा। इस अवसर पर कार्यकारिणी की घोषणा भी की गई, जिसमे इन्द्रेश कुमार मार्गदर्शक, जगदीश मित्तल संयोजक, पूर्व मन्त्री एवं सांसद सत्यनारायण जटिया, अशोक गोयल, मुहम्मद अफजाल, राजेश चेतन, मनमोहन गुप्ता, गिरीश जुयाल, ॠतु गोयल, प्रवीण आर्य, बांके लाल गौड़ तथा कमलेश मौर्य को सदस्य चुना गया। अध्यात्म साधना केन्द्र के प्रबन्ध न्यासी श्री सम्पत मल नाहाटा तथा निदेशक धर्मानन्द जी ने यह कार्यक्रम वर्ष 2008 में अध्यात्म साधना केन्द्र छतरपुर में ही पुनः करने की आयोजकों से विनती की तथा धन्यवाद प्रस्ताव रखते हुए कहा कि अणुव्रत का यह स्थान सदैव कवि संगम के लिए उपलब्ध रहेगा।


राजेश चेतन को कलमदंश सम्मान 2007

पानीपत की प्रतिष्ठित संस्था पानीपत सांस्कृतिक मंच ने स्थानीय एस डी विद्या मंदिर में हास्योत्सव का आयोजन किया । पानीपत के वरिष्ठ कवि तथा कलम दंश पत्रिका के सम्पादक श्री योगेन्द्र मोदगिल्य के संयोजन में इस समारोह में उपायुक्त श्री महेन्द्र कुमार और अग्रवाल समाज के वरिष्ठ नेता श्री रामनिवास गुप्ता की उपस्थिति में पानीपत की दस विभूतियों को पानीपत रत्न सम्मान प्रदान किया गया तथा हरियाणा में जन्मे कवि राजेश चेतन को कलम दंश सम्मान दिया गया । बाद मे कवि श्री गजेन्द्र सोलंकी के संचालन में श्री प्रताप फ़ौजदार, श्री विनीत चौहान, श्री जगबीर राठी, श्री वीरेन्द्र मधुर, श्री हरि सिंह दिलबर, श्री सूफ़ी जगजीत व श्री योगेन्द्र मोदगिल्य ने काव्य पाठ किया । संस्था की ओर से श्री गजेन्द्र सलूजा व श्री संजय जैन ने सभी का धन्यवाद किया ।

सुप्रसिद्ध लेखिका डा॰ अरुणा सीतेश का निधन

दिल्ली के संत परमानन्द अस्पताल में इन्द्रप्रस्थ महिला कालेज की प्रिंसीपल और सुप्रसिद्ध लेखिका डा॰ अरुणा सीतेश का निधन हो गया। वे काफी समय से अस्वस्थ चल रही थी। उनके पति प्रख्यात साहित्यकार डा॰ सीतेश आलोक ने जानकारी दी कि प्रार्थना सभा, दिनांक 23-11-2007 को प्राचार्य निवास, आई॰ पी॰ कालेज, शामनाथ मार्ग पर दोपहर 3 बजे होगी।

अंग्रेजी की प्राध्यापिका डा॰ अरुणा सीतेश प्रख्यात शिक्षाविद् थीं और अनेक वर्षों से दिल्ली के प्रतिष्ठित इन्द्रप्रस्थ महिला कालेज में प्रिंसीपल के पद पर कार्यरत थी। डा॰ अरुणा सीतेश जानी-मानी कथाकार थी। उनका ‘छलांग’ कहानी-संग्रह काफी चर्चित रहा। देश-विदेश में उन्हें अनेक पुरस्कार, सम्मान तथा फैलोशिप प्रदान हुए। वे ‘प्रतिभा इंडिया’ पत्रिका की संपादिका भी थी।

" दस्तक नयी पीढ़ी की" नवम्बर 15, नई दिल्ली।

प्रेस-विज्ञप्ति " दस्तक नयी पीढ़ी की" नवम्बर 15, नई दिल्ली। गुरुवार की शाम राजधानी के हिन्दी भवन में उत्सव का माहौल था। अवसर था , दिशा फ़ाउन्डेशन द्वारा आयोजित 'युवा काव्य उत्सव ' का ! मीठी -मीठी सर्दी की खूबसूरत शाम में युवा कवियों ने मानव मन की सम्वेदनाओं को अपनी बेह्तर कविताओं के माध्यम से स्पर्श किया। कार्यक्रम की शुरुआत एक विचार -गोष्ठी से हुई जिसका विषय था - 'युवा पीढ़ी व नशा '। नव ज्योति इन्डिया फ़ाउन्डेशन के डॉ अजय कुमार ग्रोवर ने नशे के प्रति जागरुकता पर चर्चा की। मादक पदार्थों के नशे से शुरू हुई बातचीत का ये सिलसिला धीरे -धीरे कविताओं के नशे तक पहुंचा। देश भर के पन्द्रह युवा कवियों ने हास्य , सम्वेदना , श्रंगार और ओज आदि सभी रंगों से महफ़िल को सजाया। काव्य के इस महोत्सव के साथ ही प्रसिद्ध समाज सेवी श्री जगदीश मित्तल जी के जन्मदिवस का संयोग भी कार्यक्रम के साथ जुड़ा। यू॰ के॰ से पधारे डॉ कृष्ण कुमार ने युवा कवियों को उनकी शालीनता और रचनाओं के लिए बधाई दी। वरिष्ठ कवि श्री ओमप्रकाश आदित्य ने नयी पीढ़ी को आशीर्वाद दिया और साथ ही यह भी कहा कि हिन्दी कवि सम्मेलन मंच की ये नयी पौध बेहद आशावान है और किसी भी दृष्टि से कमज़ोर नहीं है। डॉ कुंवर बेचैन ने सभी युवा रचनाकारों को मंचीय कविता की बेहतर संभावना बताते हुए प्रोत्साहित किया। वरिष्ठ हास्य कवि अल्हड़ बीकानेरी ने भी युवा कवियों को आशीष दिए। राजेश चेतन , ऋतु गोयल , दिनेश रघुवंशी , महेंद्र अजनबी ,वेद प्रकाश वेद , नरेश शान्डिल्य, आनिल ज़ोशी, शशिकान्त, रसिक गुप्ता और विजय काका समेत अनेक स्थापित कवियों ने श्रोताओं के बीच बैठकर युवा पीढ़ी को सराहा। कवि सम्मेलन का संचालन चिराग जैन ने किया।

कवियों की इस नयी पीढ़ी ने जिन लोगों के हृदयों पर दस्तक दी उनमें अनेक जानी - मानी हस्तियाँ सम्मिलित हैं। जादूगर सम्राट शंकर, सुभाष अग्रवाल, रमेश अग्रवाल, एस एन बंसल, रोशन कंसल, भूपेंद्र कौशिक जैसे उद्योगपतियों के अतिरिक्त अनेक विधायक तथा निगम पार्षद भी कार्यक्रम में युवा कवियों की रचनाओं का रसास्वादन करने के लिए मौजूद थे। इनमें रवीन्द्र बंसल, करण सिंह तंवर, नरेन्द्र बिन्दल, रेखा गुप्ता, राजकुमार पोद्दार, हरबंस लाल उप्पल , अंजू जैन और प्रवेश वाही के नाम प्रमुख हैं। अनिल गोयल, अशोक बत्रा, रमेश अग्रवाल, अतुल जैन, श्रीपाल जैन, राज खुराना, अशोक गुप्ता, सीमा यादव और अन्य गणमान्य व्यक्तियों की उपस्थिति ने कार्यक्रम को सफल बनाने में सहयोग किया।

दिनांक-16-11-2007 नयी दिल्ली


'वसुदेव' का कोटा में लोकापर्ण

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श्रीकृष्‍ण जन्माष्‍टमी के पावन अवसर पर डॉ. कोहली के नवीन उपन्यास 'वसुदेव' का विमोचन 4 सितम्बर 2007 को शंखनाद एवं पुष्‍प-वर्षा के साथ एक भव्य समारोह में किया गया, जिसमें कोटा नगर के सभी प्रमुख साहित्यकार, कवि एवं सैंकड़ों श्रोता उपस्थित थे। 'इनसाइट संस्थान', 'पुरी पीठ के शंकराचार्य द्वारा स्थापित अ.भा.पीठ परिषद्' की राजस्थान शाखा, 'अखिल भारतीय साहित्य परिषद्' की कोटा शाखा, 'भारतेन्दु समिति', 'संस्कार भारती', 'स्वरांजलि संस्थान' इत्यादि द्वारा डा. कोहली का नागरिक अभिनन्दन किया गया। कोटा के बिनानी सभागार में आयोजित इस कार्यक्रम में नगर के साहित्यकारों एवं प्रबुद्ध नागरिकों ने भारी संख्‍या में उपस्थित होकर अपनी जिज्ञासा को शांत किया। प्रांरभ में 'इनसाइट' के निदेशक श्री. शिशिर मित्‍तल ने डा. नरेन्द्र कोहली तथा उन की धर्मपत्नी डा. मधुरिमा कोहली का स्वागत किया। उन्होंने अतिथियों का परिचय देते हुए कहा कि वे डॉ. कोहली की तुलना केवल रूस के लेव तोलस्तोय से ही कर सकते हैं। हिन्दी साहित्य में उनका योगदान अद्भुत एवं अप्रतिम है। उनके द्वारा लिखी गई वृहद् उपन्यास शृंखलायें हिन्दी साहित्य की एक नवीन विधा हैं, जो संस्कृत साहित्य के महाकाव्य के समकक्ष हैं। प्रेमचन्द के बाद पहली बार हिन्दी साहित्य में किसी ऐसी प्रतिभा का उदय हुआ है जिसने साहित्य में एक नवीन युग का प्रारम्भ किया है। प्रख्यात् कवि श्री बशीर अहमद 'मयूख' समारोह के मुख्य अतिथि थे। लब्ध प्रतिष्ठित साहित्यकार डा. शांतिलाल भारद्वाज तथा डॉ. दयाकृष्‍ण 'विजय' विशिष्‍ट अतिथि थे। श्री मयूख द्वारा डा. कोहली के उपन्यास 'वसुदेव' का विमोचन किया गया। पत्र् वाचन की शृंखला में प्रथम पत्र् डा. (श्रीमती) प्रेम जैन द्वारा प्रस्तुत किया गया। उन्‍होंने कृष्‍ण-बलराम के निर्माण में यशोदा एवं रोहिणी की भूमिका एवं 'वसुदेव' के अन्य नारी पात्रों का समग्र विवेचन प्रस्‍तुत किया। डा. जैन ने कहा कि रोहिणी इस तथ्य से अवगत थी कि कि उनके गर्भ में वस्तुत: देवकी के गर्भ का संकर्षण किया गया था। इसके उपरांत भी वे अपने वात्सल्य एवं ममत्व में कोई कमी नहीं रखतीं। वे जानती थीं कि उन्होंने जिस पुत्र् को जन्म दिया है उसके जन्म का लक्ष्य असुर-संहार है। उन्होंने इसी लक्ष्य से राम को संस्कारित कर उन्हें बलराम बनाया। डा. जैन ने कहा कि यशोदा यह नहीं जानती थीं कि कृष्‍ण उनके पुत्र् नहीं थे। उन्होंने अपने अनाविल ममत्व से कृष्‍ण को आकंठ निमज्जित किया। उन्होंने मातृत्व का आदर्श प्रस्तुत किया तथा कृष्‍ण को वे संस्कार दिये कि वे भविष्‍य में असाधारण कर्म कर सकें। उन्होंने कहा कि 'वसुदेव' के नारी पात्र् मानव मूल्यों के प्रति पूर्णत: समर्पित हैं। देवकी ममत्व के कारण, रोहिणी परदु:ख कातरता के कारण, कष्‍ट सहिष्‍णुता की भूमिका का निर्वाह करने के कारण तथा यशोदा संभावित मांगलिक भविष्‍य की निश्चिंतता के कारण अपने दायित्व के प्रति जागरूक ही नहीं अपितु सचेष्‍ट एवं सन्नद्ध हैं। श्रीयुत श्रीनन्दन चतुर्वेदी ने कहा कि 'वसुदेव' लेखक की उपन्यास-कला तथा चिन्तन शैली का सहारा पाकर एक स्‍पृहणीय व्यक्तित्व के रूप में उभर कर आये है। वे भारतीयता के आख्याता हैं तथा कष्‍ट सहने में चट्टान के समान वज्र-कठोर हैं। वे गंभीर हैं, वीर हैं, शस्त्र् तथा शास्त्र् के ज्ञाता हैं। नीतिनिपुण हैं और समायानुकूल आचरण करने वाले है। विषम से विषम परिस्थिति भी उन्हें तोड़ नहीं पाती। वे आस्तिक हैं तथा प्रभु की सामर्थ्य में उनका अटूट विश्‍वास है। स्वभाव से धैर्यवान होने के साथ साथ वे उद्घत है। क्षत्रियोचित स्वाभिमान उनमें कूट-कूट कर भरा है। शास्‍त्रीय दृष्टि से वे धीरोद्धत नायक हैं उन्होंने कहा कि वसुदेव नीतिनिपूण हैं तथा व्यवहारिक हैं। तत्कालिक संकट से मुक्ति पाने के लिए दिये गये वचन की पालना करना वे आवश्‍यक नहीं समझते इसीलिए अपने पुत्रों को कंस से बचाने की योजना बनाते हैं; तथा सातवें तथा आठवे पुत्रों की रक्षा करने में सफल रहते हैं। उन्होंने कहा कि वसुदेव का व्यक्तित्व श्रद्धास्पद है। वे विकट योद्धा हैं तथा मथुरा के समाज में उनके प्रति अटूट श्रद्धा है। श्री. अरविन्द सोरल ने अपने पत्र् में एक सामान्य से अधिक जागरूक पाठक की प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुये कहा कि 'वसुदेव' लेखक के आक्रोश की पटकथा है। उन्होंने कहा कि भारत पर विदेशी आक्रमण स्थायी हो चुका है। हमारी संस्कृति आक्रान्त है। बहुमत ने इस आक्रमण के सामने घुटने टेक दिये हैं। आत्म-कृतघ्‍नतावाद का दर्शन विकसित किया जा चुका है। किन्तु नरेन्द्र कोहली उन लोगों में से हैं, जो इस आक्रमण के समझ, घुटने टेकने से इंकार करते हैं। वे इस आक्रमण के विरूद्ध युद्ध की प्रेरणा के लिए 'वसुदेव' में उस चरित्र् को खोज लेते हैं जो नेतृत्व के लिए आदर्श है। उन्होंने कहा कि यह उपन्यास एक और नागयज्ञ का मंगलाचरण है तथा समस्त भारतवासियों को इसमें आहुति देने का खुला निमंत्रण भी इसी में है। उन्होंने कहा कि वर्तमान युग कंस के युग का ही अनुवाद है। इस युग में भी वसुदेव अनिवार्य हैं। जो कृष्‍ण को अपने रक्त में धारण कर सकें। तभी अधर्म का नाश और धर्म की रक्षा संभव है। इसी हेतु वसुदेव की रचना अत्‍यंत प्रासंगिक है। डा. नरेन्द्र कोहली ने अपने उद्बोधन में स्पष्‍ट किया कि 'वसुदेव' उपन्यास में उन्होंने कंस के शिक्षा मंत्री का नाम जानबूझ कर अर्जुन सिंह दिया है; क्योंकि कंस राज में ही यह संभव हो सकता है कि योग का विरोध हो और कामसूत्र् को पाठ्यक्रम में शामिल करने की योजना बने। उन्होंने कहा कि 'वसुदेव' मनुष्‍य की सतत् जिजीविषा की कथा है। जूझते रहने की इच्छा की तथा क्रांति में अपने हर संभव योगदान की कथा है। इसी हेतु इस उपन्यास का एक पात्र् वीरभद्र एक स्थान पर कहता है, यदि हो सके तो घास बन कर उग आ, यमुना में जल बनकर बह जा। डा. कोहली ने कहा कि कृष्‍ण निश्चित ही अवतार थे। कोई भी अवतार बिना र्पूव घोषणा के नहीं आता। कृष्‍ण के आने की घोषणा नारद द्वारा कंस के समक्ष इसी हेतु कर दी गयी थी। उन्होंने कहा कि जब अवतार आता है तो उसके पार्षद भी साथ आते हैं। शेषनाग तथा क्षीर सागर दोनों कृष्‍ण के गोकुल गमन में सहयोग करते हैं। शेषनाग छाया करते हैं तथा क्षीर सागर यमुना की बाढ़ हैं, जो वसुदेव की यात्रा को सुगम बनाती है। श्री कोहली ने वेदान्त दर्शन की व्याख्या करते हुए कहा कि एक ही मूल तत्व है - ब्रह्म। वही सिद्ध तथा प्रामाणिक है। अन्य जो भी है उसका ही रूप है तथा उसकी ही शक्ति है। हम विभिन्न रूपों अथवा शक्तियों की पूजा के माध्यम से, उस ब्रह्म की ही पूजा करते हैं। डा. कोहली ने कहा कि ईश्‍वरीय तत्व हम सब में है; किन्तु हमें उसका न बोध है, न स्‍मृति है; क्‍योंकि हम संसार में कोई असाधारण लक्ष्य लेकर नहीं आये। हम अपने कर्मों के भोग हेतु आये हैं। जो किसी उद्देश्‍य विशेष से आता है उसे सभी कुछ स्मरण रहता है। कृष्‍ण लक्ष्य लेकर आये थे, अत: उन्हें सभी कुछ स्मरण था। कृष्‍ण ने अपनी लीलाओं के माध्यम से घोषणा की थी कि वे आ चुके हैं; और अपने लक्ष्य की पूर्ति वे अवश्‍य करेंगे। उनका लक्ष्य अधर्म का विनाश तथा धर्म की स्थापना था। डा. कोहली ने कहा कि हम कृष्‍ण का तात्विक चिंतन करते हैं तो ऊपरी परतें स्वत: छंट जाती हैं। कृष्‍ण ने अपनी इच्छा से देह धारण की, जो माया से परे थी। हम भी अपनी कामना से देह धारण करते हैं, किंतु कामना से मुक्त नहीं हो पाते। जब आत्मसाक्षात्‍कार हो जाता है, तभी मुक्ति का प्रयास प्रारंभ होता है। डा. कोहली ने कहा कि कृष्‍ण की समस्त लीलाओं के प्रतीकात्मक अर्थ हैं। चाहे वह चीरहरण की लीला हो या कालियमर्दन हो अथवा रासलीला हो। उन्होंने कहा कि कुछ ही सौभाग्यशाली लोग होते हैं जो ईश्‍वरीय विधान के अर्न्तगत आते हैं। वे अपने कर्म से परिचित होते हैं। वे अपने स्वभावानुसार कर्म करते हैं। हमारा स्वभाव ही हमें ईश्‍वरीय आदेश है। कृष्‍ण स्वयं घोषणा करते हैं कि जो अपने स्वभावनुसार कर्म करते हुए धर्म पर चलते हैं, वे मेरी पूजा करते हैं। अत: स्वभावानुसार कर्म ही धर्म है और ईश्‍वर की उपासना है। डा. कोहली ने कहा कि कृष्‍ण का लक्ष्य धर्म की स्थापना था। अत: वे राजा बनना स्वीकार नहीं करते। वे समयानुसार नीति को धर्म बताते हैं इसीलिये मथुरा छोड़कर द्वारिका प्रस्थान कर जाते हैं। वे स्‍त्री की मर्यादा के रक्षक हैं। रुक्मिणी और द्रौपदी की रक्षा करते हैं। भौमासुर के यहां बंदी सोलह सहस्र स्त्रियों का कलंक अपने सिर लेते हैं और उन्हें अपनी पत्नी का दर्जा देते हैं। ऐसा साहस ईश्‍वर ही कर सकता है, जो कृष्‍ण थे। आयोजन के मुख्य अतिथि श्री बशीर अहमद मयूख ने कहा कि भारत की संस्कृति उत्सवधर्मा है तथा कृष्‍ण का जीवन एक उत्‍सव है। डा. भारद्वाज तथा दयाकृष्‍ण 'विजय' ने 'वसुदेव' उपन्यास को कालजयी असाधारण महाकाव्यात्मक उपन्यास बताया। कार्यक्रम का अत्यंत रुचिकर एवं सफल संचालन 'हाड़ौती' के कवि श्री रामेश्‍वर शर्मा ('रामू भैया') ने किया। डॉ. नरेन्‍द्र कोहली कोटा प्रवास के उपलक्ष्‍य में 'इनसाइट' संस्थान द्वारा कोटा नगर के सभी विद्यालयों एवं महाविद्यालयों में डॉ. कोहली के उपन्यास 'वसुदेव' पर आधारित निबन्ध प्रतियोगिता भी आयोजित की, जिसमें छात्रों ने बड़े उत्साह से भाग लिया। कई विद्यालयों में 'वसुदेव' के अनेक अंशों का वाचन भी किया गया, जिससे अधिकाधिक संख्या में छात्र एवं अध्यापक उसका लाभ उठा सकें। विजेताओं को डॉ. कोहली के ही हाथों पुरस्कार दिलवाए गये।



डा. श्याम सुंदर व्यास नहीं रहे

हिंदी के जाने-माने साहित्यकार और 'वीणा' पत्रिका के संपादक रहे डा. श्याम सुंदर व्यास का बुधवार सुबह इंदौर में निधन हो गया। 3 सितंबर 1927 को इंदौर में जन्मे डा. व्यास ने देश की सर्वाधिक प्राचीन तथा सतत प्रकाशित होने वाली एकमात्र साहित्यिक पत्रिका 'वीणा' का 35 वर्षों तक संपादन किया। इसके अलावा उनके तीन उपन्यास, पांच कथा संग्रह, तीन व्यंग्य संग्रह और बाल साहित्य तथा लघुकथाओं के भी कुछ संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। हाल ही में उन्हें पं. बृजलाल द्विवेदी स्मृति साहित्यिक पत्रकारिता सम्मान से सम्मानित किया गया था। उनके निधन पर सृजनगाथा डॉट कॉम के संपादक जयप्रकाश मानस, कुशाभाऊ ठाकरे राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय के कुलपति सच्चिदानंद जोशी, वरिष्ठ पत्रकार बबन प्रसाद मिश्र, रमेश नैयर, दिवाकर मुक्तिबोध, हिमांशु द्विवेदी, संजय द्विवेदी, गिरीश पंकज, डा. सुधीर शर्मा ने गहरा शोक प्रगट किया है।


परंपरा का विरोध मौलिकता नहीं: नामवर

हिंदी के प्रख्यात आलोचक डा. नामवर सिंह ने कहा है कि परंपरा का विरोध करना मौलिकता नहीं है। बिना परंपरा विरोध के भी साहित्यकार चाहे तो मौलिक सृजन कर सकते है। फिर सवाल यह उठता है कि हम जिस सृजन को नूतन होने का दावा करते है, सही मायने में क्या वह मौलिक है। यदि नहीं तो मौलिक होने का दावा करना कहां तक उचित है।

डा. नामवर सिंह भारतीय भाषा द्वारा आयोजित आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी जन्म शतवार्षिकी राष्ट्रीय संगोष्ठी में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि हजारी प्रसाद द्विवेदी ने अपने उपन्यास बाणभट्ट की आत्मकथा, पुनर्नवा व अनामदास का पोथा में प्रारंभिक पात्रों का विस्तार है। महाकवि तुलसीदास ने भी राम कथा का चित्रण रामचरितमानस, विनयपत्रिका, दोहावली व कवितावली में विभिन्न रूपों में किया है। सभी कथाओं में राम केंद्र में हैं। उन्होंने कहा कि कालजयी कृति हम उसे ही कह सकते है, जिसमें बराबर ताजगी का अहसास हो। यह परम सत्ता के लिए ही संभव है। सौदर्यबोध का मतलब ही है वह कभी मलिन नहीं पड़े।

इस मौके पर ज्ञानपीठ से पुरस्कृत लेखिका महाश्वेता देवी ने अपने उद्घाटन भाषण में कहा कि शांतिनिकेतन में हजारी प्रसाद द्विवेदी उनके शिक्षक थे। शांतिनिकेतन में सभी उन्हें छोटे पंडित जी कहते थे। उन्होंने कहा कि आदिवासियों के अधिकार के लिए संघर्ष करते हुए जिंदगी गुजारी। चाहकर भी वह बेहतर हिंदी नहीं सीख पाई। इसका उन्हें दु:ख है, पर अब इसके लिए कुछ नही किया जा सकता है। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के पुत्र मुकुंद द्विवेदी ने पिता के व्यक्तित्व विस्तार से प्रकाश डाला। इस अवसर पर महाश्वेता देवी ने द्विवेदीजी पर आधारित पुस्तक अब कछु कही नाहि का लोकार्पण भी किया।

डा. कृष्ण बिहारी मिश्र ने कहा कि मै हजारी प्रसाद द्विवेदी का छात्र रहा हूं और मुझे उनसे बहुत कुछ सीखने को मिला है। जिस तरह से पंडित जी का कोई वक्तव्य रवींद्रनाथ टैगोर के बिना पूरा नही होता था, उसी तरह से हमारे लिए भी उनका वक्तव्य मायने रखता है। वरिष्ठ आलोचक डा. रमेश कुंतल मेघ ने कहा कि हजारी प्रसाद द्विवेदी चंडीगढ़ आने के बाद पंडित जी से आचार्य जी हो गए। उनके निर्माण में चंडीगढ़ का अहम योगदान है और वहां रहते हुए उन्होंने काशी को कभी याद नही किया। अपने अध्यक्षीय भाषण में विश्वभारती के उपकुलपति डा. रजतकांत राय ने कहा कि हिंदी को क्षेत्रिय भाषा के रूप में देखना उचित नहीं है। वरिष्ठ पत्रकार प्रभाष जोशी ने कहा कि क्रिकेट 20 में व्यस्त रहने की वजह से वह अन्य विषयों पर ध्यान नही दे सके, इसलिए कभी तैयारी के साथ आने पर वह एक घंटे तक बोलेंगे और जिसे सुनना होकर मुझे आकर सुन ले। संगोष्ठी को लेकर उनकी तैयारी अधूरी थी। भारतीय भाषा परिषद के निदेशक डा. इन्द्रनाथ चौधरी ने अतिथियों का परिचय दिया। प्रसिद्ध रंगकर्मी डा. प्रतिभा अग्रवाल ने धन्यवाद ज्ञापन करते हुए कहा कि उनका जीवन पर्यत हजारी प्रसाद द्विवेदी के साथ संवाद जारी रहा। नके निर्माण में चंडीगढ़ का अहम योगदान है और वहां रहते हुए उन्होंने काशी को कभी याद नही किया। अपने अध्यक्षीय भाषण में विश्वभारती के उपकुलपति डा. रजतकांत राय ने कहा कि हिंदी को क्षेत्रिय भाषा के रूप में देखना उचित नहीं है। वरिष्ठ पत्रकार प्रभाष जोशी ने कहा कि क्रिकेट 20 में व्यस्त रहने की वजह से वह अन्य विषयों पर ध्यान नही दे सके, इसलिए कभी तैयारी के साथ आने पर वह एक घंटे तक बोलेंगे और जिसे सुनना होकर मुझे आकर सुन ले। संगोष्ठी को लेकर उनकी तैयारी अधूरी थी। भारतीय भाषा परिषद के निदेशक डा. इन्द्रनाथ चौधरी ने अतिथियों का परिचय दिया। प्रसिद्ध रंगकर्मी डा. प्रतिभा अग्रवाल ने धन्यवाद ज्ञापन करते हुए कहा कि उनका जीवन पर्यत हजारी प्रसाद द्विवेदी के साथ संवाद जारी रहा।



न्यूयॉर्क में आयोजित 8वाँ विश्व हिंदी सम्मेलन - एक आकलन

लेखक: विजय कुमार मल्होत्रा, पूर्व निदेशक (राजभाषा),रेल मंत्रालय, भारत सरकार


संयोग से मुझे न्यूयॉर्क में हाल ही में आयोजित 8वें विश्व हिंदी सम्मेलन में भारतीय शिष्टमंडल के सदस्य के रूप में भाग लेने का न केवल अवसर मिला, बल्कि सम्मेलन के बाद अमरीका में बसे हिंदी प्रेमी प्रवासी भाइयों से उसकी उपलब्धियों और विफलताओं पर विशद चर्चा करने का अवसर भी मिला. मैं न्यूयॉर्क स्थित भारतीय मिशन के उस समारोह में भी सम्मिलित हुआ, जिसमें सम्मेलन की उपलब्धियों का आकलन किया गया. सम्मेलन के बाद मैं उन विश्वविद्यालयों में भी गया, जहाँ हिंदी का अध्ययन-अध्यापन पूर्णकालिक विषय के रूप में किया जाता है. इससे पहले कि मैं विषयवार चर्चा करूँ, मैं उन उपलब्धियों को रेखांकित करना चाहूँगा, जिनके कारण यह सम्मेलन अभूतपूर्व बन गया. पिछले सभी सम्मेलनों में यह प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित किया गया कि संयुक्त राष्ट्र में हिंदी को आधिकारिक भाषा का दर्जा दिलाने के लिए हरसंभव उपाय किए जाएँ, किंतु पहली बार यह प्रस्ताव संयुक्त राष्ट्र के मुख्यालय में और संयुक्त राष्ट्र महासचिव की उपस्थिति में पारित किया गया और संयुक्त राष्ट्र महासचिव श्री बान की-मून ने स्वयं हिंदी भाषा में अपने भाषण की शुरुआत करके हिंदीप्रेमियों को चौंका भी दिया. साथ ही इस अवसर पर भारत के विदेश राज्य मंत्री श्री आनंद शर्मा ने यह आश्वासन दिया कि भारत सरकार इसके लिए धन की कमी नहीं होने देगी.


अब तक 8 विश्व हिंदी सम्मेलन आयोजित हो चुके हैं, लेकिन पहली बार सम्मेलन की ऐसी वेबसाइट बनाई गई थी जो पूरी तरह गतिशील (Dynamic) और अंत:क्रियात्मक (Interactive) थी. प्रतिदिन नित नई सूचना वेबसाइट के माध्यम से प्रतिभागियों को दी जाती थी. प्रतिभागी अपना पंजीकरण भी वेबसाइट के माध्यम से ही करा सकते थे. जिन लोगों को अमरीकी दूतावास से वीज़ा प्राप्त करना था, उन्हें भी अद्यतन सूचनाएँ इसी वेबसाइट के माध्यम से दी जाती थीं. इसके अलावा, इस वेबसाइट पर हिंदी से संबंधित तमाम लिंक भी दिए गए थे, जिनकी सहायता से विश्व के किसी भी कोने में बैठे हुए आप हिंदी संबंधी निम्नलिखित सूचनाएँ आज भी प्राप्त कर सकते हैं:


  • इंटरनेट पर हिंदी के कुछ प्रमुख पोर्टल तथा वेबसाइट
  • कंप्यूटर पर हिंदी में काम करने के लिए तकनीकी सुविधाएं व सूचनाएं
  • हिंदी की प्रगति में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले संगठन
  • हिंदी शिक्षण में जुटे विदेशी विश्वविद्यालय व शिक्षण संस्थान


इस वेबसाइट की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि यह विश्वव्यापी मानक युनिकोड पर आधारित थी, जिसके कारण इसे देखने के लिए किसी फ़ॉन्टविशेष को डाउनलोड करने की जरूरत नहीं पड़ती थी. किसी सम्मेलन के वेबकास्ट का भी यह पहला अवसर था. इसकी व्यवस्था में अमरीका में बसे कंप्यूटर विशेषज्ञ श्री अनूप भार्गव का सबसे अधिक योगदान रहा. यद्यपि यह वेबकास्ट जीवंत और प्रत्यक्ष तो नहीं था, लेकिन कुछ समय के अंतराल के बाद देश-विदेश में बैठे हिंदी प्रेमी इसकी सहायता से सम्मेलन की अद्यतन गतिविधियों से अवगत हो सकते थे.


जहाँ तक आवास, भोजन, सम्मेलन के सत्रों और प्रदर्शनी आदि के लिए व्यवस्था का संबंध है, सभी प्रतिभागियों ने महसूस किया कि कम से कम भोजन की तो ऐसी व्यवस्था पिछले किसी सम्मेलन में अब तक नहीं की जा सकी थी. इसका श्रेय न्यूयॉर्क स्थित भारतीय विद्याभवन के कार्यपालक निदेशक डॉ.जयरामन के दिया जाना चाहिए. सम्मेलन के समानांतर सत्रों और प्रदर्शनी के लिए पर्याप्त स्थान और साधनों की व्यवस्था की गई थी. हाँ..आवास के मामले में कुछ शिकायतें जरूर आईँ, लेकिन उन्हें भी शीघ्र ही सुलझा लिया गया. जहाँ तक शैक्षणिक सत्रों का संबंध है, विषयों में काफ़ी विविधता थी. संयुक्त राष्ट्र संघ में हिंदी से लेकर देश-विदेश में हिंदी शिक्षणः समस्याएं और समाधान, वैश्वीकरण, मीडिया और हिंदी,विदेशों में हिंदी साहित्य सृजन (प्रवासी हिंदी साहित्य), हिंदी के प्रचार-प्रसार में सूचना प्रौद्योगिकी और हिंदी फिल्मों की भूमिका, हिंदी, युवा पीढ़ी और ज्ञान-विज्ञान, हिंदी भाषा और साहित्य- विभिन्न आयाम:साहित्य में अनुवाद की भूमिका, हिंदी और बाल साहित्य, देवनागरी लिपि आदि विविध विषयों को रखा गया था. स्वाभाविक था कि इतने अधिक विषयों पर चर्चा समानांतर सत्रों के माध्यम से ही संभव थी. समय की कमी और वक्ताओं की भरमार के कारण कभी-कभी अध्यक्ष और संयोजक के लिए संकट की स्थिति भी उत्पन्न हो जाती थी, लेकिन आयोजकों की सूझबूझ के कारण न केवल अधिक से अधिक वक्ताओं को समेटने का प्रयास किया गया, बल्कि बाहर से आए वक्ताओं को भी कुछ समय देने का प्रयास किया गया.


इस सम्मेलन के साथ तीन प्रदर्शनियों का आयोजन किया गया था. पहली प्रदर्शनी राष्ट्रीय अभिलेखागार की ओर से लगाई गई थी, जिसमें ऐतिहासिक महत्व के हिंदी दस्तावेज, पत्र-पत्रिकाओं आदि का प्रदर्शन किया गया. नेशनल बुक ट्रस्ट की ओर से आयोजित पुस्तक प्रदर्शनी में महत्वपूर्ण हिंदी साहित्य के अतिरिक्त विश्व के विभिन्न देशों से प्रकाशित होने वाली हिंदी पत्र-पत्रिकाओं का प्रदर्शन भी किया गया. सूचना प्रौद्योगिकी में हिंदी से जुड़े अधुनातन अनुप्रयोगों पर एक अन्य प्रदर्शनी का आयोजन भी किया गया. श्री बालेन्दु शर्मा दाधीच के समन्वय में आयोजित की गई इस प्रदर्शनी में गृह मंत्रालय के राजभाषा विभाग की ओर से सीडैक व अन्य सरकारी तकनीकी संगठनों के जरिए तैयार करवाए गए आधुनिक हिंदी अनुप्रयोगों का प्रदर्शन भी किया गया. इस प्रदर्शनी की सबसे बड़ी उपलब्धि यह थी कि इसमें सीडैक की ओर से तीन ऐसे अनुप्रयोगों का प्रदर्शन किया गया था, जिनके विकास से हिंदी प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में नए आयाम स्थापित हो गए हैं. लीला नामक एक ऐसा मल्टीमीडिया पैकेज विकसित किया गया है, जिसकी सहायता से घर बैठे हिंदी सीखी जा सकती है. मंत्र एक ऐसा मशीनी-अनुवाद का पैकेज है, जिसकी सहायता से प्रशासनिक प्रलेखों को अंग्रेजी से हिंदी में अनूदित किया जा सकता है. श्रुतलेखन राजभाषा वाक् प्रौद्योगिकी में मील का पत्थर सिद्ध हो सकता है. इसकी सहायता से हिंदी में डिक्टेशन दिया जा सकता है. सम्मेलन समाचार का दैनिक प्रकाशन भी इस सम्मेलन की एक विशिष्ट उपलब्धि कहा जा सकता है. इसका संपादन प्रो.अशोक चक्रधर ने बड़ी सूझबूझ और रचनाधर्मिता से किया था. इसका तकनीकी निर्देशन युवा कंप्यूटर विशेषज्ञ अशोक चक्रधर ने किया था. इसके प्रकाशन के लिए माइक्रोसॉफ़्ट के हिंदी ऑफ़िस पब्लिशर का उपयोग किया गया था. वस्तुत: यह बुलेटिन सम्मेलन के प्रतिभागियों के लिए रेडी रेकनर की तरह अत्यंत उपयोगी सिद्ध हुआ. समानांतर सत्रों के कारण प्रतिभागीगण चाहते हुए भी एक से अधिक सत्रों का जानकारी नहीं पा सकते थे. बुलेटिन के कारण अगले दिन ही प्रतिभागियों को सभी सत्रों में प्रस्तुत आलेखों की विषयवस्तु की संक्षिप्त जानकारी मिल जाती थी. इस बुलेटिन में आगामी कार्यक्रमों की अद्यतन जानकारी भी उपलब्ध रहती थी. प्रतिक्रियाओं का स्तंभ भी प्रतिभागियों में खासा लोकप्रिय रहा. बिना किसी भेदभाव के कोई भी प्रतिभागी बुलेटिन में अपनी प्रतिक्रियाएं दे सकता था. सचित्र होने के कारण यह बुलेटिन सम्मेलन की प्रत्येक गतिविधि का आँखों-देखा हाल पाठकों के सामने प्रस्तुत करने में पूर्णत: सफल रहा. इसके अलावा सम्मेलन की वेबसाइट पर इसकी पीडीएफ़ फाइल उपलब्ध रहने के कारण देश-विदेश में बैठे हिंदी प्रेमी भी स्वयं अपनी उपस्थिति सम्मेलन में महसूस कर सकते थे. रंगीन चित्रों के कारण यह बहुत ही नयनाभिराम और आकर्षण लगता था. अब भारत सरकार ने इन बुलेटिनों का समग्र प्रकाशित करने का संकल्प किया है. यह समग्र निश्चय ही सम्मेलन के मंतव्य को विश्वभर में फैले हिंदीप्रेमियों तक पहुँचाने में सफल सिद्ध होगा. इस प्रकार यदि हम देखें तो यह सम्मेलन अपने आप में एक अनूठा सम्मेलन था. यदि इस सम्मेलन में पारित प्रस्तावों पर समय रहते अपेक्षित कार्रवाई की जाए और विश्वहिंदी वेबसाइट के माध्यम से विश्व भर के हिंदी प्रेमियों को इससे जोड़ा रखा जा सके तो यह सम्मेलन हिंदी को विश्व भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह कर सकता है.


अमेरिका में षष्ठम हिन्दी महोत्सव- २००७

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हिन्दी महोत्सव अमेरिका में पैदा हुई तथा पली-बढ़ी भारतीय पीढ़ी को समर्पित एक भारतीय संस्कृति तथा राष्ट्र भाषा हिन्दी को जीवित रखने वाला एक अनूठा कार्यक्रम है। प्रतिवर्ष हिन्दी यू एस ए हिन्दी के प्रचार तथा प्रसार के लिए हिन्दी महोत्सव का आयोजन करता है इस वर्ष न्यूजर्सी के प्लेंसबोरो नामक शहर में दिनांक ७ जुलाई २००७ को इसका आयोजन अपरान्ह १ बजे से किया गया तथा यह अर्धरात्रि १२ बजे तक चलता रहा। कार्यक्रम के पहले पक्ष में हिन्दी यू एस ए द्वारा चलायी जा रही हिन्दी पाठशालाओं के सांस्कृतिक कार्यक्रम तथा प्रतियोगिताओं का आयोजन किया गया। आकर्षक वेषभूषाओं में अंग्रेजी सभ्यता में पल रहे बच्चों ने सुंदर भजन, प्रार्थनाएँ, देशभक्ति के सामूहिक गीत, नृत्य, नाटक, एकांकी तथा भारत के गौरव और हिन्दी की गरिमा को प्रदर्शित करती हुई कुछ प्रस्तुतियाँ, तथा झाँकियाँ दिखायीं। कविता पाठ प्रतियोगिता ने सभी श्रोताओं का मन मोह लिया। छोटे-छोटे बच्चों द्वारा बड़े-बड़े कवियों की रचनाएँ सुनकर सभी ने दाँतों तले उँगलियाँ दबा ली। दिनकर जी की रचना पर आधारित महाभारत नृत्य नाटिका को दर्शक कभी नहीं भूलेंगे। बच्चों के स्तुति करने पर जो भारतमाता का प्राकट्य हुआ उस समय दर्शक स्वंय को रोक न सके और अमेरिका में भारतमाता के दर्शन पाकर सारा कक्ष तालियों से गूँज उठा। भारतमाता ने प्रवासी भारतियों के अनेक प्रश्नों के उत्तर दिए। प्रसिद्ध योग गुरु स्वामी रामदेव जी ने कार्यक्रम में पधार कर कार्यक्रम की शोभा बढ़ा दी। उनका ओजपूर्ण प्रवचन सुनकर प्रत्येक श्रोता अपने जीवन को धन्य मान रहा था। उन्होंने हिन्दी विद्यार्थियों को आर्शीवाद दिया तथा हिन्दी यू एस ए की भूरी-भूरी प्रशंसा की। प्रथम पक्ष के अंत में प्रतियोगिता के विजेताओं की घोषणा तथा पुरुस्कार वितरण समारोह हुआ तथा कार्यक्रम के आयोजक श्री देवेन्द्र सिंह ने सभी को हिन्दी भाषा के कार्य में सहयोगी होने के लिए धन्यवाद दिया। इस कार्यक्रम के समानांतर कक्ष के बाहर ५००० हिन्दी पुस्तकों के स्टॉल का आयोजन भी चलता रहा जिसमें बच्चों की हिन्दी सीखने की पुस्तकें कहानियों की पुस्तकें, वेद, पुराण, योग, हिन्दुत्व, भारत के इतिहास, उपन्यास, काव्य संग्रह आदि की पुस्तकें दर्शकों द्वारा सराही व खरीदी गई। भारतीय, आभूषण, वस्त्रों तथा अन्य वस्तुओं के भी स्टॉल लगाए गए। मध्यांतर में स्वादिष्ट भारतीय भोजन कर श्रोता-गण कवि-सम्मेलन के लिए एकत्रित होने लगे। कवि-सम्मेलन के पहले फ्लोरिडा से पधारे हिन्दू यूनीवर्सिटी के श्री ब्रह्म अग्रवाल जी ने एक समझौते पर हस्ताक्षर किए। जिसके अनुसार हिन्दू विश्व विद्यालय तथा हिन्दी यू एस ए हिन्दी के प्रचार तथा प्रसार के लिए मिलकर कार्य करेंगे। श्री ब्रह्म अग्रवाल जी हिन्दी यू एस ए के सभी शिक्षकों एवं स्वयंसेवकों को सम्मानित किया तथा कुछ विशिष्ठ शिक्षकों एवं स्वयंसेवकों को सम्मान-पत्र प्रदान किए। यह ज्ञात हो कि हिन्दी यू एस ए उत्तरी अमेरिका की सबसे बड़ी स्वंयसेवी संस्था है। जिसमें ५० सक्रिय स्वंयसेवक, १०० से भी अधिक हिन्दी शिक्षक तथा २००० अन्य सदस्य हैं। इस कार्यक्रम में भारत से अनेक अतिथि पधारे जिनमें मुख्य थे श्री जवाहर कर्नावट जी। इसके अतिरिक्त नार्वे में हिन्दी के लिए कार्यरत प्रसिद्ध सहित्यकार श्री सुरेश चंद्र शुक्ल नार्वे से पधारे। कॉग्रेसमैन चिवुकुला तथा सुश्री सीमा सिंह ने भी अपना अमूल्य समय दिया। रात्रि आठ बजे के लगभग श्री देवेन्द्र सिंह ने भारत से पधारे ४ महान और प्रसिद्ध, अत्यधिक लोकप्रिय कवियों तथा कवित्री को मंच पर संक्षिप्त परिचय के साथ आमंत्रित किया। आमंत्रित कवियों, श्री माणिक वर्मा जी, श्री गजेन्द्र सोलंकी जी, सुश्री अनिता सोनी जी तथा सबके चहेते श्री सत्यनारायण मौर्य ने सभी दर्शकों को रात्रि १२ बजे तक बाँधे रखा। भारत माँ की आरती के साथ अनेक भावुक श्रोताओं ने हिन्दी यू एस ए के स्वंयसेवक बनने की शपथ ली। इस प्रकार भारत की भूमि से दूर विदेश में हिन्दी का ११ घंटे चलने वाला यह सबसे बड़ा कार्यक्रम रात्रि १२ बजे कवियों की भावभीनी विदाई के साथ समाप्त हुआ। www.HindiUSA.org


दिल्ली हिन्दी साहित्य सम्मेलन की राष्ट्रपति से अपील

महामहिम जी, आपने अपनी सहृदयता, योग्यता, सरलता तथा विद्वत्ता से जनता के प्रिय राष्ट्रपति के रूप में भारत के इतिहास में प्रमुख स्थान बनाया है। प्रारंभ में आपने राष्ट्रपति की शपथ ग्रहण के बाद राष्ट्रभाषा हिन्दी के विकास और उसमें लिखने और बोलने की घोषणा की थी आप कभी-कभी हिन्दी में बोले और वार्तालाप भी किया। हिन्दी में भाषणों का प्रारंभ भी किया परंतु मेरी जानकारी के अनुसार आपके राष्ट्रपति भवन की वेबसाइट (प्रेजीडेन्ट आफ इंडिया एन आई सी इन) जो बनवाई उसमें राजभाषा और राष्ट्रभाषा हिन्दी को कोई महत्वपूर्ण स्थान नहीं दिया गया जो हिन्दी प्रेमियों के लिये बहुत ही कष्टदायक प्रतीत हो रहा हैं। मुझे विश्वास है महामहिम जी आप नये राष्ट्रपति के आने से पूर्व ही अपनी वेबसाइट में हिन्दी को यथोचित स्थान दिलाकर राष्ट्रभाषा को उचित स्थान दिलाएँगे।


महुआ माजी लंदन के हाउस ऑफ लॉर्ड्स में कथा (यू.के.) सम्‍मान प्राप्‍त करेंगी

कथा (यू के) के मुख्य सचिव एवं प्रतिष्ठित कथाकार श्री तेजेन्द शर्मा ने लंदन से सूचित किया है कि वर्ष 2007 के लिए अंतर्राष्ट्रीय इंदु शर्मा कथा सम्मान नवोदित और समर्थ उपन्‍यासकार सुश्री महुआ माजी को राजकमल प्रकाशन से 2006 में प्रकाशित उपन्यास मैं बोरिशाइल्‍ला पर देने का निर्णय लिया गया है। इस पुरस्कार के अन्तर्गत दिल्ली - लंदन - दिल्ली का आने जाने का हवाई यात्रा का टिकट (एअर इंडिया द्वारा प्रायोजित) एअरपोर्ट टैक्स़, इंगलैंड के लिए वीसा शुल्क़, एक शील्ड, शॉल, लंदन में एक सप्ताह तक रहने की सुविधा तथा लंदन के खास खास दर्शनीय स्थलों का भ्रमण आदि शामिल होंगे। यह सम्मान सुश्री महुआ माजी को लंदन के हाउस ऑफ लॉर्ड्स में 20 जुलाई 2007 की शाम को एक भव्य आयोजन में प्रदान किया जायेगा। पिछले वर्ष श्री असग़र वजाहत किसी भी भारतीय भाषा के लिए हाउस ऑफ लॉर्ड्स में सम्‍मानित होने वाले पहले भारतीय लेखक थे। इंदु शर्मा मेमोरियल ट्रस्ट की स्थापना संभावनाशील कथा लेखिका एवं कवयित्री इंदु शर्मा की स्मृति में की गयी थी। इंदु शर्मा का कैंसर से लड़ते हुए अल्प आयु में ही निधन हो गया था। अब तक यह प्रतिष्ठित सम्मान सुश्री चित्रा मुद्गल, सर्वश्री संजीव, ज्ञान चतुर्वेदी, एस आर हरनोट, विभूति नारायण राय, प्रमोद कुमार तिवारी और असग़र वजाहत को प्रदान किया जा चुका है। सुश्री महुआ माजी ने बांग्‍ला देश के मुक्ति संग्राम की पृष्‍ठभूमि पर लिखे अपने पहले ही उपन्‍यास से हिन्‍दी जगत में शिद्दत से अपनी उपस्थिति दर्ज करायी है। समाज शास्‍त्र की गंभीर अध्‍येता महुआ समाजशास्‍त्र में पीएचडी हैं और उन्‍होंने रवीन्‍द्र विश्‍वविद्यालय से फाइन आर्ट्स में अंकन विभाकर की डिग्री ली है। उनकी कई कहानियां विभिन्‍न पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं। मैं बोरिशाइल्‍ला का अंग्रेज़ी और बांग्ला में अनुवाद हो रहा है। इस उपन्यास को सभी पाठकों और समीक्षकों की भरपूर प्रशंसा मिली है। वर्ष 2007 के लिए पद्मानन्द साहित्य सम्मान डा. गौतम सचदेव को उनके कहानी संग्रह साढ़े सात दर्जन पिंजरे (2005 – वाणी प्रकाशन) के लिए दिया जा रहा है। डा. गौतम सचदेव का जन्म मंडी वारबर्टन, शेख़ुपुरा (अब पाकिस्तान) में हुआ था और उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से एम.ए. एवं पी-एच.डी. तक शिक्षा प्राप्त की। उनकी प्रकाशित रचनाओं में अधर का पुल, एक और आत्म समर्पण (दोनो कविता संग्रह), सच्चा झूठ (व्यंग्य संग्रह), बूंद बूंद आकाश (ग़ज़ल संग्रह), प्रेमचंद – कहानी शिल्प (शोध प्रबंध) आदि शामिल हैं। इससे पूर्व इंगलैण्ड के प्रतिष्ठित हिन्दी लेखकों क्रमश: डॉ सत्येन्द श्रीवास्तव, सुश्री दिव्या माथुर, श्री नरेश भारतीय, भारतेन्दु विमल, डा.अचला शर्मा, उषा राजे सक्‍सेना और गोविंद शर्मा को पद्मानन्द साहित्य सम्मान से सम्मानित किया जा चुका है। कथा यू.के. परिवार उन सभी लेखकों, पत्रकारों, संपादकों मित्रों और शुभचिंतकों का हार्दिक आभार मानते हुए उनके प्रति धन्यवाद ज्ञापित करता है जिन्होंने इस वर्ष के पुरस्कार चयन के लिए लेखकों के नाम सुझा कर हमारा मार्गदर्शन किया और हमें अपनी बहुमूल्य संस्तुतियां भेजीं।

सूरज प्रकाश : भारत में कथा यूके के प्रतिनिधि email:kathaakar@gmail.com mob: 9860094402

‘‘पासपोर्टका रङहरू‘‘विमोचन समारोह

अप्रैल 07, 2007 शनिवार को जेसीज भवन इटहरी में कुमुद अधिकारीद्वारा अनूदित व सम्पादित श्री तेजेन्द्र शर्मा की बारह कहानियों का संग्रह पासपोर्टका रङहरू का विमोचन कार्यक्रम आयोजन साहित्यसञ्चार समूह इटहरी ने किया। कृति का विमोचन वरिष्ट कवि एवं साहित्यकार श्री कृष्णभूषण बल ने किया। विमोचित कृति के समीक्षकों में से तीन प्रमुख थे – श्री कृष्ण धरावासी, श्री भूषण ढुङ्गेल और श्रीमती ज्योति जङ्गल। उनके विचार सारांश में इस प्रकार थे-

श्री धरावासीः

1. तेजेन्द्र की कहानियां बहुत प्रभावशाली व सामयिक हैं। उनकी कहानियां पढ़ने से लगता है, हम खुद उनके पात्र हैं और वैसी ही जिन्दगी जी रहे हैं। जो हम भोग रहे हैं वही सत्य है। उनकी कहानियों में दूसरी महत्त्वपूर्ण बात उन्होंने वही लिखा है जो देखा हैं जो भोगा है। वे नोस्टाल्जिया और कोरी कल्पना के शिकार नहीं हैं।

2. उनकी कुछ कहानियों के थिम पश्चिमी परिवेश में नयीं लगती हैं पर हैं नहीं। जैसे ‘कोखको भाडा‘ में पैसे लेखर बच्चा जनने की बात श्रद्धेय मदनमणि दीक्षित के (नेपाली) उपन्यास ‘माधवी‘ में पहले ही आ चुकी है। उस उपन्यास में श्यामकर्ण घोड़े के बदले कोख को किराए पर लगाने कि बात कही गई है। पर इस कहानी में कोख किराए में देने का मकसद महज प्यार है।

3. ‘पासपोर्टका रङहरू‘ की कहानियां पढ़ने से ऐसा लगता है कि ये कहानियां हिन्दी में न लिखकर नेपाली में ही लिखी गई हों। यहीं पर रुपान्तरकार ने अपनी खूबियां दिखाई हैं। यदि पात्रों व जगहों के नाम बदल दिए जाएं तो वे पूरी की पूरी नेपाली कहानियां बनती हैं।

4. कहानियों में बहुत सी जगहों पर हिन्दी शब्द हैं। रूपान्तरकार का उद्देश्य मूल हिन्दी के स्वाद को बरकरार रखना हो सकता है पर यह जरूरी नहीं था। फिर भी कोई किताब सौ फीसदी ठीक भी तो नहीं हो सकती।

श्री भूषण ढुङ्गेलः

1. तेजेन्द्र की कहानियों में प्रवासी भारतियों की पीडा़ ज्यों कि त्यों दिखाई पड़ती है। ‘पासपोर्टका रङहरू‘ कहानी में इस बात को दर्शाया गया है की एक भारतीय कैसे जीता है पराए देश में।

2. मानवीय संबंधों के तानेबाने देखने को मिलते हैं उनकी कहानियों में। लोगों की भीड़ में अपनी पहचान ढूंढ़ते पात्र देखकर लगता है की हम सब भी इसके लिए जिम्मेदार हैं।

3. कुमुद अधिकारी ने इन बारह शक्तिशाली कहानियों को नेपाली में अनुवाद कर नेपाली साहित्य को बहुत इज्जत दी है। वैसे मुझे नहीं लगा की मैं हिन्दी कहानियां पढ़ रहा हूं। उनका यह अनुवाद कार्य नेपाली और हिंदी साहित्य को जोड़ने के लिए एक और सेतु सिद्ध होगा।

श्रीमती ज्योति जङ्गलः

1. मैं तेजेन्द्र की कहानियों से बहुत प्रभावित हुई हूं या यों कहें भीतर तक हिल गई हूं। मैं खुद औरत हूं पर अब लगता हैं की मैंने औरत की मजबूरियां और दर्द को समझा ही नहीं। उनकी कहानियां पढ़ने पर ऐसा लगा मानों उन सब कहानियों की औरत पात्र मैं ही हूं, वे सब दर्द मेरे हैं। औरतों की भावनाओं और दर्द को इस कदर उजागर करने के लिए तेजेन्द्र को बहुत बधाई।

2. कुमुद की सायद यह दूसरी अनुवाद कृति है। उनकी पहली कृति ‘जिंदगी एक फोटो-फ्रेम‘ बहुत से मायनों में सफल रही है। इसमें भी श्री अधिकारी ने वही उत्साह और दिलेरी दिखाई है।

कार्यक्रम के प्रमुख अथिति श्री कृष्णभूषण बल ने अपनी बात में रुपान्तरकार के उत्साहको सराहते हुए सुझाव दिया कि हर पाँच कहानियां अनुवाद करने के वाद वे खुद अपनी एक कहानी लिखें। साथ ही साथ उन्होंने श्री तेजेन्द्र शर्मा को इतनी अच्छी कहानियों को नेपाली में रूपान्तर करने के लिए अनुमति प्रदान करके नेपाली पाठकों का जो सम्मान किया उसके लिए ढेर सारी बधाइयां दी और धन्यवाद व्यक्त किया।

कार्यक्रम के समापन वक्तव्य में सभापति श्री मनु मंजिल ने रूपान्तरकार की हिम्मत को दाद देते हुए कहा कि ऐसे मुश्किल कार्य में हाथ डालकर कुमुद ने काबिले तारिफ काम किया है। साथ ही उन्होंने लेखक श्री तेजेन्द्र शर्मा का भी तहे दिल से शुक्रिया अदा किया।

कार्यक्रम में साहित्यकार विवश पोखरेल, रश्मिशेखर, कृष्ण बराल, जी.बी लुगुन, तेराख, लीला अनमोल, दीपा अविरल, समुन्द्रा शर्मा, टीका सुवेदी, सुजात, वैदिक अत्रि, डम्बर घिमिरे, शर्मिला खड़का, रीता खत्री, शालिकराम ढकाल, कालीप्रसाद सुवेदी, छविनाथ रिजाल, रुद्र उप्रेती, ठमनाथ लम्साल, कृष्णविनोद लम्साल, चूड़ावसन्त लम्साल, टीका आत्रेय, टोलनाथ काफ्ले, रीता ताम्राकार आदि वरिष्ठ तथा सक्रिय साहित्यकारों के अलावा तकरीबन २५० साहित्यकार, पत्रकार उपस्थित थे।

इसके अलावा प्राध्यापक डा. गोपाल भण्डारी, डा. टङ्क नेउपाने की उपस्थिति विशेष अतिथि के रूप मे थी। कार्यक्रमका संचालन कवि और सप्तकोसी एफ.एम. साहित्यिक कार्यक्रम प्रस्तोता श्री एकू घिमिरे ने किया।

दिनेश पौडेल,

सचिव,

साहित्यसञ्चार समूह

इटहरी, नेपाल।

Email: nibandhakar@yahoo.com


मॉस्को में हिन्दी महोत्सव

27 से 29 मार्च तक रूस की राजधानी मॉस्को में त्रिदिवसीय मॉस्को हिन्दी महोत्सव हुआ। रूस में भारत के राजदूत श्री कंवल सिब्बल ने मॉस्को हिन्दी महोत्सव का उद्घाटन किया। महोत्सव में रूस और उसके पड़ौसी देशों कज़ाकिस्तान, बेलारूस, उक्रेन, ताजिकिस्तान, उजबेकिस्तान, लिथुआनिआ आदि के लगभग सौ हिन्दी विद्वान भाग लिया। भारत के राजदूत श्री कंवल सिब्बल ने अपने भाषण में कहा कि इस नई सदी में जब पूरा विश्व एक गांव के रूप में सिमट आया है, यह ज़रूरी है कि हम एक दूसरे की संस्कृति को गहराई से समझें। मॉस्को हिन्दी महोत्सव इसी दिशा में एक नया कदम है। पिछले पचास वर्षों से हिन्दी से जुड़े वरिष्ठ साहित्यकार पद्मभूषण येव्गेनी चेलिशव इस अवसर पर बेहद भावुक हो गये और उन्होंने कहा कि इतिहास चल रहा है, समय गुज़र रहा है, हिन्दी भी साथ साथ बढ़ रही है। इसी हिन्दी ने हमें यहां इकट्ठा किया है। उन्होंने निराला, मुक्तिबोध, नागार्जुन, पंत, बच्चन, श्रीकांत वर्मा, अज्ञेय जैसे महारथी साहित्यकारों से जुड़े संस्मरण सुनाए। मॉस्को विश्वविद्यालय के एशियाई व अफ्रीकी अध्ययन संस्थान के डीन प्रो. मिखाइल मेयर ने कहा कि आज जब रूस और भारत के संबंध एक बार फिर अपने विकास के उच्च स्तर पर पहुंच रहे हैं इस तरह के सम्मेलन आयोजन एक सही समय है। हिन्दी व्याकरण के रूसी आचार्य श्री अलेग उलत्सीफेरोव ने बताया कि रूस में 1947 से हिन्दी पढ़ाई जा रही है। इस बीच में रूसी विद्वानों ने हिन्दी के दस व्याकरण लिखे हैं, जिनमें सॆ 5 भारत में प्रकाशित हुए हैं। भारत से प्रो. वाई लक्ष्मी प्रसाद, प्रो. अशोक चक्रधर, डॉ. विजय कुमार मल्होत्रा, डॉ. विमलेश कांति वर्मा और मधु गोस्वामी इस महोत्सव में भाग लिया। रूसी साहित्य के प्रसिद्ध अनुवादक श्री मदनलाल मधु को रूस आए पूरे पचास साल हो गए। पूरे सभागार ने इस अवसर पर उनका अभिनंदन किया। कार्यक्रम के संयोजक प्रो. सराजू ने सम्मेलन में पूरे तीन दिन तक सक्रिय रूप से भाग लिया । सम्मेलन में विदेशों में हिन्दी शिक्षण पर व्यवहारिक चर्चाएं हुईं । रूस स्थित भारत मित्र समाज ने भारत के विदेश मंत्रालय और रूस स्थित जवाहर लाल नेहरू सांस्कृतिक केन्द्र तथा भारतीय दूतावास के साथ मिलकर इस महोत्सव का आयोजन किया था ।


"रंग तरंग और हास्य व्यंग - सीधे प्रसारण के संग"

१० मार्च २००७, फिलेडेल्फिया, यू एस ए, होली के सुअवसर पर फिलेडेल्फिया स्तिथ भारतीय टेंपल भवन में 'रंग तरंग और हास्य व्यंग्य' नामक कवि सम्मेलन का आयोजन 'भारतीय सांस्कृतिक केन्द्र' के तत्वाधान में किया गया। कार्यक्रम का प्रारभ भारत के प्रख्यात गीतकार सोम ठाकुर नें दीप प्रज्जवलित कर के किया तथा फिर लगभग चार घंटों तक सभी नें कविताओं का रसास्वादन किया। हास्य, व्यंग्य, गीतों तथा ग़ज़लों से सजी शाम का आयोजन इस क्षेत्र में पहली बार किया गया था। इंदौर से पधारी डा अनीता सोनी नें माँ सरस्वती की वन्दना करी तथा अपने सुमधुर कंठ से आनंदित करने वाली रचनाएँ सुनाईं। उनकी होली के अवसर पर लिखी कविता 'बलम अनाडी नें' खूब पसंद किया। न्यू जर्सी से पधारे अनूप भार्गव नें अपनी छोटी छोटी रचनाओं से सभी श्रोताओं का मन मोह लिया तथा वहीं डा बिन्देश्वरी अग्रवाल की कविताओं नें सबको गुदगुदाया। फिलेडेल्फिया के प्रसिद्ध कवि घनश्याम गुप्त नें रामधारी सिंह 'दिनकर' के कुछ छन्द पढ़े तथा अपनी कुछ रचनाएँ सुनाईं। उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान से पधारे श्री पी के मिश्रा जी नें भी सभा को सबोधित किया। हास्य व्यंग्य के प्रतिष्ठित कवि अभिनव शुक्ल सभागार में सशरीर उपस्तिथ नहीं थे। वे किन्हीं कारणों से सिएटल से फिलेडेल्फिया नहीं आ पाए थे। अभिनव नें सिएटल से सीधे प्रसारण के ज़रिए सभागार में लगे बड़े पर्दे पर अपनी कविताएँ सुनाईं। हिंदी कवि सम्मेलन के मंचों पर यह अनूठा प्रयोग था जिसे श्रोताओं तथा आयोजकों नें पसंद किया। पहली बार हिन्दी कवि सम्मेलन मन्च पर अन्तरजाल के माध्यम से सीधा प्रसारण कराने हेतु विजय ताम्बी का योगदान सरहानीय रहा। कार्यक्रम के मुख्य आयोजक तथा काव्य प्रेमी उमेश ताम्बी नें बीच-बीच में अपनी चुटकियों तथा रचनाओं से श्रोताओं को भाव विभोर किया। प्रख्यात गीतकार श्री सोम ठाकुर नें अंत में मंच संभाला तथा 'ये प्याला प्रेम का प्याला है' तथा 'लौट आओ मांग के सिंदूर की सौगंध तुमको' सहित अपने अनेक गीत पढ़े। अंत में नन्द टोडी एवम सचिव सन्जीव ज़िदल नें काव्यमयी मधुर शाम के लिए सभी कवियों ऒर श्रोताओ को धन्यवाद दिया।

सांस्कृतिक मञ्च द्वारा श्रेष्ठी बिशनस्वरूप व्याख्यानमाला के प्रथम पुष्प पर आयोजित व्याख्यान

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'राजनीतिक जीवन में पारदर्शिता : सिद्धान्त और व्यवहार' विषय पर एक बृहद् आयोजन स्थानीय सूर्या बैंक्वेट हॉल में किया गया। यह आयोजन दो सत्रों में सम्पन्न हुआ। प्रथम सत्र जाने माने व्यक्तित्व विकास के स्तंभकार सी.बी.आई. के पूर्व निदेशक सरदार जोगेन्द्र सिंह ने नगर के स्थानीय एवं आसपास गांवों के २५० विद्यार्थियों को व्यक्तित्व विकास के सूत्र बताए। इस अवसर पर पूर्व निदेशक ने कहा कि हर इंसान की अपनी समस्या होती है यदि समस्या नहीं होगी तो इंसान आगे नहीं बढ़ सकता। उन्होंने जीवन की सफलता के तीन सूत्र कड़ी मेहनत, सामान्य ज्ञान व निश्चित रणनीति बताए। उन्होंने कहा कि यदि आप भविष्य की रणनीति तय करके चलेंगे तो नकारात्मक आदतें आपको प्रभावित नहीं कर पाएगी। उन्होंने अपने चालीस मिनट के उद्बोधन में विद्यार्थियों को अनेक सूत्र बताकर उनको अपने कैरियर के प्रति जागृत किया। इसके पश्चात्‌ विद्यार्थियों ने उनसे संवाद स्थापित करते हुए अनेक प्रश्न पूछे और विद्यार्थियों को संतुष्ट किया। श्री जोगेन्द्र सिंह को अपने मध्य पाकर विद्यार्थी काफी उत्साहित थे। इस अवसर पर जिला पुलिस अधीक्षक सुभाष यादव भी उपस्थित थे।

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द्वितीय सत्र में 'राजनीतिक जीवन में पारदर्शिता : सिद्धान्त और व्यवहार' विषय पर शहर के गणमान्य एवं प्रबुद्ध नागरिकों को संबोधित करते हुए सरदार जोगेन्द्र सिंह ने वर्तमान राजनीति की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि इतिहास पर नजर डाली जाये तो पूरे विश्व में जनभावनाओं में अधिक अंतर नहीं मिलेगा। राजनीति में बढ़ते आपराधिकरण पर तब तक अंकुश नहीं लगाया जा सकता जब तक सभी राजनीतिक दल मिल बैठकर आचार संहिता तय नहीं कर लेते। स्वतंत्रता के साठ वर्ष बाद भी हम अपना कानून नहीं बना पाए। उन्होंने कहा कि १८६१ में बने कानूनों को हम वर्तमान में भी ढोये चले जा रहे हैं। इन्हीं कारणों से न्यायालयों में आज भी लाखों केस लंबित हैं। आम आदमी आज भी न्याय की आस से कोसों दूर है। सरदार जोगेन्द्र सिह ने कहा कि पारदर्शिता का पहला कदम हमें ही उठाना पड़ेगा तभी सफलता की सीढ़ी पर हम आगे बढ़ सकते हैं। उन्होंने कहा कि जो हम चाहते हैं वह पहले स्वयं पर लागू किया जाए। उन्होंने कहा कि हम कितने ही कानून बना लें फिर भी जहां वोट, इंसान और विवेक बिकता हो वहां भ्रष्टाचार को लगाम लगाना कहां तक संभव है। अंतर्राष्ट्रीय संस्था ट्रांसपेरेंट इंटरनेशनल के अनुसार भारत में भ्रष्टाचार कम करने के मामले में ३३ अंक मिले हैं। जबकि गत वर्ष यह आंकड़ा २९ अंक का था। आज हरियाणा प्रदेश में पूरे बजट का ९२ प्रतिशत कर्मचारियों के वेतन, मंत्रियों एवं विधायकों पर और बाकि बचा हुआ ८ प्रतिशत विकास के कार्र्यों पर खर्च होता है। उन्होंने कहा कि आम जनता आज तक एक अधिनियम से अनभिज्ञ है जो १२ जुलाई २००६ को लागू हो चुका है। उन्होंने इस सूचना के अधिकार को लोकतंत्र में सही कदम बताया। ऐसे में देश के बुद्धिजीवियों को व प्रबुद्ध संगठनों के प्रतिनिधियों को आम जनता से अवगत कराना चाहिए। सी.बी.आई. के पूर्व निदेशक ने कहा कि मीडिया द्वारा स्टिंग ऑपरेशनों पर रोक लगाने के लिए सभी राजनीतिक दलों के नेताओं ने ऐडी-चोटी का जोर लगा दिया परन्तु भ्रष्ट आचरण पर अंकुश लगाने व पैसे के लेने-देन के बारे में किसी ने कुछ नहीं कहा। इस अवसर पर कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए हरियाणा साहित्य अकादमी के पूर्व निदेशक डॉ० चन्द्र त्रिखा ने कहा कि पूंजीपतियों ने आयकर से बचने के लिए राजनीतिक दलों का गठन कर लिया लेकिन वे चुनाव नहीं लड़ते। उन्होंने कहा कि वर्तमान में लगभग ३०० से ज्यादा चैनल संचालित हैं लेकिन करोड़ों रूपये की विज्ञापन राशि हासिल करने के चक्कर में मूल मुद्दों से हट जाते हैं। उन्होंने कहा कि न तो कोई राजनीतिक दल पूर्ण है और न ही कोई कंपनी। उन्होंने लोगों को आह्‌वान किया कि वे अपने जीवन मूल्यों को व्यवहार में लाएं इसके बिना राजनीति में पारदर्शिता नहीं आ सकती। कार्यक्रम का शुभांरभ श्रेष्ठी बिशनस्वरूप के सुपुत्र गणेश गुप्ता ने श्रीफल तोड़कर किया। मंच की वरिष्ठ सदस्या सुश्री मंजीत मरवाह ने राष्ट्रीय गीत का गायन कर कार्यक्रम को गरिमा प्रदान की। स्वागताध्यक्ष शिवरतन गुप्ता ने अपने स्वागतीय व्यक्तव्य में उपस्थित जनों का स्वागत करते हुए कहा कि इस प्रकार के व्याख्यान का आयोजन समाज को एक नई दिशा प्रदान करेगा। इस अवसर पर स्थानीय विधायक डॉ० शिव शंकर भारद्वाज ने भी जोगेन्द्र सिंह और डॉ० चंद्र त्रिखा के पधारने पर उनका आभार प्रकट करते हुए अपने विचार प्रकट किए। इस अवसर पर कम्प्यूटर डिजायनर व सांस्कृतिक मंच के अनन्य सहयोगी योगेश शर्मा को भी सरदार जोगेन्द्र सिंह द्वारा स्मृति चिन्ह प्रदान कर सम्मानित किया गया। कार्यक्रम के अंत में सांस्कृतिक मंच के अध्यक्ष विद्यासागर गिरधर ने उपस्थित श्रोताओं का धन्यवाद दिया। इस अवसर पर मंच ने रोटरी क्लब, भारत विकास परिषद, ब्राह्मण विकास परिषद्, दक्ष प्रजापति महासभा, संस्कार भारती, भिवानी क्लब, रामा काम्पलैक्स मार्केट, भिवानी चैम्बर ऑफ कॉमर्स, कहरोड़ पक्का महासभा (दिल्ली), जूनियर चैम्बर्स इंडिया, श्री गुरुद्वारा श्री गुरूसिंह सभा, हरियाणा राजपूत प्रतिनिधि सभा, श्री राम परिवार सेवा समिति, श्री सीतादेवीश्रीनिवासशास्त्रीसेवानिधिः जैसी संस्थाओं को अपने साथ जोड़कर कार्यक्रम को ऊंचाई प्रदान की। इस अवसर पर वरिष्ठ एडवोकेट अविनाश सरदाना, प्रदेश अधिवक्ता परिषद् के संगठन मंत्री राजकुमार मक्कड़, बी.टी.एम. के महाप्रबन्धक राजेन्द्र कौशिक, आर.पी. सिंह आईएएस,, एवं अनेक गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे। कार्यक्रम का कुशल मंच संचालन डॉ० बुद्धदेव आर्य ने किया। कार्यक्रम को सफल बनाने में मंच के महासचिव जगतनारायण, डॉ० वी.बी. दीक्षित, आशीष आर्य, डॉ० संजय अत्री, डॉ० निलांगिनी शर्मा, श्रीमती शशी परमार, गजराज जोगपाल, घनश्याम शर्मा, डॉ. मदन मानव व अन्य सभी कार्यकर्ताओं ने अपना योगदान दिया। इस अवसर पर श्रेष्ठी बिशनस्वरूप की धर्मपत्नी श्रीमती शारदा देवी, पुत्र अनुज गुप्ता, राजरतन गुप्ता व उनके परिवार के सदस्य उपस्थित थे।

प्रोफेसर अशोक चक्रधर का छप्पन छुरोत्सव

नयी दिल्ली-गत आठ फरवरी को हिंदी भवन में प्रख्यात कवि प्रोफेसर अशोक चक्रधर का छप्पनवां जन्मदिन खास अंदाज में मनाया गया। इस अवसर पर वरिष्ठ विधिवेत्ता श्री लक्ष्मीमल्ल सिंघवी, विख्यात सरोद वादिका पद्मभूषण शरनरानी बाकलीवाल, साहित्यकार डॉ. महीप सिंह , डॉ. निर्मला जैन, डॉ. अजित कुमार, डॉ. प्रेम जनमेजय , डॉ. हरीश नवल , पद्मश्री वीरेंद्र प्रभाकर , कवि ओमप्रकाश आदित्य , ओम व्यास , गजलकार लक्ष्मीशंकर वाजपेयी , मंगल नसीम और अशोक चक्रधर के परिजनों समेत कई गणमान्य लोग मौजूद थे। इस अवसर पर महीप सिंह ने कहा कि व्यंग्य की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। अशोक चक्रधर ने इस भूमिका को बखूबी निभाया है। ओमप्रकाश आदित्य ने कहा कि अशोक चक्रधर ने हर काम को अपने अंदाज में किया है। लोग आम तौर पर साठवां जन्मदिवस मनाते हैं या पिचहत्तरवां। अशोक चक्रधर ने छप्पनवां जन्मदिवस मनाने की नयी परंपरा की शुरुआत की है। ओमप्रकाश आदित्य ने कहा कि अशोक चक्रधर ने यश की नयी ऊंचाईयां छुई हैं। लक्ष्मीमल्ल सिंघवी ने कहा कि छप्पन का होने के बाद छप्पन भोगों में कमी कर देनी चाहिए। इस अवसर पर प्रोफेसर अशोक चक्रधर की पत्नी बागेश्री चक्रधर ने रोचक संस्मरण सुनाए। उन्होंने कहा कि ये तो छप्पन छुरे अब हुए हैं , पर मुझे इन्होंने छप्पनछुरी बहुत सालों पहले ही घोषित कर दिया। उन्होंने बताया कि अशोक चक्रधर की एक कविता पोल खोल यंत्र में एक पात्र अशोकजी से कहता है-अकेला ही आया है, अपनी छप्पनछुरी गुलबदन को साथ नहीं लाया है। इस अवसर पर प्रोफेसर अशोक चक्रधर ने कहा कि उन्हें लाखों लोगों का प्यार मिला, इससे वे अभिभूत हैं। उन्होने कहा कि अपनी प्रशंसा सुनना बुरा नहीं लगता, पर उन्हें लगता है कि अभी बहुत कुछ सीखना बाकी है। इस मौक़े पर प्रोफेसर अशोक चक्रधर की बेटी स्नेहा चक्रधर ने भरतनाट्यम नृत्य के अंतर्गत मल्लारी, मीरा भजन (बसो मोरे नैनन में) और वृंदावनी राग में तिल्लाना प्रस्तुत किया। सुश्री नेहा पद्मश्री नृत्यांगना गीता चंद्रन की शिष्या हैं।

भारत एवं अमेरिका के अनेक नगरों के लोगों द्वारा डा बृजेन्द्र अवस्थी को अद्भुत भावपूर्ण श्रद्धान्जलि

२७ जनवरी २००७, संयुक्त राज्य अमेरिका की सिएटल नगरी में डा बृजेन्द्र अवस्थी को श्रद्धान्जलि देते हुए कार्यक्रम "कुछ संस्मरण कुछ स्मृतियाँ - महान राष्ट्रकवि डा बृजेन्द्र अवस्थी" का आयोजन किया गया। इसमें देश विदेश से अनेक लेखकों, कवियों एवं साहित्यकारों नें भाग लिया तथा अपने संस्मरण सुनाए। ज्ञातव्य है कि इस कार्यक्रम का प्रसारण कान्फ्रेंस काल द्वारा किया गया था जिससे तकनीकी शक्ति की सहायता लेकर, भौगोलिक दूरियों को लांघ कर सिएटल के अतिरिक्त न्यूयार्क, वाशिंगटन डी सी, न्यू जर्सी, सेंट फ्रांसिसको, ओहाएयो, डालस, कनेक्टिकट, कर्नाटक, दिल्ली तथा उत्तर प्रदेश रज्यों से लोगों नें डा अवस्थी को अपने अपने श्रद्धा सुमन अर्पित किए। सर्वप्रथम श्री प्रद्युम्न अमलेकर नें माँ सरस्वती तथा डा अवस्थी के सामने दीप प्रज्जवलित किया, तदुपरांत डा अवस्थी की मातृ-वन्दना कविता की रिकार्डिंग बजाकर सभा का प्रारंभ किया गया।

कार्यक्रम के संचालक तथा सुप्रसिद्ध हास्य एवं ओज कवि अभिनव शुक्ल ने बतलाया कि "यदि डा अवस्थी से भेंट ना हुई होती, उनका आशीर्वाद ना प्राप्त हुआ होता तो अभिनव कभी कवि अभिनव न बन पाते। राष्ट्र के प्रति प्रचण्ड आस्था, मानव के प्रति सम्मान तथा कर्म के प्रति प्रतिबद्धता का जो पाठ उन्होंने मुझे कुछ मुलाकातों में पढ़ाया वह मेरी अट्ठाराह वर्षों की स्कूल तथा कालेज की शिक्षा नहीं पढा़ सकी। छन्द की शुद्धता, रस का संचार तथा भावों की शक्ति का वास्तविक ज्ञान मुझे आदरणीय डा अवस्थी से ही प्राप्त हुआ। उन्होनें इन पंक्तियों द्वारा अपने मनोभावों को व्यक्त किया। अपने कद से ना घटें कभी, सच्चाई से ना हटें कभी, आंधी में अविचल टिक जाएँ, हम तुम कुछ अच्छा लिख जाएँ, वह ही सच्चा अर्पण होगा, वह सच्ची श्रद्धान्जलि होगी।" डा अवस्थी के पूज्य गुरुदेव डा कुंवर चन्द्र प्रकाश सिंह जी के पुत्र डा रवि प्रकाश सिंह जी ने अपने बचपन के अनेक संस्मरण सुनाए तथा बतलाया कि "डा अवस्थी दृढ़ इच्छाशक्ति तथा स्वाभिमान के धनी थे। वे बहुत मेहनती थे, वे सुबह से शाम तक बैठ कर लिखते रहते थे। मुझे याद है कि जब वे पी एच डी कर रहे थे तो पाँच सौ पृष्ठ की थीसिस पैंतिस दिनों में पूरी कर ली थी।" सिनसिनाटी से रेनु गुप्ता जी नें अपने संस्मरण सुनाते हुए बतलाया कि किस प्रकार डा अवस्थी नें उन्हें कविता लिखने की प्रेरणा दी। उन्होंने कहा कि " डा अवस्थी सिनसिनाटी को सनसनाती हवा कह कर संबोधित किया करते थे। वे बहुत ही सादा जीवन बिताते थे, मैं उन्हें शत शत नमन करती हूँ।" अमेरिका की राजधानी वाशिंगटन डी सी के सुमधुर गीतकार राकेश खण्डेलवाल नें अपने मनोभावों को निम्न पंक्तियों के माध्यम से व्यक्त किया, "अपनी वीणा में से तराश मां शारद ने जिसके हाथों मे इक लेखनी सजाई थी जिसकी हर कॄति के शब्द शब्द में छुपी हुई सातों समुद्र से ज्यादा ही गहराई थी जिसकी वाणी का ओज प्राण भर देता था मॄत पड़े हुए तन में अमॄत की धारा बन मैं अक्षम हूं कुछ बात कर सकूँ उस कवि की ब्रह्मा ने वर में जिसको दी कविताई थी. " भारत के सुप्रसिद्ध वीर रस के कवि राजेश चेतन नें कारगिल युद्ध के समय का एक मार्मिक संस्मरण सुनाते हुए बतलाया कि "कारगिल युद्ध के समय जन जागृति हेतु "चुनौती है स्वीकार" शीर्षक से एक कवि सम्मेलन का आयोजन हुआ जिसकी समापन की बेला मे अध्यक्षीय काव्य पाठ के लिये डा॰ बृजेन्द्र अवस्थी की आशु काव्य धारा पर जन समुदाय उमड़ रहा था और फिर जैसे ही डा॰ अवस्थी ने शहीदों के सम्मान में कविता सुनाई जनता के साथ साथ देश के गृहमंत्री की आँखों से भी अश्रुधारा बह निकली। श्रोताओं के मध्य बैठे श्री आडवाणी जी ने अपने स्थान पर खडे होकर डा॰ अवस्थी से कहा कि मुझे भी कुछ कहना है और फिर अडवाणी जी ने जो कहा उससे डा॰ बृजेन्द्र अवस्थी की शब्द शक्ति को समझा जा सकता है। गृहमंत्री ने कहा – डा॰ बृजेन्द्र अवस्थी जी मैं आपको आश्वासन देता हूँ कि चाहे जो हो एक इंच भूमि भी दुश्मन को नहीं जायेगी। ऐसे शब्द शिल्पी डा॰ बृजेन्द्र अवस्थी को श्रद्धांजलि।" अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति के पूर्व अध्यक्ष तथा 'विश्वा' के संपादक श्री सुरेन्द्र नाथ तिवारी नें कहा कि वे डा अवस्थी के देहवसान का समाचार सुनकर स्तब्ध रह गए। वे बोले कि "सन १९९४ में जब डा अवस्थी, हुल्लड़ मुरादाबादी, माधवी लता एवं राम रतन शुक्ल जी अमेरिका आए तब न्यू यार्क के जान एफ केनेडी एयरपोर्ट पर मैं उन्हें रिसीव करने पहुँचा। मैं अपने साथ कोक के कुछ कैन्स लेकर गया था ताकि अमेरिका में सबका स्वागत आमेरिकन वाटर से किया जाए। जब मैं एयरपोर्ट पहुँचा तो मैंने देखा कि कि माथे पर तिलक लगाए ऊँचे कद एवं सुदर्शन व्यक्तित्व के धनी डा अवस्थी खड़े मुस्कुरा रहे हैं तथा बाकी सभी लोग यात्रा की थकान से चूर कुर्सियों पर बैठे हैं। मैंने सबको पीने के लिए कोक दिया तो सबने सहर्ष स्वीकार किया पर डा साहब नें कहा कि "मैं कोक नहीं पीता हूँ, घर पर चल कर पानी तो मिलेगा ना।" उस पहली ही भेंट में मैं उनसे बहुत प्रभावित हुआ तथा जब ह्यूस्टन के अधिवेशन में मैंने उनकी कविताएँ सुनीं तब तो मैं रोमांचित हो उठा। डा अवस्थी की स्मृति में लिखी हुई यह पंक्तियाँ भी सुरेंद्रजी नें सुनाईं, तुम भारत गौरव के चारण, बलिदानों के तुमुल-तूर्य तुम, संस्कृति के तुम शंखघोष थे, हिंदी के थे प्रखर सूर्य तुम, अश्रु नहीं डूबते सूर्य को, अर्ग्य सदा अर्पण करते हैं, इसीलिए इस दुख में भी हम, तुमको नित्य नमन करते हैं। भारत के लोकप्रिय गीतकार एवं उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान के कार्यकारी उपाध्यक्ष श्री सोम ठाकुर नें अपन भावनाएँ व्यक्त करते हुए कहा कि "डा अवस्थी से मेरा परिचय सन १९५७ से था, उस समय वे हल्दवानी में पढ़ाते थे। डा अवस्थी के कोई सगा भाई नहीं था तथा मेरा भी कोई सगा भाई नहीं था पर मैंनें उन्हें सदा अपने बड़े भाई के रूप में माना तथा वे भी मुझे अपने छोटा भाई मानते थे। जब डा अवस्थी शादियों में हमारे यहाँ आते थे तो साथ में नोटों कि गड्डियाँ ले आते थे कि कहीं कोई कमी ना पड़ जाए। जहाँ तक कविता के प्रश्न है वे अद्भुत आशुकवि थे तथा जहाँ तक मैं समझता हूँ इस समय जितने महाकाव्य और खण्ड काव्य उन्होंनें लिखे हैं किसी दूसरे कवि नें नहीं लिखे होंगे। मनुष्य के रूप में उनके विराट व्यक्तित्व का कोई मुकाबला नहीं था। यहाँ पर उनके यश से तथा उनकी प्रतिभा से कुछ लोग बड़े इर्ष्यालु थे।" भारतीय विद्याभवन न्यूयार्क के निदेशक एवं प्रबुद्ध विद्वान डा जयरमन की भावनाएँ इन पंक्तियों से पगट हुईं, "कवि श्रेष्ठ डा बृजेन्द्र अवस्थी जी के जाने से हिंदी साहित्य का एक अनूठा हस्ताक्षर हमारे बीच में से निकल गया। सरस्वती के वरद पुत्र आदरणीय डा अवस्थीजी का निधन हिंदी काव्य के लिए एक बड़ा धक्का है।" हिन्दी और संस्कृत के प्रकांड विद्वान तथा डा बृजेन्द्र अवस्थी के अनन्य शिष्य डा वागीश दिनकर जी नें बहुत सुंदर शब्दों में डा अवस्थी के कृतित्व से सभी को परिचित कराया तथा अपनी भावपूर्ण श्रद्धान्जलि अर्पित की। वे बोले, "डा अवस्थी में भक्ति और शौर्य शक्ति का अद्भुत संगम था। उन्होंनें असंभव को संभव कर दिखाया। वे शब्दों के चितेरे थे। वे जो एक बार मन में ठान लेते थे उसे पूर्ण करते थे।" उन्होंने डा अवस्थी के काव्य के अनेक खण्डों के भावपूर्ण उदाहरण भी प्रस्तुत किए तथा यह भी कहा कि, "आज हृदय आसुओं से भरा हुआ है आज हमनें एक राष्ट्र ऋषि को खो दिया है। मेरे हृदय से यही शब्द निकल रहे हैं। राष्ट्र सदन में जिन कविवर की काव्य कला गूँजा करती थी, जिनके ओज भरे चरणों की प्रतिभा नित पूजा करती थी, मुझ जैसे रचनाकारों नें जिनसे सदा प्रेरणा पाई, बूढ़ी पीढ़ी में भी जिनने ओजोमय भर दी तरुणाई, रचना के उत्तुंग शिखर थे श्रेष्ठ आशुकवि पद्वी धारे, स्वीकारें श्री बृजेन्द्र अवस्थी सब प्रणाम नयनाश्रु हमारे। " सिएटल के कवि राहुल उपाध्याय जी नें भी डा अवस्थी को अपने श्रद्धासुमन अर्पित किए तथा सबको धन्यवाद दिया। अंत में सभी नें डा अवस्थी के सम्मान में दो मिनट का मौन रखा तथा उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना की। इसके बाद एक काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया जिसमें अनु अमलेकर, संतोष पाल, राहुल उपाध्याय, विद्या, स्वर्ण कुमार राजू, सलिल दवे, शकुंतला शर्मा तथा अभिनव शुक्ल समेत अनेक कवियों नें अपनी रचनाएँ पढ़ीं। डा अवस्थी दिवंगत नहीं हुए हैं, हम सब के बीच में हैं। वे अपनी अमर रचनाओं के द्वारा सदा अमर रहेंगे। हम अपना प्रणाम उन तक निवेदित कर रहे हैं। हम अपने परिवार की ओर से, सारे भारत की ओर से तथा सारे संसार की ओर से उस राष्ट्र ऋषि को अपनी श्रद्धान्जलि देते हैं।


कमलेश्वर जी नहीं रहे

नई दिल्ली। हिंदी साहित्य के जाने माने साहित्यकार और कथाकार कमलेश्वर जी का शनिवार को दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया। वह 75 वर्ष के थे। कमलेश्वर जी के पारिवारिक सूत्रों ने यह जानकारी दी । कितने पाकिस्तान जैसे मशहूर कृतियों के रचनाकार कमलेश्वर जी का जन्म 6 जनवरी 1931 को उत्तर प्रदेश के मैनपुरी में जिले हुआ था। सन 2003 में साहित्य अकादमी और 2005 में कमलेश्वर जी पद्म भूषण अवार्ड से सम्मानित हुए थे। दूरदर्शन के अतिरिक्त महानिदेशक के साथ-साथ बतौर पत्रकार के रूप में वह वर्ष 1990 से 1992 तक 'दैनिक जागरण' और वर्ष 1996 से 2002 तक 'दैनिक भास्कर' से जुडे़ रहे। कमलेश्वर ने वर्ष 1954 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से हिन्दी में स्नातकोत्तर करने के बाद दूरदर्शन में पटकथा लेखक के तौर पर काम किया। उन्होंने कई कहानी संग्रह, उपन्यास, यात्रा वृतांत तथा संस्मरण लिखे। कमलेश्वर ने टेलीविजन धारावाहिक दर्पण, एक कहानी, चंद्रकांता और युग की पटकथा लिखने के अलावा कई वृत्तचित्रों और कार्यक्रमों का निर्देशन भी किया। उन्होंने सारा आकाश, आंधी, मौसम, रजनीगंधा, छोटी सी बात और मिस्टर नटवरलाल जैसी फिल्मों की पटकथा भी लिखी।

कवि डा. बृजेन्द्र अवस्थी की आवाज खामोश

लखनऊ/बदायूं। राष्ट्रीय भावनाओं के चितेरे कवि डा. बृजेन्द्र अवस्थी की ओज भरी जोशीली आवाज आज हमेशा-हमेशा के लिए खामोश हो गयी। बीती रात उनका यहां पीजीआई में निधन हो गया। वे 77 वर्ष के थे। मुख्यमंत्री के निर्देश पर उनका शव बदायूं पहुंचा। जहां कछलाघाट पर अश्रुपूरित नेत्रों के बीच राजकीय सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार किया गया। उनके पुत्र राजीव अवस्थी ने उन्हें मुखाग्नि दी। पीजीआई में भर्ती डा. अवस्थी रात करीब दो बजे अंतिम सांस ली। उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान के प्रतिष्ठित अवंतीबाई सम्मान से अंलकृत होने के साथ 30 से ज्यादा पुस्तकों व 5 महाकाव्यों के रचयिता डा.अवस्थी की काव्य रचनाओं में तापसी, छत्रपति शिवाजी, वीर बजरंग बली प्रमुख हैं। उनके निधन का समाचार सुन कर मुख्यमंत्री पीजीआई पहुंचे और शोक संतप्त पुत्र-पुत्रियों व दामाद को ढांढस बंधाया। बदायूं में पुलिस गारद ने उन्हें अंतिम सलामी दी। डीएम व एसएसपी समेत अनेक लोगों ने उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित किये।