मलाबार के खेतिहरों को अन्न चाहिए खाने को,कवि: [[नागार्जुन]]डंडपाणि को लठ्ठ चाहिए बिगड़ी बात बनाने को![[Category:कविताएँ]]जंगल में जाकर देखा, नहीं एक भी बांस दिखा!सभी कट गए सुना, देश को पुलिस रही सबक सिखा![[Category:नागार्जुन]]
जन-गण-मन अधिनायक जय हो, प्रजा विचित्र तुम्हारी हैभूख-भूख चिल्लाने वाली अशुभ अमंगलकारी है!बंद सेल, वेगूसराय में नौजवान दो भले मरेजगह नहीं है जेलों में, यमराज तुम्हारी मदद करे। ~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*
ख्याल करो मत जनसाधारण की रोज़ी का, रोटी कामलाबार के खेतिहरों को अन्न चाहिए खाने को,<br>फाड़-फाड़ कर गला, न कब से मना कर रहा अमरीकाडंडपाणि को लठ्ठ चाहिए बिगड़ी बात बनाने को!<br>बापू की प्रतिमा के आगे शंख और घड़ियाल बजेजंगल में जाकर देखा, नहीं एक भी बांस दिखा!<br>भुखमरों के कंकालों पर रंग-बिरंगी साज़ सजेसभी कट गए सुना, देश को पुलिस रही सबक सिखा!<br><br>
ज़मींदार हैजन-गण-मन अधिनायक जय हो, साहुकार प्रजा विचित्र तुम्हारी है, बनिया है, व्योपारी है,<br>अंदरभूख-अंदर विकट कसाई, बाहर खद्दरधारी भूख चिल्लाने वाली अशुभ अमंगलकारी है!<br>सब घुस आए भरा पड़ा हैबंद सेल, भारतमाता का मंदिरवेगूसराय में नौजवान दो भले मरे<br>एक बार जो फिसले अगुआजगह नहीं है जेलों में, फिसल रहे हैं फिर-फिर-फिर!यमराज तुम्हारी मदद करे। <br><br>
छुट्टा घूमैं डाकू गुंडेख्याल करो मत जनसाधारण की रोज़ी का, छुट्टा घूमैं हत्यारेरोटी का,<br>देखोफाड़-फाड़ कर गला, हंटर भांज रहे हैं जस न कब से मना कर रहा अमरीका!<br>बापू की प्रतिमा के तस ज़ालिम सारेआगे शंख और घड़ियाल बजे!<br>जो कोई इनके खिलाफ़ अंगुली उठाएगा बोलेगा,काल कोठरी में ही जाकर फिर वह सत्तू घोलेगाभुखमरों के कंकालों पर रंग-बिरंगी साज़ सजे!<br><br>
माताओं परज़मींदार है, बहिनों परसाहुकार है, घोड़े दौड़ाए जाते हैं!बच्चेबनिया है, बूढ़े-बाप तक न छूटतेव्योपारी है, सताए जाते हैं!<br>मारअंदर-पीट हैअंदर विकट कसाई, लूट-पाट बाहर खद्दरधारी है, तहस-नहस बरबादी !<br>सब घुस आए भरा पड़ा है,भारतमाता का मंदिर<br>ज़ोर-जुलम हैएक बार जो फिसले अगुआ, जेलफिसल रहे हैं फिर-सेल है। वाह खूब आज़ादी हैफिर-फिर! <br><br>
रोज़ी-रोटीछुट्टा घूमैं डाकू गुंडे, हक की बातें जो भी मुंह पर लाएगाछुट्टा घूमैं हत्यारे,<br>कोई भी होदेखो, निश्चय ही वह कम्युनिस्ट कहलाएगाहंटर भांज रहे हैं जस के तस ज़ालिम सारे!<br>नेहरू चाहे जिन्ना, उसको माफ़ करेंगे कभी नहींजो कोई इनके खिलाफ़ अंगुली उठाएगा बोलेगा,<br>जेलों काल कोठरी में ही जगह मिलेगी, जाएगा जाकर फिर वह जहां कहींसत्तू घोलेगा!<br><br>
माताओं पर, बहिनों पर, घोड़े दौड़ाए जाते हैं!<br>बच्चे, बूढ़े-बाप तक न छूटते, सताए जाते हैं!<br>मार-पीट है, लूट-पाट है, तहस-नहस बरबादी है,<br>ज़ोर-जुलम है, जेल-सेल है। वाह खूब आज़ादी है! <br><br> रोज़ी-रोटी, हक की बातें जो भी मुंह पर लाएगा,<br>कोई भी हो, निश्चय ही वह कम्युनिस्ट कहलाएगा!<br>नेहरू चाहे जिन्ना, उसको माफ़ करेंगे कभी नहीं,<br>जेलों में ही जगह मिलेगी, जाएगा वह जहां कहीं!<br><br> सपने में भी सच न बोलना, वनो पकड़े जाओगे, <br>भैया, लखनऊ-दिल्ली पहुंचो, मेवा-मिसरी पाओगे!<br>माल मिलेगा रेत सको यदि गला मजूर-किसान का,<br>हम मर-भुक्खों से क्या होगा, चरण गहो श्रीमानों का!<br><br>