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"अचानक देवत्व / सुधीर सक्सेना" के अवतरणों में अंतर

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अचानक
उसने कहा
उफ्फ, इत्ती गर्मी

कुछ करें


 
कि बारिश हो

अचानक
मैंने मन ही मन टेरा मेघों को
बुदबुदाये मेघों की स्तुति में मंत्र

आकाश से अचानक बरसा पानी
आकाश से बरसा अचानक झमाझम नेह
उसकी दृष्टि में
अचानक यूं
मैं अपने कद से बड़ा हुआ

प्रकृति की औचक लीला से
अचानक एक लौकिक पुरूष ने पाया देवत्व.