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15:21, 28 दिसम्बर 2008 का अवतरण
लेखन वर्ष: २००५
कभी विनय कभी नज़र कभी वफ़ा हूँ मैं
तुझसे हूँ या न हूँ पर खु़द से ख़फ़ा हूँ मैं
चला जो मंज़िल को हाइल हर गाम मिले
रहे-इश्क़ में भी दुनिया से बँधा हूँ मैं
तुम जिस राह चले चलो मैं भी चला चलूँ
जिससे कोई न गुज़रा वह रास्ता हूँ मैं
मेरा कोई खु़दा नहीं मेरे खु़दा बन जाओ
सच मानो तुम्हें देखकर बदल गया हूँ मैं
मेहरो-मोहब्बत का नामो-निशाँ तक नहीं
जाने-मन तेरे लिए बहुत तरसा हूँ मैं
मसाइले-जहान से यह दिल नाचार है
खा़मोश क्यों रहूँ’ क्या कोई पारसा हूँ मैं
हाइल: बाधक । मसाइले-जहान: दुनिया की मुश्किलें । पारसा: महात्मा