"दुनिया में कौन-कौन न यक बार हो गया / ख़्वाजा मीर दर्द" के अवतरणों में अंतर
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00:40, 30 दिसम्बर 2008 का अवतरण
दुनिया में कौन कौन न ऐक बार हो गया|
पर मुँह फिर इस तरफ़ न किया उसने जो गया|
फिरती है मेरी खाक सबा दर-ब-दर लिए,
अए चश्म-ए-अश्कबार ये क्या तुझ को हो गया|
आगाह इस जहाँ में नहीं ग़ैर बे ख़ुदा,
जागा वही इधर से मूंद आँख सो गया|
तूफ़ान-ए-नोआ ने तो डुबाई ज़मीन फ़क़त,
मैं नन्ग-ए-खल्क़ सारी ख़ुदाई डुबो गया|
बरहम कहीं न हो गुल-ओ-बुलबुल की आशती,
डरता हूं आज बाग़ में वो तुन्द खू गया|
वाइज़ किसे डरावे है योम- उल्हिसाब से,
गिरयां मेरा तो नामा-ए-आमल धो गया|
फूलेंगे इस ज़बां में भी गुल्ज़र-ए-मारफ़त,
यां मैं ज़मीन-ए-शेर में ये तुख्म बो गया|
आया न ऐतदाल पर हरिगज़ मज़ाज-ए-दहर,
मैं गर्चे गर्म- ओ- सर्द-ए-ज़माना समो गया|
अए ‘दर्द’ जिस की आंख खुली इस जहाँ में,
शबनम की तरह जान को अपनी वो रो गया|