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"पेड़ की बात / प्रयाग शुक्ल" के अवतरणों में अंतर
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हम सुनते लेटे रहते हैं आवाज़ें रविवार की । | हम सुनते लेटे रहते हैं आवाज़ें रविवार की । | ||
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हवा आती है, फड़फड़ाती कमरे में कागज़ | हवा आती है, फड़फड़ाती कमरे में कागज़ | ||
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उसके साथ की कच्ची सड़क से जा ही | उसके साथ की कच्ची सड़क से जा ही | ||
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बेटी उछलती 'हम देखने जा रहे हैं बंदर | बेटी उछलती 'हम देखने जा रहे हैं बंदर | ||
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हटा कर हाथ आँखों के ऊपर से | हटा कर हाथ आँखों के ऊपर से | ||
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हम मुस्कराते हैं आदतन, | हम मुस्कराते हैं आदतन, | ||
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होठों तक आकर रह जाती है पेड़ की बात । | होठों तक आकर रह जाती है पेड़ की बात । | ||
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11:31, 1 जनवरी 2009 के समय का अवतरण
आँखें बंद रहती हैं उनके ऊपर एक हाथ रखे
हम सुनते लेटे रहते हैं आवाज़ें रविवार की ।
हवा आती है, फड़फड़ाती कमरे में कागज़
एक अंधेरे के बीच में किस तरह उग आता
है इमली का पेड़ ।
उसके साथ की कच्ची सड़क से जा ही
रहे होते हैं हम कि आती है
बेटी उछलती 'हम देखने जा रहे हैं बंदर
का नाच'
हटा कर हाथ आँखों के ऊपर से
हम मुस्कराते हैं आदतन,
होठों तक आकर रह जाती है पेड़ की बात ।