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"धूल / प्रयाग शुक्ल" के अवतरणों में अंतर

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धूल में पड़ी रहती हैं बहुत सी चीज़ें ।
 
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तिनके । टुकड़े काँच के । उड़कर कहीं से
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चले आये मकड़ी के जाले के तार ।
 
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पंख । चिट्ठियों के अक्षर ।
 
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नन्हीं-नन्हीं बूंदें
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उठती है धूल में पड़ी विस्मृत चीज़ों
 
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से एक महक ।
 
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18:16, 1 जनवरी 2009 के समय का अवतरण

धूल में पड़ी रहती हैं बहुत सी चीज़ें ।
तिनके । टुकड़े काँच के । उड़कर कहीं से
चले आये मकड़ी के जाले के तार ।
पंख । चिट्ठियों के अक्षर ।
चमकती है धूल ।

फिर गिरती हैं
नन्हीं-नन्हीं बूंदें
उठती है धूल में पड़ी विस्मृत चीज़ों
से एक महक ।