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"घर-गाँव की लड़कियों की तरह / नवल शुक्ल" के अवतरणों में अंतर

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शहर के इस मुहल्ले में
 
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पहली बार आया
 
पहली बार आया
 
 
और देखा लड़की को।
 
और देखा लड़की को।
 
  
 
उसकी आँखों में, चेहरे पर
 
उसकी आँखों में, चेहरे पर
 
 
नहीं देखा अपरिचय
 
नहीं देखा अपरिचय
 
 
तो बार-बार देखा
 
तो बार-बार देखा
 
 
समय से हटकर
 
समय से हटकर
 
 
गली के मोड़ से
 
गली के मोड़ से
 
 
खिड़कियों से
 
खिड़कियों से
 
 
आँखों की कोर से।
 
आँखों की कोर से।
 
  
 
वह सुबह उठती है
 
वह सुबह उठती है
 
 
साफ़ करती है घर, बर्तन, कपड़े
 
साफ़ करती है घर, बर्तन, कपड़े
 
 
सड़कों, चौराहों को पार कर
 
सड़कों, चौराहों को पार कर
 
 
प्रशिक्षण के लिए जाती है कहीं
 
प्रशिक्षण के लिए जाती है कहीं
 
 
सुबह-शाम गलियों में घूमती है
 
सुबह-शाम गलियों में घूमती है
 
 
ठहर-ठहर कर
 
ठहर-ठहर कर
 
 
खिड़कियों-दरवाज़ों पर खड़ी रहती है
 
खिड़कियों-दरवाज़ों पर खड़ी रहती है
 
 
मुझे देख मुस्कुराती है
 
मुझे देख मुस्कुराती है
 
 
घर-गाँव की लड़कियों की तरह।
 
घर-गाँव की लड़कियों की तरह।
  
 
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15:50, 3 जनवरी 2009 के समय का अवतरण


शहर के इस मुहल्ले में
पहली बार आया
और देखा लड़की को।

उसकी आँखों में, चेहरे पर
नहीं देखा अपरिचय
तो बार-बार देखा
समय से हटकर
गली के मोड़ से
खिड़कियों से
आँखों की कोर से।

वह सुबह उठती है
साफ़ करती है घर, बर्तन, कपड़े
सड़कों, चौराहों को पार कर
प्रशिक्षण के लिए जाती है कहीं
सुबह-शाम गलियों में घूमती है
ठहर-ठहर कर
खिड़कियों-दरवाज़ों पर खड़ी रहती है
मुझे देख मुस्कुराती है
घर-गाँव की लड़कियों की तरह।