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माँ!
 
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तुम्हारे सज़ल आँचल ने
 
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धूप से हमको बचाया है।
 
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चाँदनी का घर बनाया है।
 
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तुम अमृत की धार प्यासों को
 
तुम अमृत की धार प्यासों को
 
 
ज्योति-रेखा सूरदासों को
 
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संधि को आशीष की कविता
 
संधि को आशीष की कविता
 
 
अस्मिता, मन के समासों को
 
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माँ!
 
माँ!
 
 
तुम्हारे तरल दृगजल ने
 
तुम्हारे तरल दृगजल ने
 
 
तीर्थ-जल का मान पाया है
 
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सो गए मन को जगाया है।
 
सो गए मन को जगाया है।
 
  
 
तुम थके मन को अथक लोरी
 
तुम थके मन को अथक लोरी
 
 
प्यार से मनुहार की चोरी
 
प्यार से मनुहार की चोरी
 
 
नित्य ढुलकाती रहीं हम पर
 
नित्य ढुलकाती रहीं हम पर
 
 
दूध की दो गागरें कोरी
 
दूध की दो गागरें कोरी
 
  
 
माँ!
 
माँ!
 
 
तुम्हारे प्रीति के पल ने
 
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आँसुओं को भी हँसाया है
 
आँसुओं को भी हँसाया है
 
 
बोलना मन को सिखाया है।
 
बोलना मन को सिखाया है।
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23:02, 3 जनवरी 2009 का अवतरण

माँ!
तुम्हारे सज़ल आँचल ने
धूप से हमको बचाया है।
चाँदनी का घर बनाया है।

तुम अमृत की धार प्यासों को
ज्योति-रेखा सूरदासों को
संधि को आशीष की कविता
अस्मिता, मन के समासों को

माँ!
तुम्हारे तरल दृगजल ने
तीर्थ-जल का मान पाया है
सो गए मन को जगाया है।

तुम थके मन को अथक लोरी
प्यार से मनुहार की चोरी
नित्य ढुलकाती रहीं हम पर
दूध की दो गागरें कोरी

माँ!
तुम्हारे प्रीति के पल ने
आँसुओं को भी हँसाया है
बोलना मन को सिखाया है।