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"मेरे बच्चे / शरद बिलौरे" के अवतरणों में अंतर

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कल मैं उन्हे विदा दूंगा
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उनकी स्कूल की वर्दी में
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उन्हे सड़क पार करा कर लौट आऊंगा।
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कल वे गुजरेंगे मेरे घर के ऊपर से
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नटखट शैतानियाँ करते।
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मेरे बच्चे आसमान तक जाना चाहेंगे
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तारे तोड़-तोड़ कर
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मेरे घर की छत पर
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फेंक देना चाहेंगे।
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आसमान के नीलेपन को
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अपनी पाँखों में भर लेना चाहेंगे।
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मेरे बच्चे आसमान पर से
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मुझे अंगूठा दिखाएंगे।
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और मैं कितना ख़ुश हो जाऊंगा।
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कल जब वे बड़े हो जाएंगे
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आसमानी वस्त्रों में उतरेंगे
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मेरे रोशनदान में से हाथ हिलाएंगे।
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उनके पास बादलों के गुदगुदे अनुभव,
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परियों के किस्से,
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राजकुमारों के सपने होंगे।
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वे सुगंध की दिशा में सोचेंगे
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और हवाओं पर सवार होकर आएंगे।
  
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वे अपने बचपन का इतना सारा सामान
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मेरे घर में सजाना चाहेंगे।
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और खिंची दीवारों को देखते ही
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उदास हो जाएंगे।
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वे हवाओं पर सवार होंगे
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और उनका सिर चौखट से टकरा जाएगा।
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तब अचानक
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बहुत ख़ामोश हो जाएंगे मेरे बच्चे।
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मैं न जाने उन्हे किस बात पर झिड़क दूंगा
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और उनकी बड़ी-बड़ी आँखें
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गूंगी हो जाएंगी।
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उन्हे आसमान याद आएगा
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और अपने सपने अपंग होते हुए दिखेंगे।
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धीरे-धीरे
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मुझ जैसे ही हो जाएंगे बच्चे।
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मुझ जैसे ही
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दुखी सुखी।
  
 
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इतने दिनों में
कल मैं उन्हे विदा दूँगा<br>
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वे कितने पिछड़ चुके होंगे
उनकी स्कूल की वर्दी में<br>
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कितने टूट चुके होंगे
उन्हे सड़क पार करा कर लौट आऊँगा।<br>
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कि जब कभी उन्हे लू या जाड़ा लगेगा
कल वे गुजरेंगे मेरे घर के ऊपर से<br>
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कि जब कभी उनका जूता फट जाएगा
नटखट शैतानियाँ करते।<br>
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कि जब कभी
मेरे बच्चे आसमान तक जाना चाहेंगे<br>
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वे अपने मकान की छत पर से
तारे तोड़-तोड़ कर<br>
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नटखट बच्चों को गुज़रते देखेंगे
मेरे घर की छत पर<br>
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वे आसमान के प्यार में भींग उठेंगे
फेंक देना चाहेंगे।<br>
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और मुझे दोष देंगे
आसमान के नीलेपन को<br>
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मेरे बच्चे  
अपनी पाँखों में भर लेना चाहेंगे।<br>
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मेरे प्रति घृणा से भर उठेंगे।
मेरे बच्चे आसमान पर से<br>
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और मैं कितना खुश हो जाऊँगा।<br>
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कल जब वे बड़े हो जाएँगे<br>
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मेरे रोशनदान में से हाथ हिलाएँगे।<br>
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उनके पास बादलों के गुदगुदे अनुभव,<br>
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राजकुमारों के सपने होंगे।<br>
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वे सुगंध की दिशा में सोचेंगे<br>
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और हवाओं पर सवार होकर आएँगे।<br><br>
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और खिंची दीवारों को देखते ही<br>
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वे हवाओं पर सवार होंगे<br>
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और उनका सिर चौखट से टकरा जाएगा।<br>
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तब अचानक<br>
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बहुत खामोश हो जाएँगे मेरे बच्चे।<br>
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मैं न जाने उन्हे किस बात पर झिड़क दूँगा<br>
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और उनकी बड़ी बड़ी आँखें<br>
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गूँगी हो जाएँगी।<br>
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उन्हे आसमान याद आएगा<br>
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और अपने सपने अपंग होते हुए दिखेंगे।<br>
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मुझ जैसे ही हो जाएँगे बच्चे।<br>
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मुझ जैसे ही<br>
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दुखी सुखी।<br>
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इतने दिनों में<br>
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नटखट बच्चों को गुजरते देखेंगे<br>
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वे आसमान के प्यार में भींग उठेंगे<br>
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और मुझे दोष देंगे<br>
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मेरे बच्चे <br>
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मेरे प्रति घृणा से भर उठेंगे।<br>
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03:17, 4 जनवरी 2009 के समय का अवतरण

कल मैं उन्हे विदा दूंगा
उनकी स्कूल की वर्दी में
उन्हे सड़क पार करा कर लौट आऊंगा।
कल वे गुजरेंगे मेरे घर के ऊपर से
नटखट शैतानियाँ करते।
मेरे बच्चे आसमान तक जाना चाहेंगे
तारे तोड़-तोड़ कर
मेरे घर की छत पर
फेंक देना चाहेंगे।
आसमान के नीलेपन को
अपनी पाँखों में भर लेना चाहेंगे।
मेरे बच्चे आसमान पर से
मुझे अंगूठा दिखाएंगे।
और मैं कितना ख़ुश हो जाऊंगा।
कल जब वे बड़े हो जाएंगे
आसमानी वस्त्रों में उतरेंगे
मेरे रोशनदान में से हाथ हिलाएंगे।
उनके पास बादलों के गुदगुदे अनुभव,
परियों के किस्से,
राजकुमारों के सपने होंगे।
वे सुगंध की दिशा में सोचेंगे
और हवाओं पर सवार होकर आएंगे।

वे अपने बचपन का इतना सारा सामान
मेरे घर में सजाना चाहेंगे।
और खिंची दीवारों को देखते ही
उदास हो जाएंगे।
वे हवाओं पर सवार होंगे
और उनका सिर चौखट से टकरा जाएगा।
तब अचानक
बहुत ख़ामोश हो जाएंगे मेरे बच्चे।
मैं न जाने उन्हे किस बात पर झिड़क दूंगा
और उनकी बड़ी-बड़ी आँखें
गूंगी हो जाएंगी।
उन्हे आसमान याद आएगा
और अपने सपने अपंग होते हुए दिखेंगे।
धीरे-धीरे
मुझ जैसे ही हो जाएंगे बच्चे।
मुझ जैसे ही
दुखी सुखी।

इतने दिनों में
वे कितने पिछड़ चुके होंगे
कितने टूट चुके होंगे
कि जब कभी उन्हे लू या जाड़ा लगेगा
कि जब कभी उनका जूता फट जाएगा
कि जब कभी
वे अपने मकान की छत पर से
नटखट बच्चों को गुज़रते देखेंगे
वे आसमान के प्यार में भींग उठेंगे
और मुझे दोष देंगे
मेरे बच्चे
मेरे प्रति घृणा से भर उठेंगे।