भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
[[Category:कविताएँ]]
[[Category:कुँअर बेचैन]]
लौट आ रे !
ओ प्रवासी जल !
फिर से लौट आ !
रह गया है प्रण मन में
रेत, केवल रेत जलता
खो गई है हर लहर की
मौन लहराती तरलता
कह रहा है चीख कर मरुथल
फिर से लौट आ रे!
लौट आ रे !
ओ प्रवासी जल !
फिर से लौट आ !
सिंधु सूखे, नदी सूखी
झील सूखी, ताल सूखे
नाव, ये पतवार सूखे
पाल सूखे, जाल सूखे
फिर से लौट आ रे !
लौट आ रे !
ओ प्रवासी जल !
फिर से लौट आ !