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"करो भोर का अभिनन्दन / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर
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− | कलरव गूँजा तरुओं पर | + | करो भोर का अभिनन्दन !<br> |
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− | जल में ,थल में, रंग भरे | + | काँटों का वन पार किया<br> |
− | सिन्दूरी हो गया गगन । | + | |
− | दमक उठा हर घर-आँगन । | + | बस आगे है चन्दन-वन ।<br> |
+ | बीती रात ,अँधेरा बीता<br> | ||
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+ | करते हैं उजियारे वन्दन ।<br> | ||
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+ | सिन्दूरी हो गया गगन ।<br> | ||
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+ | दमक उठा हर घर-आँगन ।<br> |
20:17, 5 जनवरी 2009 का अवतरण
{{KKRachna |रचनाकार= रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
“करो भोर का अभिनन्दन
रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
मत उदास हो मेरे मन
करो भोर का अभिनन्दन !
काँटों का वन पार किया
बस आगे है चन्दन-वन ।
बीती रात ,अँधेरा बीता
करते हैं उजियारे वन्दन ।
सुखमय हो सबका जीवन !
आँसू पोंछो, हँस देना
धूल झाड़कर चल देना ।
उठते –गिरते हर पथिक को
कदम-कदम पर बल देना ।
मुस्काएगा यह जीवन ।
कलरव गूँजा तरुओं पर
नभ से उतरी भोर-किरन ।
जल में ,थल में, रंग भरे
सिन्दूरी हो गया गगन ।
दमक उठा हर घर-आँगन ।