भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"करो भोर का अभिनन्दन / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
+ | '''करो भोर का अभिनन्दन'''<br> | ||
− | ''' | + | '''रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’'''<br> |
− | + | ||
− | रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’<br> | + | |
मत उदास हो मेरे मन <br> | मत उदास हो मेरे मन <br> |
20:18, 5 जनवरी 2009 का अवतरण
करो भोर का अभिनन्दन
रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
मत उदास हो मेरे मन
करो भोर का अभिनन्दन !
काँटों का वन पार किया
बस आगे है चन्दन-वन ।
बीती रात ,अँधेरा बीता
करते हैं उजियारे वन्दन ।
सुखमय हो सबका जीवन !
आँसू पोंछो, हँस देना
धूल झाड़कर चल देना ।
उठते –गिरते हर पथिक को
कदम-कदम पर बल देना ।
मुस्काएगा यह जीवन ।
कलरव गूँजा तरुओं पर
नभ से उतरी भोर-किरन ।
जल में ,थल में, रंग भरे
सिन्दूरी हो गया गगन ।
दमक उठा हर घर-आँगन ।