भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"न मंदिर में सनम होते / नौशाद लखनवी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नौशाद लखनवी }} न मंदिर में सनम होते, न मस्जिद में खुदा ह...)
 
पंक्ति 3: पंक्ति 3:
 
|रचनाकार=नौशाद लखनवी
 
|रचनाकार=नौशाद लखनवी
 
}}
 
}}
 
+
<poem>
 
न मंदिर में सनम होते, न मस्जिद में खुदा होता
 
न मंदिर में सनम होते, न मस्जिद में खुदा होता
 
 
हमीं से यह तमाशा है, न हम होते तो क्या होता
 
हमीं से यह तमाशा है, न हम होते तो क्या होता
  
 
+
ऐसी मंजिलें होतीं, न ऐसा रास्ता होता
ऎसी मंजिलें होतीं, न ऐसा रास्ता होता
+
संभल कर हम ज़रा चलते तो आलम ज़ेरे-पा होता  
 
+
ज़ेरे-पा: under feet
संभल कर हम ज़रा चलते तो आलम ज़ेर-ए-पा होता
+
 
+
(zer-e-paa: under feet)
+
 
+
  
 
घटा छाती, बहार आती, तुम्हारा तज़किरा होता
 
घटा छाती, बहार आती, तुम्हारा तज़किरा होता
 +
फिर उसके बाद गुल खिलते कि ज़ख़्मे-दिल हरा होता
  
फिर उसके बाद गुल खिलते कि ज़ख्म-ए-दिल हरा होता
+
बुलाकर तुमने महफ़िल में हमको गैरों से उठवाया
 
+
 
+
बुला कर तुमने महफ़िल में हमको गैरों से उठवाया
+
 
+
 
हमीं खुद उठ गए होते, इशारा कर दिया होता
 
हमीं खुद उठ गए होते, इशारा कर दिया होता
  
 
+
तेरे अहबाब तुझसे मिल के भी मायूस लॉट गये
तेरे अहबाब तुझसे मिल के भी मायूस लॉट गए
+
तुझे 'नौशाद' कैसी चुप लगी थी, कुछ कहा होता
 
+
</poem>
तुझे नौशाद कैसी चुप लगी थी कुछ कहा होता
+

00:31, 6 जनवरी 2009 का अवतरण

न मंदिर में सनम होते, न मस्जिद में खुदा होता
हमीं से यह तमाशा है, न हम होते तो क्या होता

न ऐसी मंजिलें होतीं, न ऐसा रास्ता होता
संभल कर हम ज़रा चलते तो आलम ज़ेरे-पा होता
ज़ेरे-पा: under feet

घटा छाती, बहार आती, तुम्हारा तज़किरा होता
फिर उसके बाद गुल खिलते कि ज़ख़्मे-दिल हरा होता

बुलाकर तुमने महफ़िल में हमको गैरों से उठवाया
हमीं खुद उठ गए होते, इशारा कर दिया होता

तेरे अहबाब तुझसे मिल के भी मायूस लॉट गये
तुझे 'नौशाद' कैसी चुप लगी थी, कुछ कहा होता