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"जब प्रश्न-चिह्न बौखला उठे / गजानन माधव मुक्तिबोध" के अवतरणों में अंतर

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(नया पृष्ठ: जीवन के प्रखर समर्थक-से जब प्रश्न चिन्ह बौखला उठे थे दुर्निवार, ...)
 
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             यों की 'पालागी' —
 
             यों की 'पालागी' —
 
कण्ठ में ज्ञान संवेदन के,
 
कण्ठ में ज्ञान संवेदन के,
 +
 
आंसू का कांटा फंसा और
 
आंसू का कांटा फंसा और
 +
 
मन में यह आसमान छाया,
 
मन में यह आसमान छाया,
 +
 
जिस में जन-जन के घर-आंगन
 
जिस में जन-जन के घर-आंगन
 
     का सूरज भासमान छाया
 
     का सूरज भासमान छाया
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     चिड़िया डोली,
 
     चिड़िया डोली,
 
फर-फर आंचल तुमको निहार
 
फर-फर आंचल तुमको निहार
 +
 
मानो कि मातृ-भाषा बोली —
 
मानो कि मातृ-भाषा बोली —
 +
 
जिनसे गूंजा घर-आंगन
 
जिनसे गूंजा घर-आंगन
 +
 
खनके मानों बहुओं की चूड़ी के कंगन ।
 
खनके मानों बहुओं की चूड़ी के कंगन ।
 +
 
मैं जिस दुनिया में आज बसा,
 
मैं जिस दुनिया में आज बसा,
 +
 
जन-संघर्षों की राहों पर
 
जन-संघर्षों की राहों पर
 
     ज्वालाओं से
 
     ज्वालाओं से
 
माँओं का बहनों का सुहाग सिन्दूर हँसा बरसा-बरसा ।
 
माँओं का बहनों का सुहाग सिन्दूर हँसा बरसा-बरसा ।
 +
 
इन भारतीय गृहिणी-निर्झरिणी-नदियों के
 
इन भारतीय गृहिणी-निर्झरिणी-नदियों के
 
     घर-घर के भूखे प्राण हँसे ।
 
     घर-घर के भूखे प्राण हँसे ।
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     लेकिन यह मेरे छन्द
 
     लेकिन यह मेरे छन्द
 
बावरे बुरी तरह यों अकुलाकर,
 
बावरे बुरी तरह यों अकुलाकर,
 +
 
बूढ़े पितृश्री के चरणों में लोट-पोटकर,
 
बूढ़े पितृश्री के चरणों में लोट-पोटकर,
 
     ऐसी पावन धूल हुए —
 
     ऐसी पावन धूल हुए —
 
बहना के हिय की तुलसी पर
 
बहना के हिय की तुलसी पर
 +
 
घन छाया कर
 
घन छाया कर
 
     मंजरी हुए,
 
     मंजरी हुए,
 
भाई के दिल में फूल हुए ।
 
भाई के दिल में फूल हुए ।
 +
 
अपने समुंदरों के विभोर
 
अपने समुंदरों के विभोर
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मस्ती के शब्दों में गम्भीर
 
मस्ती के शब्दों में गम्भीर
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तब मेरा हिन्दुस्तान हँसा ।
 
तब मेरा हिन्दुस्तान हँसा ।
 +
 
जन-संघर्षों की राहों पर
 
जन-संघर्षों की राहों पर
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आंगन के नीमों ने मंजरियाँ बरसायीं ।
 
आंगन के नीमों ने मंजरियाँ बरसायीं ।
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अम्बर में चमक रही बहन-बिजली ने भी
 
अम्बर में चमक रही बहन-बिजली ने भी
 
     थी ताकत हिय में सरसायी ।
 
     थी ताकत हिय में सरसायी ।
 
घर-घर के सजल अंधेरे से
 
घर-घर के सजल अंधेरे से
 +
 
मेघों ने कुछ उपदेश लिए,
 
मेघों ने कुछ उपदेश लिए,
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जीवन की नसीहतें पायीं ।
 
जीवन की नसीहतें पायीं ।
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जन-संघर्षों की राहों पर
 
जन-संघर्षों की राहों पर
 
     गम्भीर घटाओं ने
 
     गम्भीर घटाओं ने
 
         युग जीवन सरसाया ।
 
         युग जीवन सरसाया ।
 
आंसू से भरा हुआ चुम्बन मुझपर बरसाया ।
 
आंसू से भरा हुआ चुम्बन मुझपर बरसाया ।
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ज़िंदगी नशा बन घुमड़ी है
 
ज़िंदगी नशा बन घुमड़ी है
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ज़िंगगी नशे सी छायी है
 
ज़िंगगी नशे सी छायी है
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नव-वधुका बन
 
नव-वधुका बन
 
     यह बुद्धिमती
 
     यह बुद्धिमती
 
ऐसी तेरे घर आयी है ।
 
ऐसी तेरे घर आयी है ।
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रे, स्वयं अगरबत्ती से जल,
 
रे, स्वयं अगरबत्ती से जल,
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         जिन लोगों ने
 
         जिन लोगों ने
 
अपने अंतर में घिरे हुए
 
अपने अंतर में घिरे हुए
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गहरी ममता के अगुरू-धूम
 
गहरी ममता के अगुरू-धूम
 
         के बादल सी
 
         के बादल सी
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     वह हुलसी, वह अकुलायी
 
     वह हुलसी, वह अकुलायी
 
इस हृदय-दान की वेला में मेरे भीतर ।
 
इस हृदय-दान की वेला में मेरे भीतर ।
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जिनके स्वभाव के गंगाजल ने,
 
जिनके स्वभाव के गंगाजल ने,
 
     युगों-युगों को तारा है,
 
     युगों-युगों को तारा है,
 
जिनके कारण यह हिन्दुस्तान हमारा है,
 
जिनके कारण यह हिन्दुस्तान हमारा है,
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कल्याण व्यथाओं मे घुलकर
 
कल्याण व्यथाओं मे घुलकर
 +
 
जिन लाखों हाथों-पैरों ने यह दुनिया
 
जिन लाखों हाथों-पैरों ने यह दुनिया
 
         पार लगायी है,
 
         पार लगायी है,
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             सौ-सौ जीवन,
 
             सौ-सौ जीवन,
 
उन जन-जन का दुर्दान्त रुधिर
 
उन जन-जन का दुर्दान्त रुधिर
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मेरे भीतर, मेरे भीतर ।
 
मेरे भीतर, मेरे भीतर ।
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उनकी बाहों को अपने उर पर
 
उनकी बाहों को अपने उर पर
 
     धारण कर वरमाला-सी
 
     धारण कर वरमाला-सी
 
उनकी हिम्मत, उनका धीरज,
 
उनकी हिम्मत, उनका धीरज,
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उनकी ताकत
 
उनकी ताकत
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पायी मैंने अपने भीतर ।
 
पायी मैंने अपने भीतर ।
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कल्याणमयी करुणाओं के
 
कल्याणमयी करुणाओं के
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वे सौ-सौ जीवन-चित्र लिखे
 
वे सौ-सौ जीवन-चित्र लिखे
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मेरे हिय में जाने किसने, जाने कैस
 
मेरे हिय में जाने किसने, जाने कैस
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उनकी उस सहजोत्सर्गमयी
 
उनकी उस सहजोत्सर्गमयी
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आत्मा के कोमल पंख फँसे
 
आत्मा के कोमल पंख फँसे
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मेरे हिय में,
 
मेरे हिय में,
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मँडराता है मेरा जी चारों ओर सदा
 
मँडराता है मेरा जी चारों ओर सदा
 
         उनके ही तो ।
 
         उनके ही तो ।
 
यादें उनकी
 
यादें उनकी
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कैसी-कैसी बातें लेकर,
 
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जीवन के जाने कितने ही रुधिराक्त प्राण
 
जीवन के जाने कितने ही रुधिराक्त प्राण
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दुःखान्त साँझ
 
दुःखान्त साँझ
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दुर्दान्त भव्य रातें लेकर
 
दुर्दान्त भव्य रातें लेकर
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यादें उनकी
 
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मेरे मन में
 
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ऐसी घुमड़ी
 
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ऐसी घुमड़ी
 
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मानो कि गीत के
 
मानो कि गीत के
 
     किसी विलम्बित सुर में —
 
     किसी विलम्बित सुर में —
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     बेर-अबेर खिली,
 
     बेर-अबेर खिली,
 
क्रान्ति की मुस्कराती आँखों —
 
क्रान्ति की मुस्कराती आँखों —
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पर, लहराती अलकों में बिंध,
 
पर, लहराती अलकों में बिंध,
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आंगन की लाल कन्हेर खिली ।
 
आंगन की लाल कन्हेर खिली ।
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भूखे चूल्हे के भोले अंगारों में रम,
 
भूखे चूल्हे के भोले अंगारों में रम,
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जनपथ पर मरे शहीदों के
 
जनपथ पर मरे शहीदों के
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अन्तिम शब्दों बिलम-बिलम,
 
अन्तिम शब्दों बिलम-बिलम,
 +
 
लेखक की दुर्दम कलम चली ।
 
लेखक की दुर्दम कलम चली ।
 +
 
दुबली चम्पा
 
दुबली चम्पा
 
     जन संघर्षों में
 
     जन संघर्षों में
 
         गदरायी,
 
         गदरायी,
 
खण्डर-मकान में फूल खिले, तल में बिखरे
 
खण्डर-मकान में फूल खिले, तल में बिखरे
 +
 
जीवन संघर्षों में घुमड़े
 
जीवन संघर्षों में घुमड़े
 
         उमड़े चक्की के गीतों में
 
         उमड़े चक्की के गीतों में
 
कल्याणमयी करुणाओं के
 
कल्याणमयी करुणाओं के
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हिन्दुस्तानी सपने निखरे —
 
हिन्दुस्तानी सपने निखरे —
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जिस सुर को सुन
 
जिस सुर को सुन
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कूएँ की सजल मुँडेर हिली
 
कूएँ की सजल मुँडेर हिली
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प्रातः कालीन हवाओं में ।
 
प्रातः कालीन हवाओं में ।
 
         सूरज का लाल-लाल चेहरा
 
         सूरज का लाल-लाल चेहरा
 
डोला धरती की बाहों में,
 
डोला धरती की बाहों में,
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आसक्ति भरा रवि का मुख वह ।
 
आसक्ति भरा रवि का मुख वह ।
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उसकी मेधाओं की ज्वालाएँ ऐसी फैलीं —
 
उसकी मेधाओं की ज्वालाएँ ऐसी फैलीं —
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उस घास-भरे जंगल-पहाड़-बंजर में
 
उस घास-भरे जंगल-पहाड़-बंजर में
 
     यों दावाग्नि लगी
 
     यों दावाग्नि लगी
 
मानो बूढ़ी दुनिया के सिर पर आग लगी
 
मानो बूढ़ी दुनिया के सिर पर आग लगी
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सिर जलता है, कन्धे जलते ।
 
सिर जलता है, कन्धे जलते ।
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यह अग्नि-विश्वजित् फैली है जिन लोगों की
 
यह अग्नि-विश्वजित् फैली है जिन लोगों की
 
                 रे नौजवान,
 
                 रे नौजवान,
 
इतिहास बनानेवाला सिर करके ऊंचा
 
इतिहास बनानेवाला सिर करके ऊंचा
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भौहों पर मेघों-जैसा
 
भौहों पर मेघों-जैसा
 
     विद्युत भार
 
     विद्युत भार
 
     विचारों का लेकर
 
     विचारों का लेकर
 
पृथ्वी की गति के साथ-साथ घूमते हुए
 
पृथ्वी की गति के साथ-साथ घूमते हुए
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वे दिशा-काल वन वातावरण-पटल जैसे
 
वे दिशा-काल वन वातावरण-पटल जैसे
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चलते जन-जन के साथ
 
चलते जन-जन के साथ
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वे हैं आगे वे हैं पीछे ।
 
वे हैं आगे वे हैं पीछे ।
  
 
अगजाजी खोहों और खदानों के
 
अगजाजी खोहों और खदानों के
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तल में
 
तल में
 
     ज्यों रत्न-द्वीप जलते
 
     ज्यों रत्न-द्वीप जलते
 
त्यों जन-जन के अनपहचाने अन्तस्तल में
 
त्यों जन-जन के अनपहचाने अन्तस्तल में
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जीवन के सत्य-दीप पलते !!
 
जीवन के सत्य-दीप पलते !!
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दावाग्नि-लगे, जंगल के बीचों-बीच बहे
 
दावाग्नि-लगे, जंगल के बीचों-बीच बहे
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मानो जीवन सरिता
 
मानो जीवन सरिता
 
     जलते कूलोंवाली,
 
     जलते कूलोंवाली,
 
इस कष्ट भरे जीवन के विस्तारों में त्यों
 
इस कष्ट भरे जीवन के विस्तारों में त्यों
 +
 
बहती है तरुणों आत्मा प्रतिभाशाली
 
बहती है तरुणों आत्मा प्रतिभाशाली
  
  
 
क्रमशः...
 
क्रमशः...

04:17, 6 जनवरी 2009 का अवतरण

जीवन के प्रखर समर्थक-से जब प्रश्न चिन्ह

   बौखला उठे थे दुर्निवार,

तब एक समंदर के भीतर

   रवि की उद्भासित छवियों का
       गहरा निखार

स्वर्णिम लहरों सा झल्लाता

   झलमला उठा;

मानो भीतर के सौ-सौ अंगारी उत्तर

   सब एक साथ
       बौखला उठे
           तमतमा उठे !!

संघर्ष विचारों का लोहू

   पीड़ित विवेक की शिरा-शिरा
       में उठा गिरा,

मस्तिष्क तंतुओं में प्रदीप्त

   वेदना यथार्थों की जागी !!

मेरे सुख-दुख ने अकस्मात् भावुकतावश

   सुख-दुख के चरणों की
       मन ही मन
           यों की 'पालागी' —

कण्ठ में ज्ञान संवेदन के,

आंसू का कांटा फंसा और

मन में यह आसमान छाया,

जिस में जन-जन के घर-आंगन

   का सूरज भासमान छाया

झुरमुर-झुरमुर वह नीम हँसा,

   चिड़िया डोली,

फर-फर आंचल तुमको निहार

मानो कि मातृ-भाषा बोली —

जिनसे गूंजा घर-आंगन

खनके मानों बहुओं की चूड़ी के कंगन ।

मैं जिस दुनिया में आज बसा,

जन-संघर्षों की राहों पर

   ज्वालाओं से

माँओं का बहनों का सुहाग सिन्दूर हँसा बरसा-बरसा ।

इन भारतीय गृहिणी-निर्झरिणी-नदियों के

   घर-घर के भूखे प्राण हँसे ।

दिल के आंसू के फव्वारे

   लेकिन यह मेरे छन्द

बावरे बुरी तरह यों अकुलाकर,

बूढ़े पितृश्री के चरणों में लोट-पोटकर,

   ऐसी पावन धूल हुए —

बहना के हिय की तुलसी पर

घन छाया कर

   मंजरी हुए,

भाई के दिल में फूल हुए ।

अपने समुंदरों के विभोर

मस्ती के शब्दों में गम्भीर

तब मेरा हिन्दुस्तान हँसा ।

जन-संघर्षों की राहों पर

आंगन के नीमों ने मंजरियाँ बरसायीं ।

अम्बर में चमक रही बहन-बिजली ने भी

   थी ताकत हिय में सरसायी ।

घर-घर के सजल अंधेरे से

मेघों ने कुछ उपदेश लिए,

जीवन की नसीहतें पायीं ।

जन-संघर्षों की राहों पर

   गम्भीर घटाओं ने
       युग जीवन सरसाया ।

आंसू से भरा हुआ चुम्बन मुझपर बरसाया ।

ज़िंदगी नशा बन घुमड़ी है

ज़िंगगी नशे सी छायी है

नव-वधुका बन

   यह बुद्धिमती

ऐसी तेरे घर आयी है ।


रे, स्वयं अगरबत्ती से जल,

   सुगंध फैला
       जिन लोगों ने

अपने अंतर में घिरे हुए

गहरी ममता के अगुरू-धूम

       के बादल सी

मुझको अथाह मस्ती प्रदान की

   वह हुलसी, वह अकुलायी

इस हृदय-दान की वेला में मेरे भीतर ।

जिनके स्वभाव के गंगाजल ने,

   युगों-युगों को तारा है,

जिनके कारण यह हिन्दुस्तान हमारा है,

कल्याण व्यथाओं मे घुलकर

जिन लाखों हाथों-पैरों ने यह दुनिया

       पार लगायी है,

जिनके कि पूत-पावन चरणों में

       हुलसे मन —
       से किये निछावर जा सकते
           सौ-सौ जीवन,

उन जन-जन का दुर्दान्त रुधिर

मेरे भीतर, मेरे भीतर ।

उनकी बाहों को अपने उर पर

   धारण कर वरमाला-सी

उनकी हिम्मत, उनका धीरज,

उनकी ताकत

पायी मैंने अपने भीतर ।

कल्याणमयी करुणाओं के

वे सौ-सौ जीवन-चित्र लिखे

मेरे हिय में जाने किसने, जाने कैस

उनकी उस सहजोत्सर्गमयी

आत्मा के कोमल पंख फँसे

मेरे हिय में,

मँडराता है मेरा जी चारों ओर सदा

       उनके ही तो ।

यादें उनकी

कैसी-कैसी बातें लेकर,

जीवन के जाने कितने ही रुधिराक्त प्राण

दुःखान्त साँझ

दुर्दान्त भव्य रातें लेकर

यादें उनकी

मेरे मन में

ऐसी घुमड़ी

ऐसी घुमड़ी

मानो कि गीत के

   किसी विलम्बित सुर में —

उनके घर आने की

   बेर-अबेर खिली,

क्रान्ति की मुस्कराती आँखों —

पर, लहराती अलकों में बिंध,

आंगन की लाल कन्हेर खिली ।

भूखे चूल्हे के भोले अंगारों में रम,

जनपथ पर मरे शहीदों के

अन्तिम शब्दों बिलम-बिलम,

लेखक की दुर्दम कलम चली ।

दुबली चम्पा

   जन संघर्षों में
       गदरायी,

खण्डर-मकान में फूल खिले, तल में बिखरे

जीवन संघर्षों में घुमड़े

       उमड़े चक्की के गीतों में

कल्याणमयी करुणाओं के

हिन्दुस्तानी सपने निखरे —

जिस सुर को सुन

कूएँ की सजल मुँडेर हिली

प्रातः कालीन हवाओं में ।

       सूरज का लाल-लाल चेहरा

डोला धरती की बाहों में,

आसक्ति भरा रवि का मुख वह ।

उसकी मेधाओं की ज्वालाएँ ऐसी फैलीं —

उस घास-भरे जंगल-पहाड़-बंजर में

   यों दावाग्नि लगी

मानो बूढ़ी दुनिया के सिर पर आग लगी

सिर जलता है, कन्धे जलते ।

यह अग्नि-विश्वजित् फैली है जिन लोगों की

               रे नौजवान,

इतिहास बनानेवाला सिर करके ऊंचा

भौहों पर मेघों-जैसा

   विद्युत भार
   विचारों का लेकर

पृथ्वी की गति के साथ-साथ घूमते हुए

वे दिशा-काल वन वातावरण-पटल जैसे

चलते जन-जन के साथ

वे हैं आगे वे हैं पीछे ।

अगजाजी खोहों और खदानों के

तल में

   ज्यों रत्न-द्वीप जलते

त्यों जन-जन के अनपहचाने अन्तस्तल में

जीवन के सत्य-दीप पलते !!

दावाग्नि-लगे, जंगल के बीचों-बीच बहे

मानो जीवन सरिता

   जलते कूलोंवाली,

इस कष्ट भरे जीवन के विस्तारों में त्यों

बहती है तरुणों आत्मा प्रतिभाशाली


क्रमशः...