"अभी बाक़ी कुछ अपने ख़्याल रहने दो/ विनय प्रजापति 'नज़र'" के अवतरणों में अंतर
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लेखन वर्ष: 2008
अभी बाक़ी कुछ अपने ख़्याल रहने दो
तन्हा ज़िन्दगी में यह सवाल रहने दो
तुम कहाँ चले गये बिना बताये मुझको
तमन्ना से हसरत का विसाल रहने दो
मैं कह भी न सका तुमसे हाले - दिल
अपने-आप से मुझे कुछ मलाल रहने दो
यह वक़्त बीत जायेगा, बदलेगा नहीं
घड़ी की सुईयों में अपनी चाल रहने दो
दुश्मन की गोली का डर न रहे मुझको
देश के लिए मेरे लहू में उबाल रहने दो
ईमान बेचकर रुपये कमाने वालों तुम
भूखे पेट के लिए रोटी - दाल रहने दो
हम दोस्त नहीं लेकिन दुश्मन भी नहीं
बाहम कभी-कभार की बोलचाल रहने दो
हर तरफ़ हंगामा है' धमाके हैं' ख़ून है
रोते हुए बच्चों का यह हाल' रहने दो!
तुम्हारी बातें सोचकर मुस्कुरा लेता हूँ
तुम दो गालों पर यह गुलाल रहने दो
शब्दार्थ:
बाहम: आपस में