भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"अभी बाक़ी कुछ अपने ख़्याल रहने दो/ विनय प्रजापति 'नज़र'" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विनय प्रजापति 'नज़र' }} category: ग़ज़ल <poem> '''लेखन वर्ष:...)
(कोई अंतर नहीं)

00:09, 9 जनवरी 2009 का अवतरण


लेखन वर्ष: 2008

अभी बाक़ी कुछ अपने ख़्याल रहने दो
तन्हा ज़िन्दगी में यह सवाल रहने दो

तुम कहाँ चले गये बिना बताये मुझको
तमन्ना से हसरत का विसाल रहने दो

मैं कह भी न सका तुमसे हाले - दिल
अपने-आप से मुझे कुछ मलाल रहने दो

यह वक़्त बीत जायेगा, बदलेगा नहीं
घड़ी की सुईयों में अपनी चाल रहने दो

दुश्मन की गोली का डर न रहे मुझको
देश के लिए मेरे लहू में उबाल रहने दो

ईमान बेचकर रुपये कमाने वालों तुम
भूखे पेट के लिए रोटी - दाल रहने दो

हम दोस्त नहीं लेकिन दुश्मन भी नहीं
बाहम कभी-कभार की बोलचाल रहने दो

हर तरफ़ हंगामा है' धमाके हैं' ख़ून है
रोते हुए बच्चों का यह हाल' रहने दो!

तुम्हारी बातें सोचकर मुस्कुरा लेता हूँ
तुम दो गालों पर यह गुलाल रहने दो

शब्दार्थ:
बाहम: आपस में