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"आँखों में कभी अश्कों को भर कर नहीं जाते / प्राण शर्मा" के अवतरणों में अंतर

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जाओ वहाँ  पर जिस जगह दिल चाहें तुम्हारे
 
जाओ वहाँ  पर जिस जगह दिल चाहें तुम्हारे
नफ़रत के मगर दोस्तो ! दफ्तर नहीं जाते
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नफ़रत के मगर दोस्तो ! दफ़्तर नहीं जाते
  
 
इतना नही अच्छा तेरा ये डर मेरे साथी !
 
इतना नही अच्छा तेरा ये डर मेरे साथी !

18:58, 9 जनवरी 2009 के समय का अवतरण

आँखों में कभी अश्कों को भर कर नहीं जाते
दुख-दर्द सुनाने कभी घर-घर नहीं जाते

लेकर कोई हथियार या पत्थर नहीं जाते
लड़ने के लिए दूसरों के घर नहीं जाते

हैं और भी गलियाँ कई जाने के लिए दोस्त
दुश्मन की गली से कभी हो कर नहीं जाते

जाओ वहाँ पर जिस जगह दिल चाहें तुम्हारे
नफ़रत के मगर दोस्तो ! दफ़्तर नहीं जाते

इतना नही अच्छा तेरा ये डर मेरे साथी !
सर ओखली में देने से तो मर नहीं जाते

ऐ दोस्त ! ज़रा बैठके औरों की भी तू सुन
गुस्से में सभा से कभी उठ कर नहीं जाते

ऐ दोस्त ! मिटाने की तू कोशिश नहीं करना
हर मन से खुदे प्यार के अक्षर नहीं जाते

ऐ बादलो  ! बरसो कभी हर और ही खुलकर
सूखे हुए तालाब यूँ ही भर नहीं जाते

औरों की तरह "प्राण" ! भले ही करो कोशिश
गंगा में नहाने से सभी तर नहीं जाते.