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"वैश्णव जन तो तेने कहिये जे / भजन" के अवतरणों में अंतर
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मोह- माया व्यापे नही जेने<br> | मोह- माया व्यापे नही जेने<br> | ||
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वैश्णव जन तो तेने कहिये जे ॥<br><br> | वैश्णव जन तो तेने कहिये जे ॥<br><br> | ||
वण- लोभी ने कपट- रहित छे<br> | वण- लोभी ने कपट- रहित छे<br> | ||
काम- क्रोध निवार्या रे<br> | काम- क्रोध निवार्या रे<br> | ||
− | भणे नरसैय्यो | + | भणे नरसैय्यो तेनुँ दर्शन कर्ताँ<br> |
कुळ एकोतेर तारया रे<br> | कुळ एकोतेर तारया रे<br> | ||
वैश्णव जन तो तेने कहिये जे ॥ | वैश्णव जन तो तेने कहिये जे ॥ |
00:58, 10 जनवरी 2009 का अवतरण
रचनाकार: |
वैश्णव जन तो तेने कहिये जे
पीर परायी जाणे रे
पर- दुख्खे उपकार करे तोये
मन अभिमान ना आणे रे
वैश्णव जन तो तेने कहिये जे ॥
सकळ लोक मान सहुने वंदे
नींदा न करे केनी रे
वाच काछ मन निश्चळ राखे
धन- धन जननी तेनी रे
वैश्णव जन तो तेने कहिये जे ॥
सम- द्रिष्टी ने तृष्णा त्यागी
पर- स्त्री जेने मात रे
जिह्वा थकी असत्य ना बोले
पर- धन नव झाली हाथ रे
वैश्णव जन तो तेने कहिये जे ॥
मोह- माया व्यापे नही जेने
द्रिढ़ वैराग्य जेना मन मा रे
राम नाम शुँ ताळी लागी
सकळ तिरथ तेना तन मा रे
वैश्णव जन तो तेने कहिये जे ॥
वण- लोभी ने कपट- रहित छे
काम- क्रोध निवार्या रे
भणे नरसैय्यो तेनुँ दर्शन कर्ताँ
कुळ एकोतेर तारया रे
वैश्णव जन तो तेने कहिये जे ॥