भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"मैं बनी मधुमास आली / महादेवी वर्मा" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
पंक्ति 8: पंक्ति 8:
  
 
आज मधुर विशाद की घिर करुण आई यामिनी <br>
 
आज मधुर विशाद की घिर करुण आई यामिनी <br>
बरस सुधि के इन्दु से छिट्की पुलक की चांदनी<br>
+
बरस सुधि के इन्दु से छिटकी पुलक की चांदनी<br>
उमड, आई री, दृगों में <br>
+
उमड़, आई री, दृगों में <br>
 
सजनि, कालिन्दी निराली!<br><br>
 
सजनि, कालिन्दी निराली!<br><br>
  
 
रजत स्वप्नों में उदित अपलक विरल तरावली,<br>
 
रजत स्वप्नों में उदित अपलक विरल तरावली,<br>
 
जाग सुक-पिक ने अचानक मदिर पन्चम तान ली;<br>
 
जाग सुक-पिक ने अचानक मदिर पन्चम तान ली;<br>
बह चली निशःवास की मृदु<br>
+
बह चली निःश्वास की मृदु<br>
बात मलय-निकुन्ज वाली!<br><br>
+
वात मलय-निकुन्ज वाली!<br><br>
  
सजल रोमो में बिछी है पांवडे मधुस्नात से,<br>
+
सजल रोमों में बिछी है पांवड़े मधुस्नात से,<br>
 
आज जीवन के निमिष भी दूत हैं अज्ञात से<br>
 
आज जीवन के निमिष भी दूत हैं अज्ञात से<br>
 
क्या न अब प्रिय की बजेगी <br>
 
क्या न अब प्रिय की बजेगी <br>

16:03, 21 सितम्बर 2006 का अवतरण

लेखिका: महादेवी वर्मा

~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~

मैं बनी मधुमास आली!

आज मधुर विशाद की घिर करुण आई यामिनी
बरस सुधि के इन्दु से छिटकी पुलक की चांदनी
उमड़, आई री, दृगों में
सजनि, कालिन्दी निराली!

रजत स्वप्नों में उदित अपलक विरल तरावली,
जाग सुक-पिक ने अचानक मदिर पन्चम तान ली;
बह चली निःश्वास की मृदु
वात मलय-निकुन्ज वाली!

सजल रोमों में बिछी है पांवड़े मधुस्नात से,
आज जीवन के निमिष भी दूत हैं अज्ञात से
क्या न अब प्रिय की बजेगी
मुरली मधुराग वाली?

मैं बनी मधुमास आली!