"दुःखद अंत / श्रीनिवास श्रीकांत" के अवतरणों में अंतर
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पार की धार पर | पार की धार पर | ||
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पेड़ों के झुरमुट में | पेड़ों के झुरमुट में | ||
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रहता था एक वृक्ष परिवार | रहता था एक वृक्ष परिवार | ||
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नर, मादा और उसके दो बच्चे | नर, मादा और उसके दो बच्चे | ||
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एक लम्बू | एक लम्बू | ||
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दूसरा ठिगना | दूसरा ठिगना | ||
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मादा थी नर से ज्य़ादा खिली-खिली | मादा थी नर से ज्य़ादा खिली-खिली | ||
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कद्दावर और घेरेदार | कद्दावर और घेरेदार | ||
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टहनियाँ थीं उसकी हरी-भरी | टहनियाँ थीं उसकी हरी-भरी | ||
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शंकुफलों से लबालब | शंकुफलों से लबालब | ||
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सुन्दर-सुन्दर चिडिय़ाएँ | सुन्दर-सुन्दर चिडिय़ाएँ | ||
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रंग-बिरंगे परिन्दे | रंग-बिरंगे परिन्दे | ||
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पसन्द करते उस पर बैठना | पसन्द करते उस पर बैठना | ||
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वहाँ से दिखायी देती उन्हें | वहाँ से दिखायी देती उन्हें | ||
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वह स्वर्गीय उपत्यका | वह स्वर्गीय उपत्यका | ||
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जिस पर खुशी से झूलते | जिस पर खुशी से झूलते | ||
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बारिशों में बादल | बारिशों में बादल | ||
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धरते अनन्त रूप | धरते अनन्त रूप | ||
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हवाएँ बजातीं वंशियाँ | हवाएँ बजातीं वंशियाँ | ||
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अदभुत रागों में | अदभुत रागों में | ||
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झूमने लगते सभी पेड़ | झूमने लगते सभी पेड़ | ||
− | |||
पंछियों के दल भी इनके साथ | पंछियों के दल भी इनके साथ | ||
− | |||
मिलाते स्वर | मिलाते स्वर | ||
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नर था दुर्बल | नर था दुर्बल | ||
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क्योंकि उसने अधिक धूप छोड़ी थी | क्योंकि उसने अधिक धूप छोड़ी थी | ||
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अपनी मादा के लिये | अपनी मादा के लिये | ||
− | + | वह थी भी आक्रामक | |
− | वह थी भी | + | |
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मादा चबा जाती | मादा चबा जाती | ||
− | + | ढेर-भर धूप | |
− | ढेर भर धूप | + | |
− | + | ||
अपनी चोंचनुमा सलाईदार पत्तियों से | अपनी चोंचनुमा सलाईदार पत्तियों से | ||
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चुपचाप | चुपचाप | ||
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फिर क्या हुआ कि एक दिन | फिर क्या हुआ कि एक दिन | ||
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पूरा जंगल हो गया नीलाम | पूरा जंगल हो गया नीलाम | ||
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कट-छँट गये सभी पेड़ | कट-छँट गये सभी पेड़ | ||
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वृक्ष परिवार समेत | वृक्ष परिवार समेत | ||
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नर, मादा और किशोर बच्चे भी | नर, मादा और किशोर बच्चे भी | ||
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मादा का काठ आया काम | मादा का काठ आया काम | ||
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एक अमीरजादे की हवेली के लिये | एक अमीरजादे की हवेली के लिये | ||
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खुरची गयी उसकी त्वचा | खुरची गयी उसकी त्वचा | ||
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तराशा गया उसका अंग-अंग | तराशा गया उसका अंग-अंग | ||
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सज गयी थी वह | सज गयी थी वह | ||
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अपने दूसरे रूप में | अपने दूसरे रूप में | ||
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हो गया था उसका कायान्तर | हो गया था उसका कायान्तर | ||
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खो चुकी थी उसकी पहचान | खो चुकी थी उसकी पहचान | ||
− | + | यानी वह थी एक सजा-सजाया शव | |
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कीलों से ठुका | कीलों से ठुका | ||
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रोगन से लिपा | रोगन से लिपा | ||
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दुर्बल पेड़ आया | दुर्बल पेड़ आया | ||
− | + | वृद्घ पितामह के | |
− | वृद्घ पितामह के | + | देह के काम |
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− | + | ||
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चन्दन, घृत, अगरु धूम के साथ | चन्दन, घृत, अगरु धूम के साथ | ||
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मंत्रोच्चार के बीच | मंत्रोच्चार के बीच | ||
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जलाया गया वह मूक, बधिर | जलाया गया वह मूक, बधिर | ||
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बालकों से बने | बालकों से बने | ||
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अमीर बच्चों के पहियेदार खिलौने | अमीर बच्चों के पहियेदार खिलौने | ||
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घोड़ा, काठ का उल्लू | घोड़ा, काठ का उल्लू | ||
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न उडऩे वाला हवाई जहाज़ | न उडऩे वाला हवाई जहाज़ | ||
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छोटे बबुए का शौचपाट भी | छोटे बबुए का शौचपाट भी | ||
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इस तरह समाप्त हुआ | इस तरह समाप्त हुआ | ||
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सुन्दर घाटी में | सुन्दर घाटी में | ||
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एक अनोखा | एक अनोखा | ||
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बेजोड़ | बेजोड़ | ||
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इमारती वृक्ष-परिवार | इमारती वृक्ष-परिवार | ||
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शान्ति से जो | शान्ति से जो | ||
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कर रहा था गुजर-बसर | कर रहा था गुजर-बसर | ||
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घाटी में | घाटी में | ||
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धूप, बादल और पंछियों के बीच। | धूप, बादल और पंछियों के बीच। | ||
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03:53, 12 जनवरी 2009 के समय का अवतरण
पार की धार पर
पेड़ों के झुरमुट में
रहता था एक वृक्ष परिवार
नर, मादा और उसके दो बच्चे
एक लम्बू
दूसरा ठिगना
मादा थी नर से ज्य़ादा खिली-खिली
कद्दावर और घेरेदार
टहनियाँ थीं उसकी हरी-भरी
शंकुफलों से लबालब
सुन्दर-सुन्दर चिडिय़ाएँ
रंग-बिरंगे परिन्दे
पसन्द करते उस पर बैठना
वहाँ से दिखायी देती उन्हें
वह स्वर्गीय उपत्यका
जिस पर खुशी से झूलते
बारिशों में बादल
धरते अनन्त रूप
हवाएँ बजातीं वंशियाँ
अदभुत रागों में
झूमने लगते सभी पेड़
पंछियों के दल भी इनके साथ
मिलाते स्वर
नर था दुर्बल
क्योंकि उसने अधिक धूप छोड़ी थी
अपनी मादा के लिये
वह थी भी आक्रामक
मादा चबा जाती
ढेर-भर धूप
अपनी चोंचनुमा सलाईदार पत्तियों से
चुपचाप
फिर क्या हुआ कि एक दिन
पूरा जंगल हो गया नीलाम
कट-छँट गये सभी पेड़
वृक्ष परिवार समेत
नर, मादा और किशोर बच्चे भी
मादा का काठ आया काम
एक अमीरजादे की हवेली के लिये
खुरची गयी उसकी त्वचा
तराशा गया उसका अंग-अंग
सज गयी थी वह
अपने दूसरे रूप में
हो गया था उसका कायान्तर
खो चुकी थी उसकी पहचान
यानी वह थी एक सजा-सजाया शव
कीलों से ठुका
रोगन से लिपा
दुर्बल पेड़ आया
वृद्घ पितामह के
देह के काम
चन्दन, घृत, अगरु धूम के साथ
मंत्रोच्चार के बीच
जलाया गया वह मूक, बधिर
बालकों से बने
अमीर बच्चों के पहियेदार खिलौने
घोड़ा, काठ का उल्लू
न उडऩे वाला हवाई जहाज़
छोटे बबुए का शौचपाट भी
इस तरह समाप्त हुआ
सुन्दर घाटी में
एक अनोखा
बेजोड़
इमारती वृक्ष-परिवार
शान्ति से जो
कर रहा था गुजर-बसर
घाटी में
धूप, बादल और पंछियों के बीच।