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"भाव / श्रीनिवास श्रीकांत" के अवतरणों में अंतर
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भाव बुनते हैं | भाव बुनते हैं | ||
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अपने कौशेय फलक पर | अपने कौशेय फलक पर | ||
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अदभुत मोजेक | अदभुत मोजेक | ||
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उनमें होता है | उनमें होता है | ||
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सहज स्पन्दन | सहज स्पन्दन | ||
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अन्तरालों में बजता समय | अन्तरालों में बजता समय | ||
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याद आती | याद आती | ||
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कोई भूली हुई कथा | कोई भूली हुई कथा | ||
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वे सब हैं | वे सब हैं | ||
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एक- एक कर अंकित | एक- एक कर अंकित | ||
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रंग-बिरंगे चित्र | रंग-बिरंगे चित्र | ||
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अपने भूदृश्यों के साथ | अपने भूदृश्यों के साथ | ||
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यथार्थ से ज्य़ादा दिलकश हैं वे | यथार्थ से ज्य़ादा दिलकश हैं वे | ||
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रूप के चितेरे | रूप के चितेरे | ||
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हैं वे सुगन्ध | हैं वे सुगन्ध | ||
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जल में उभरते प्रतिबिम्ब | जल में उभरते प्रतिबिम्ब | ||
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एकाएक | एकाएक | ||
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और फिर बुझ जाते | और फिर बुझ जाते | ||
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सचमुच के ठोस | सचमुच के ठोस | ||
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और जानदार पंछी हैं वे | और जानदार पंछी हैं वे | ||
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मगर उड़ान के लिये | मगर उड़ान के लिये | ||
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नहीं फडफ़ड़ाते अपने पंख | नहीं फडफ़ड़ाते अपने पंख | ||
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उनमें भरी होती है हवा | उनमें भरी होती है हवा | ||
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गुब्बारों की तरह उड़ते हैं वे | गुब्बारों की तरह उड़ते हैं वे | ||
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हो जाते हैं वायवीय | हो जाते हैं वायवीय | ||
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पकड़ में नहीं आते | पकड़ में नहीं आते | ||
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भाव हैं जादूगर | भाव हैं जादूगर | ||
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चुटकी मिट्टी से घड़ देते हैं | चुटकी मिट्टी से घड़ देते हैं | ||
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एक पूरा जीता-जागता संसार। | एक पूरा जीता-जागता संसार। | ||
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13:30, 12 जनवरी 2009 के समय का अवतरण
भाव बुनते हैं
अपने कौशेय फलक पर
अदभुत मोजेक
उनमें होता है
सहज स्पन्दन
अन्तरालों में बजता समय
याद आती
कोई भूली हुई कथा
वे सब हैं
एक- एक कर अंकित
रंग-बिरंगे चित्र
अपने भूदृश्यों के साथ
यथार्थ से ज्य़ादा दिलकश हैं वे
रूप के चितेरे
हैं वे सुगन्ध
जल में उभरते प्रतिबिम्ब
एकाएक
स्पष्ट से होते और और स्पष्टतर
और फिर बुझ जाते
सचमुच के ठोस
और जानदार पंछी हैं वे
मगर उड़ान के लिये
नहीं फडफ़ड़ाते अपने पंख
उनमें भरी होती है हवा
गुब्बारों की तरह उड़ते हैं वे
हो जाते हैं वायवीय
पकड़ में नहीं आते
भाव हैं जादूगर
चुटकी मिट्टी से घड़ देते हैं
एक पूरा जीता-जागता संसार।