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 |रचनाकार=श्रीनिवास श्रीकांत|संग्रह=घर एक यात्रा है / श्रीनिवास श्रीकांत
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एक आदमी लेटा है
 
भारत के मानचित्र पर
 
शवासनी मुद्रा में
 वह नहीं है ब्रह्म राक्षसब्रह्मराक्षस
न वेताल
 
न यति
 
वह है एक प्रखर साधक
 
अपने अतीत पर ध्यानस्थ
 
भविष्य के प्रति आस्थावान
 
बज रही हैं उसकी धमनियाँ
 
धड़क रहा हृदय
 
बह रहा बरसों से घूमता रक्त
 
घड़ता माँसपेशियाँ
 
मेधा
 अस्थि -पिंजर 
अवयव बनाते हैं
 
उसका भूगोल
 
भावनाएँ
 
रंग-बिरंगी लोक संस्कृतियाँ
 
व्यवधानों के बावजूद
 
लय में जी रहा है वह
 
विचारवान
 
बलवान
 
प्रतिभा सम्पन्न
 
वह है जीवित
 
नहीं चाहिये उसे
 
साँस लेने के लिये
 
कृत्रिम हवा
 
वैपरित्य में भी
 
अलख जगाता है वह
 
साधा है उसने
 
समय का मसान
 
मस्तक है उसका
 
आसमानों में
 
पर, पृथ्वी को
 
स्पर्श करते हैं
 
अहर्निश उसके पाँव
 
पुरा और आधुनिक के बीच
 
समय को जोड़ता सेतु है वह
 
जितना पुरातन
 
उतना ही नवीन भी।
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