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"माँ / श्रीनिवास श्रीकांत" के अवतरणों में अंतर
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पीपल और बरगद से भी | पीपल और बरगद से भी | ||
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बड़ा | बड़ा | ||
जिसने पार कीं | जिसने पार कीं | ||
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लालान्तर नदियाँ | लालान्तर नदियाँ | ||
काल के | काल के | ||
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सात धातुएँ तो हैं | सात धातुएँ तो हैं |
18:41, 13 जनवरी 2009 के समय का अवतरण
घर में होती है एक औरत
जिसे कहते हैं माँ
वह होती है
कामयाब कीमियागर
लोहे को सोने में बदलती
एक ऐसा जनन वृक्ष है माँ
पीपल और बरगद से भी
ज़्यादा पूजनीय
बड़ा
जिसने पार कीं
दर्द और दुख की
लालान्तर नदियाँ
काल के
अँधेरे अन्तराल
सात धातुएँ तो हैं
सभी में
मगर एक गुण ओज
है उसमें ही
जिसका वह करती
आँचल भर-भर दान
एक- एक कर
अपने अनेक वंशजों को
हों सुर, मुनि या दानव
यह औरत है विश्वात्मा का
एक नायाब उपहार
कोये की तरह बुनती
वह कुटुम्ब के लिये रेशम
रानी की तरह
मोम और शहद के घर।