"तारा देवी / श्रीनिवास श्रीकांत" के अवतरणों में अंतर
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चीनी मठ की तरह है इसकी छत | चीनी मठ की तरह है इसकी छत | ||
तिकोनी, स्लेट पत्थरों से निर्मित | तिकोनी, स्लेट पत्थरों से निर्मित | ||
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शिखर है एक अनुपम | शिखर है एक अनुपम | ||
जहाँ से दिखायी दे रही | जहाँ से दिखायी दे रही | ||
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रेल की समानान्तर पटरियाँ | रेल की समानान्तर पटरियाँ | ||
मन्द-मन्द चलतीं जिन पर | मन्द-मन्द चलतीं जिन पर | ||
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− | पूरी एक सदी | + | पूरी एक सदी गुज़र गयी है |
घाटी के आसपास से | घाटी के आसपास से | ||
कि पता भी नहीं चला | कि पता भी नहीं चला | ||
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एक सौ तीन सुरंगों की | एक सौ तीन सुरंगों की | ||
रोमांचक दूरियाँ | रोमांचक दूरियाँ | ||
− | शिवालिक | + | शिवालिक पहाड़ियों की |
− | सौम्य | + | सौम्य ऊँचाइयाँ |
वनवीथियों | वनवीथियों | ||
ग्रामपदों | ग्रामपदों |
18:50, 13 जनवरी 2009 का अवतरण
घाटी को ऊँचाइयों से देखो
वह लगेगी विस्तृत और उज्ज्वल
धुन्ध बना देती है इसे अपारदर्शी
और रहस्यमय
पास के मन्दिर में बजती हैं
डिंगलिंग करती
एक के बाद एक
अनेक घण्टियाँ
चीनी मठ की तरह है इसकी छत
तिकोनी, स्लेट पत्थरों से निर्मित
अद्रघ-गोल-सा परिवेश है यह
शिखर है एक अनुपम
जहाँ से दिखायी दे रही
घाटी की परिक्रमा
जिस पर सहसा घूमने लगती है
चकराकर आँख
नीचे, बहुत नीचे
पर्वत के मूल में
एक ओर
ढलान को चीरती
जिह्वा सी खिंची है
रेल की समानान्तर पटरियाँ
मन्द-मन्द चलतीं जिन पर
खिलौना गाड़ियाँ सुबहो-शाम
पूरी एक सदी गुज़र गयी है
घाटी के आसपास से
कि पता भी नहीं चला
कि कब छिन गये
राजाओं के राजपाट
और कब अस्त हुआ
फिरंगी साम्राज्य का सूर्य
बदल गया है आसपास
बदल गया है राजपाट
बदल गये हैं
मौसम के तेवर भी
पर वे डिब्बीनुमा सर्पिल
अब भी नाप रहीं
एक सौ तीन सुरंगों की
रोमांचक दूरियाँ
शिवालिक पहाड़ियों की
सौम्य ऊँचाइयाँ
वनवीथियों
ग्रामपदों
और ढलानों के साथ
यह है तारा देवी
जहाँ से देख रहा मैं
गहराई में नीचे धँसी
और ढलानों पर ऊपर उठती
परिक्रमामय यह सुन्दर घाटी
मौसम जहाँ आते हैं
अपने अलग-अलग रंग
और आभाभेदों के साथ
गाड़ते धर्म महोत्सवों में
शिखर पर झण्डियाँ।