भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"रोजी / अमृता प्रीतम" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अमृता प्रीतम |संग्रह= }} <poem> नीले आसमान के कोने मे...) |
छो |
||
पंक्ति 19: | पंक्ति 19: | ||
एक वक़्त की रोजी रख दे। | एक वक़्त की रोजी रख दे। | ||
− | जो ख़ाली हँडिया | + | जो ख़ाली हँडिया भरता है |
राँध-पकाकर अन्न परसकर | राँध-पकाकर अन्न परसकर | ||
वही हाँडी उलटा रखता है | वही हाँडी उलटा रखता है |
02:04, 14 जनवरी 2009 का अवतरण
नीले आसमान के कोने में
रात-मिल का साइरन बोलता है
चाँद की चिमनी में से
सफ़ेद गाढ़ा धुआँ उठता है
सपने — जैसे कई भट्टियाँ हैं
हर भट्टी में आग झोंकता हुआ
मेरा इश्क़ मज़दूरी करता है
तेरा मिलना ऐसे होता है
जैसे कोई हथेली पर
एक वक़्त की रोजी रख दे।
जो ख़ाली हँडिया भरता है
राँध-पकाकर अन्न परसकर
वही हाँडी उलटा रखता है
बची आँच पर हाथ सेकता है
घड़ी पहर को सुस्ता लेता है
और खुदा का शुक्र मनाता है।
रात-मिल का साइरन बोलता है
चाँद की चिमनी में से
धुआँ इस उम्मीद पर निकलता है
जो कमाना है वही खाना है
न कोई टुकड़ा कल का बचा है
न कोई टुकड़ा कल के लिए है...